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हम गुलामों जैसे,जूतों के फीते तक बंधाते हैं..? चपरासी ने साझा की बंगला ड्यूटी की पीड़ा

खरी-खरी, मीडिया            Nov 19, 2015


sriprakash-dixitश्रीप्रकाश दीक्षित वे शासकीय सेवक हैं लेकिन न्याय की सेवा करने वालों के यहां उनकी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। केस एक महीने पुराना है लेकिन उठाया गया विषय प्रासंगिक है। संदर्भ है चपरासियों की कोर्ट ड्यूटी और बंगला ड्यूटी को लेकर। यदाकदा मीडिया को कोसने वाले भी इसे जरूर पढें कि हाशिये पर रखे गये इस शासकीय सेवक की पीड़ा को मीडिया ने कैसे सामने लाने की कोशिश की भोपाल जिला अदालत का चालीस साल का वह चपरासी इन दिनो ड्यूटी को लेकर राहत महसूस कर रहा है। यद्दपि वह भली भांति जानता है कि यह चैन कुछ दिनों का ही है और जल्द ही उसे और अन्य चपरासियों को फिर बंगला ड्यूटी में जुट जाना पड़ेगा। दरअसल पिछले महीने सागर जिला अदालत के चपरासी द्वारा जज दंपति पर प्रताड़ना का आरोप लगाकर फांसी लगा लेने के दर्दनाक हादसे के बाद सूबे की अदालतें सकते में हैं। जज दंपति के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो चुकी है और उनकी अग्रिम जमानत की अर्जी खारिज हो गई है। अमूमन मध्यप्रदेश का मीडिया अवमानना की तलवार के डर से अदालतों से खौफ खाता है पर इस बार नवदुनिया[नईदुनिया] ने साहस दिखाया और यह खबर पहले पेज पर सबसे ऊपर आठ कालम में जगह पा गई। इतना ही नहीं अखबार ने अगले दिन फालोअप भी उसी दिलेरी से छापा। इंडियन एक्सप्रेस ने भोपाल संवाददाता मिलिंद घटवई की विशेष रिपोर्ट प्रकाशित की जिसे हम आप से साझा कर रहे हैं। मिलिंद घटवई ने भोपाल अदालत के जिस चपरासी से बात कर रिपोर्ट तैयार की उसने कहा कि मै सूरज यादव की पीड़ा और मनःस्थिति समझ सकता हूँ।एक बार तो गाड़ी चलाते वक्त मै खुद इतना उत्तेजित हो गया था कि एक्सिडेंट कर एक सब कुछ हमेशा के लिए खतम कर देना चाहता था पर बाल बच्चों के भविष्य का ध्यान आते ही अपने पर काबू करना पड़ा।पहचान जाहिर ना करने की इल्तिजा करते हुए उसने बताया कि वह बेहद गरीब है और नौकरी खोने से बर्बाद हो जाएगा।प्रताड़ना के खिलाफ आवाज उठाने की जुर्रत करने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई और बर्खास्तगी की धमकी दी जाती है। भोपाल की अदालत मे 63 जज और 13 अतिरिक्त जिला जज हैं। केवल अतिरिक्त जिला जजों और उनसे ऊपर के जजों को ही घर के लिए चपरासी मिलते हैं।यहाँ 140 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हैं जिन्हे वेतन भले राज्य सरकार से मिलता है पर होते वे हाईकोर्ट के प्रशासकीय नियंत्रण मे हैं। न्यायाधीशों के ब्रीफकेस और फ़ाइलें घर से अदालत और वहाँ से घर ले जाना उनकी ड्यूटी में शुमार है।कोर्ट में उन्हें जज की किसी भी समय बजने वाली घंटी पर हाजिर होने के लिए हमेश मुस्तैद रहना पड़ता है। ड्राईविंग लाइसेंसधारी चपरासियों को ड्राइवर के पद पर तरक्की मिल जाती है जो तीसरे दर्जे का कर्मचारी होता है।paper-clip-peon-image इंडियन एक्सप्रेस से बात करने वाले चपरासी की ड्यूटी सुबह 9.30 बजे बंगले पहुँचने के साथ शुरू हो जाती है। वहाँ उसे फाइलों का गट्ठा और ब्रीफकेस कार मे रखना होता है और अदालत पहुँचने पर जज के कक्ष मे ले जाना होता है। शाम पाँच बजे तक उसे कोर्टरूम के आसपास ही चौकस रह कर तैनात रहना पड़ता है। थोड़ी ठसक के साथ वह बताता है की उसके अलावा और किसी को भी जज साहब की टेबल तक पेपर ले जाने की इजाजत नहीं है। इस बीच दो बजे उसे खाना खाने के लिए एक घंटा जरूर मिल जाता है,इससे फारिग होते ही उसे अदालत की अस्थायी जेल से आरोपियों को बुलाना पड़ता है। पुलिस को अदालत के दस्तावेज़ सौपने का काम उसका ही है ,तभी पुलिस आरोपी को कोर्टरूम ले जाती है। कोर्ट मे वापस आकर उसे केस के फरियादियों की पुकार लगानी पड़ती है जो गलियारे मे सुनवाई का इंतजार कर रहे होते हैं।