श्रीप्रकाश दीक्षित
दिल्ली से लेकर सूबों की राजधानियों तक सरकारी बंगले सत्तारूढ़ पार्टियों के लिए संकट से बचने सौदेबाजी का औज़ार बने हुए हैं। सरकारें इन बंगलों के आवंटन में नियम-कनून की जमकर धज्जियां उड़ाने में जरा भी संकोच नहीं करती हैं। सरकारें किस बेशर्मी से बंगलों के दुरुपयोग के अधिकार पर कुंडली मार कर बैठे रहना चाहती हैं इसकी मिसाल है केंद्र सरकार का सख्त कानून बनाने से साफ इंकार करना और इस पर सुप्रीम कोर्ट की बेबस टिप्पणी..!
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद जब मनमोहन सरकार ने सरकारी मकानों पर गैरकानूनी कब्जे को गैर जमानती अपराध बनाने से साफ इंकार कर दिया तब सुप्रीमकोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा कि सरकार में इतना दम नहीं है कि वह एक क्लर्क की राय को पलट सके। ऐसी हालत में लगता है कि यदि भगवान भी जमीन पर आ जाएँ तो वह भी देश को नहीं बचा सकते,क्योंकि देश का चरित्र ही भ्रष्ट हो गया है।

ऊपर का संदर्भ हाल की दो खबरों के लिहाज से जरूरी है जो नेताओं के स्मारक के नाम पर सरकारी बंगलों पर कब्जे से जुड़ी हैं। जिस मुंबई मे एक इंच जमीन की कीमत करोड़ों है वहाँ महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने मेयर के सरकारी बंगले को बाल ठाकरे का स्मारक बनाने का ऐलान किया है। सब जानते हैं कि साझा सरकार होने के बावजूद दोनों पार्टियों के रिश्ते बेहद तल्ख हैं। फड़नवीस का बयान आते ही सेना के मुखिया उद्धव ठाकरे के भाई राज ठाकरे ने आरोप जड़ने मे देर नहीं की कि शिवसेना इस बहाने सरकारी बंगले पर कब्जा करना चाहती है। साफ है सरकार को सुरक्षित करने के लिए फड़नवीस ने अरबों का सरकारी बंगला शिवसेना के हवाले कर दिया।
उधर पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय कलाम के दिल्ली स्थित सरकारी बंगले को ज्ञानकेंद्र अर्थात उनका स्मारक न बनाए जाने के खफा उनके पोते सैयद इब्राहिम ने भाजपा से इस्तीफा दे दिया है। कुल मिलकर एक से मामले पर केंद्र और उसकी राज्य सरकार के भिन्न फैसले..!यदि तुलना करें तो कलाम के कद के सामने बाल ठाकरे बौने नजर आएंगे। बाल ठाकरे ने मराठी अस्मिता के नाम पर जिस संकीर्ण क्षेत्रीयता की राजनीति की, उनके स्मारक से लोग क्या प्रेरणा लेंगे..?

मनमोहन सरकार ने एफडीआई पर बसपा का समर्थन लेने की गरज से लुटियंस इलाके के तीन बंगलों को कांशीराम के स्मारक मे बदलने का फैसला एक ही दिन मे फटाफट कर दिया था। अब यह तीनों सरकारी बंगले बहुजन प्रेरणा ट्रस्ट की निजी जागीर बन गए हैं..?
अब अभी बहुत दिन नहीं हुए जब पूर्व केन्द्रीय मंत्री और स्वर्गीय चरण सिंह के साहबजादे अजीतसिंह ने घटिया किस्म की अवसरवादिता का परिचय देते हुए बेशर्मी के साथ उस बंगले को किसान स्मारक बनाने की मांग की थी जो बतौर केन्द्रीय मंत्री उनके पास था। सरकारी बंगलों को नेताओं के स्मारकों मे तब्दील करने पर कठोरता से पाबंदी लगाई जानी चाहिए और ऐसे सभी बंगलों को निर्ममता से छीन लिया जाना चाहिए। यदि उनके मुरीदों को स्मारक बनाने का शौक है तो चंदा कर इसे बनाएँ।
लेखक मध्यप्रदेश पुलिस मुख्यालय में जनसंपर्क अधिकारी रहे हैं
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