आशु की चकरघिन्नी
धार की जामा मस्जिद (एक नाम भोजशाला) से लगकर है हजरत कमाल मौलाना चिश्ती की दरगाह। हर जुमेरात (गुरुवार) को यहाँ अकीदतमन्दों की कतार लगती है। सजदा करने वालों से ज्यादा तादाद माथा टेकने वालों की। हर बरस लगने वाले उर्स की कव्वालियों की महफ़िलों को रौनक बख्शने वाले हर समुदाय के लोग होते हैं। इसी मैदान फरवरी माह में बसन्त पचमी का मेला भी हर मजहब के लोगों की भागीदारी देखता है।

दरगाह के बाहर चने बेचते रामप्रकाश और मन्दिर के द्वार फूल बेचने वाले रहीम को पता ही नहीं चला कि कब फिजा में जहर घुल गया। नमाज और पूजा को भी औजार-ए-सियासत बना लिया गया। मुरादपुरा और शनि गली की गलियों में बसने वाले जान ही नहीं पाए कि उनके भाईचारे को किसने, किस बाज़ार, किस दाम पर बेच डाला।
अपने फराइज में से एक (नमाज) और मन की शान्ति के लिए की जाने वाली पूजा-प्रार्थना के लिए भी मन्दिर और दरगाहों के इस शहर के बाशिन्दो के माथे शिकन होने लगी हैं। सियासतदानों ने मामले को पेचीदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, बाहरी लोगों की दखल ने हालात को बिगाड़ा और धर्म पर हावी होती सियासत मुसीबत को बढ़ावा देने में लगी है।

चन्द दिनों की दूरी पर खड़ी बसन्त पचमी, शहरवालों की बढ़ती बेचैनी, न जाने क्या होगा की कुशन्काओ से उठी प्रदेशभर की निगाहें। अपने नाजायज़ मफाद के लिए फिजा बिगाड़ने वाले अपनी हरकतों पर आमादा रहे तो उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि कालिका माता, सिद्धनाथ, धारेश्वर, कमाल मौलाना, चालीस पीर, बन्दीछोड की नज़र से उनका यह कर्म छिपा नहीं है। दुआ की जाए की अगला जुमा (शुक्रवार) कुछ ऐसा आए कि प्रदेश के माथे पर कोई कलन्क न लगे।
पुछल्ला
राजाभोज के इन्साफ के लिए जाने जाना वाला धार, रानी रुपमति-बाज़ बहादुर की प्रेम कहानी समेटे रखने वाला धार (मान्डव : दूरी 35 किमी), बाग प्रिन्ट के लिए विश्व में पहचान रखने वाला धार, एशिया की सबसे बड़ी औद्योगिक नगरी पिथमपुर खुद की सीमा में सहेजने वाला धार : अब एक विवाद के साथ राष्ट्रीय परिदृश्य पर है। कोई ऐसी मुहिम हो, जो इसे इसका अमन, सुकून, मासूमियत लौटा दे।
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