ममता यादव
उत्तरप्रदेश के जगेंद्र सिंह और मध्यप्रदेश के संदीप कोठारी की हत्याओं में एक समानता है और वह है दोनों अपने—अपने राज्यों के खनन माफिया के खिलाफ खबरें लिख रहे थे। ये वो माफिया है जिसकी सरपरस्ती भारत के हर राज्य में पॉवरफुल मंत्रियों नेताओं के पास होती है। ये माफिया इतना बेखौफ है कि पत्रकार तो बहुत दूर की बात है अगर कोई पुलिस अधिकारी,तहसीलदार या अन्य कोई इनके क्षेत्र में कार्रवाई के लिये घुस जाये तो ये दिनदहाडे ट्रेक्टर, डंफर से उसे कुचलने में कोताही नहीं बरतते।
मध्यप्रदेश में आईपीएस नरेंद्र सिंह की दिनदहाडे की गई हत्या से बडा कोई सबूत हो सकता है, शायद नहीं। हर महीने दो महीने में खदान माफिया द्वारा किसी न किसी पर हमले की खबरें आती रहती हैं,लेकिन एफआईआर से आगे कुछ होता नहीं है और होगा भी नहीं।

अगर मामला ज्यादा तूल पकडे मसलन,जगेंद्र सिंह की मौत जैसा तो मामला ऐसा सुलटाया जाता है कि बस हो गया काम अब कोई मुंह नहीं खोलेगा। जगेंद्र सिंह के मामले में सरकार घिरी रही हत्यारा मंत्री है साबित हो चुका है मगर सरकार का वही राग है पूरी जांच होगी उसके बाद कार्रवाई करेंगे। सबको पता है और बच्चा—बच्चा जानता है कि किसी मंत्री के खिलाफ कोई जांच कभी पूरी होगी नहीं मृतक का परिवार मुआवजा लेकर चुप बैठ जायेगा। किस्सा खत्म।
यहां पर एक बात जरूर कहूंगी कि कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर लिखा कि जगेंद्र के पिता ने बेटे की मौत का सौदा किया। मान लिया एक बार ये मैं पूछना चाहती हूॅ उन लोगों से उनकी जगह वो होते तो क्या करते उस स्थिति में जब एक बेटे को जिंदा फूंक डाला गया हो और वह न्याय की गुहार लगाता अस्पताल में दम तोड चका हो। उसके बाद भी समाजवादियों के जी नहीं भरे तो संवेदना के बहाने घर पर पहुंचकर आपको धमकाया जा रहा हो कि चुप हो जाओ, किसी जांच की मांग मत करो धरना खत्म कर दो वरना अंजाम भुगतने तैयार रहना वगैरह—वगैरह। तब एक सामान्य इंसान की तरह आप सोचेंगे कि जाने वाला तो चला गया लेकिन अगर परिवार के किसी और सदस्य की भी बलि चढ गई तब क्या होगा? ऐसे में आपको मरने वाले के बच्चों की सुरक्षा और भविष्य की चिंता सतायेगी। क्योंकि वो आपकी औलाद की औलाद हैं।
उप्र की समाजवादी सरकार जिस तरह निरंकुश है और जो दांव—पेंच अपनाये जाते हैं सामान्य इंसान उसमें घबरा जाता है। बतौर पत्रकार आप अडे रह सकते हैं खतरों से खेल सकते हैं लेकिन आपका परिवार,एक मर चुके बेटे का बाप भाई,पत्नि,बच्चे पत्रकार नहीं होते। तो प्रतिक्रियायें देने में जरा सावधानी बरतें। बस ये गुजारिश है। तकलीफ तो होती है लेकिन उसे व्यक्त इस तरह ना करें कि रोने वालों को दिलासे के बजाय और ज्यादा तकलीफ ही मिले।
अब बात मध्यप्रदेश के संदीप हत्याकांड की। इस मामले में अच्छी चीज ये हुई कि आरोपी दबोच लिये गये और आरोपियों ने कबूल भी कर लिया। उप्र के अपराधियों की तरह अपराध स्वीकार करने की मक्कारी नहीं दिखाई। संदीप के परिवार ने भी सीबीआई जांच की मांग की लेकिन सरकार ने जांच एसआईटी को सौंप दी। ये वही एसआईटी है जो कई सालों से व्यापमं घोटाले की जांच कर रही है और जांच के चक्कर में कई बेगुनाह छात्रों तक को जेल की हवा खिला दी।
और जांच जारी है। मध्यप्रदेश के लाखों बच्चे जिनका भविष्य बरबाद हो चुका है उनके इस सवाल का जवाब आज भी किसी के पास नहीं है कि उन्हें बतौर हर्जाना क्या मिलेगा?
बहरहाल खनन का खेल जिनकी सरपरस्ती में चलता है वे कोई आम आदमी नहीं होते किसी भी मामले में न सामाजिक,ना आर्थिक,ना भावनात्मक तौर पर। जो खदानों में काम कर रहे हैं जिनके नाम ठेके हैं,उन्हें साफ हिदायत है जो भी रास्ते में आये कुचल दो अब नया तरीका शुरू हुआ जला दो। बाकी हम देख लेंगे।
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