राकेश कुमार पालीवाल
सोशल मीडिया के नाम से ही सामाजिक सौम्यता का अहसास होता है। इसकी परिकल्पना और शुरुआत भी एक वैकल्पिक मीडिया के रूप में हुई थी जहां हम पूरी तरह बाजारू हो चुके प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के बरक्स निर्भीकता से अपनी बात रख सकते हैं।
कई देशों में इसका इस्तेमाल सामाजिक कार्यकर्ताओ ने समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए किया भी है।दुर्भाग्य से हमारे यहां इस मीडिया को भी राजनीति ने अपने पेड कार्यकर्ताओ के माध्यम से काफी दूषित कर दिया है।इन छ्द्म सेनाओं के अलावा बहुत से पत्रकार , सोशलाइटस और साहित्यिक गुटबाज भी अपने विरोधियों के प्रति अनवरत विषवमन और भाषा के असंयमन से इस महत्वपूर्ण मंच की फिजा बिगाड़ रहे हैं।
रात को सोने से पहले टी वी हमें क्राईम रिपोर्ट के नाम पर भयभीत करता है।सुबह अखबार वही सब और विस्तार से परोसता है। ऐसे में सोशल मीडिया ही हमे सकारात्मक सोच और ऊर्जा से भरने की कूवत रखता है। कई मित्र अपने सकारात्मक अनुभव साझा कर यह सार्थक काम कर भी रहे हैं। शायद इसीलिए हम लोग अखबार टी वी से अधिक समय यहाँ दे रहे हैं।
यदि हमें इस महत्वपूर्ण मीडिया को प्रदूषण से बचाना है तो हमें इसके लिए भी सामूहिक स्वच्छता अभियान चलाने की जरूरत है। और यह सरकार के कंधों पर नहीं हमारे अपने मजबूत कंधों पर चलेगा।
आइये इस स्वच्छता अभियान की शुरुआत मित्र सूची से उग्र अशालीन भाषा का प्रयोग करने वाले और किसी दल विशेष के चमचे टाइप के लोगों को बाहर निकाल कर करें।
लेखक इनकम टैक्स अधिकारी हैं और ये लेख उनकी फेसबुक वॉल से लिया गया है
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