सुनवाई पूरी होने पर शाम 6.15 बजे उसे कार को पोर्च मे लाने का आदेश होता है।उसे अपने घर पहुँचते-पहुँचते रात के आठ बज जाते हैं जिसके बाद थक कर चूर हो जाने से वह बिस्तर पर ढेर हो जाता है। उसे 12 हजार वेतन मिलता है। हमेशा वर्दी में रहना होता है पर साल मेंकेवल दो जोड़ी वर्दी और ठंड में कोट मिलता है पर सिलाई कम मिलती है। बारिश के समय बरसाती मिलती है। बीस साल की नौकरी के बाद ही उन्हें सरकारी मकान नसीब हो पाता है वह भी बड़ी मुश्किल से। paper-cliping-suraj-003 सभी चपरासी बंगला ड्यूटी के मुक़ाबले कोर्ट ड्यूटी को बेहतर मानते हैं। बंगले में उन्हें बर्तन मांजने, फर्श की सफाई, कपड़ों पर इस्तरी, सब्जी लाने, बच्चों को स्कूल छोड़ने और जूता पालिश जैसे काम करने पड़ते हैं। बंगला ड्यूटी गुलामो जैसी होती है, कुछ जज जूतों के लेस बँधवाने से भी नहीं हिचकते हैं। उन्हें छुट्टी देने से इंकार किया जाता है जिसका जिक्र सूरज यादव ने सुसाइड नोट मे भी किया है और यह उसकी ख़ुदकुशी का बड़ा कारण है। छुट्टी की मंजूरी को वे बड़ी उपलब्धि मानते हैं जबकि उन्हे भी अन्य सरकारी कर्मचारियों की तरह सीएल और ईएल की पात्रता है।कर्मचारियों के संगठन ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से संपर्क कर अपनी ड्यूटी के कार्यों के बारे मे स्पष्ट दिशा निर्देश की मांग की है। अगर कार्रवाई न हुई तो भटकेगी मेरी आत्मा..! साहब याने जज दंपत्ति की प्रताड़ना से तंग चपरासी सूरज यादव द्वारा फांसी लगाकर ख़ुदकुशी करने की घटना से केवल न्यायपालिका पर सवाल उठाना सही नहीं होगा। दरअसल खलासियों, चपरासियों और अन्य छोटे कर्मचारियों से कार्यपालिका और विधायिका मे भी कमोबेश ऐसा ही सुलूक होता है।फर्क बस इतना है कि जजों का मामला पहली बार सार्वजनिक हुआ है जो वहाँ की घुटन को बयान करता है जबकि अन्य दफ्तरों मे यह वर्ग खुल कर पीड़ा बयान करता रहता है जिस पर मलहम लगते रहने से ऐसे दर्दनाक हादसे नहीं हो पाते हैं। paper-cliping-suraj     सागर जिला अदालत में चपरासी सूरज यादव ने सुसाइड नोट में बेहद तल्खी से एडीजे बीपी मरकाम और मजिस्ट्रेट पत्नी रेखा मरकाम पर प्रहार किए हैं। उसके मुतंबिक कोर्ट ड्यूटी के अलावा उसे बंगले पर भी झाड़ू-पोंछा और कपड़े-बर्तन धोने जैसे काम भी करने पड़ते हैं।मना करने पर नौकरी से निकालने की धमकी दी जाती है। दुर्गापूजा की छुट्टी मांगने पर झूठी शिकायत की और बंगले पर गाली गलौज किया। उसने यह भी लिखा है कि सभी के साथ ऐसा होता है पर मेरी सहनशक्ति खत्म हो गई है। अब भी अगर इनके खिलाफ कोई कार्रवाई ना हुई तो सब ऐसे ही मरते रहेंगे। अगर मेरे मरने के बाद भी इन अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई तो मेरी आत्मा भटकती रहेगी। उसने पुलिस को चेतावनी देते हुये लिखा है कि यदि सुसाइड नोट को छिपाने की कोशिश की तो भूत बन कर उसे छोड़ूँगा नहीं।उधर सूरज की माँ राजबाई ने ने बताया कि पिछले 15 दिन से वह मानसिक paper-cliping-suraj002तौर पर बेहद परेशान था और खाना भी भरपेट नहीं खाता था।माँ का कहना है कि भृत्य भी सम्मान चाहते हैं और उनकी ड्यूटी बंगलों पर ना लगाई जाए। बहन स्वाति ने बताया कि सूरज ने मकान बनाने के लिए चार लाख का लोन लिया था जिसकी किश्त उसके वेतन से काटी जाती थी। नौकरी और बैंक का लोन चुकाने के लिए वह सभी यातनाएं सहता रहा। वह एक साल से एडीजे मरकाम की अदालत मे पदस्थ था। जनहित मिशन डॉटकॉम से साभार


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