ममता यादव।
भाजपा 24 घंटे 7 दिन चुनावी मोड में रहती है
संगठन, कार्यकर्ता और सब्र भाजपा की ताकत है।
संगठन का मतलब शक्ति होता है।
जिन कार्यकर्ताओं को किसी संगठन से जुड़ने से शक्ति का एहसास होगा वे उसी से जुड़ेंगे और वह संगठन और भी ज़्यादा शक्तिशाली होता जाएगा।
भारतीय जनता पार्टी और उससे जुड़े संगठनों से अगर कुछ सीख सकते हैं देश के राजनीतिक दल तो यह सीखें कि, संगठन कैसे बनाया जाता है, कैसे लंबा सब्र किया जाता है, कैसे हर एक कार्यकर्ता तक शक्ति का संचार किया जाता है और कैसे आंतरिक कलह से संगठन को सुरक्षित रखा जाता है।
चुनाव सिर्फ और सिर्फ संगठन ही जीतते हैं। चुनाव जीतना कोई 2 महीने का खेल नहीं है यह एक लंबी प्रक्रिया है।
आज भी उनके शीर्ष नेताओं के प्लान सुबह से तैयार मिले होंगे। भाजपा के मोदी-अमित शाह जैसे शीर्ष नेता एक सामान्य सभा को गम्भीरता और उत्साह से हैंडल करते हैं। उनके यहां अघोषित ट्रेनिंग चलती रहती है।
कभी कांग्रेस के महाराज रहे ज्योतिरादितय सिंधिया अब सिर्फ एक नेता नजर आते हैं जमीन पर। कभी जनता से बहुत दूर रहते थे अब हर दूसरे दिन कुछ न कुछ जनता के बीच सिंधिया इवेंट है।
आप भले ही नजरअंदाज कर दें मगर यह तैयारी अगले चुनावों की है।
राजनीतिक दलों को ध्यान देना होगा कि जनता छोटी सी बात पर खुश हो जाती है और बहुत ही छोटी बात दिल से लगा लेती है वोटिंग तक। उसे समझने के लिए आपको जनता बनकर ही बात करनी होगी। उनके स्तर पर आकर बात करनी होगी।
हाल के चुनावों में बाकी लाभार्थी योजनाओं ने तो कमाल दिखाया ही है। मगर भाजपा की गोरिल्ला छाप चुनावी रणनीति ने उसकी जीत में अहम भूमिका निभाई है।
एक वीडियो मुझे अभी भी याद है पिछले महीने एक मुस्लिम नेता अपनी कम्यूनिटी के लोगों को सामूहिक रूप से भाजपा को वोट देने के लिए प्रेरित कर रहे थे। शायद भाजपा से ही जुड़े हुए थे स्थानीय स्तर पर। उन्होंने लोगों को वो बताया जो वाकई समझ आया। दूसरी पार्टियों की टिकटनीति से लेकर भाजपा की बाकी गतिविधियों तक। जिसमें फायदा हर वर्ग को पहुंचा है।
भाजपा सरकारों के राज में हिंदू—मुस्लिम सिर्फ सोशल मीडिया पर ही दिखता है। बाकि जमीनी स्तर पर देखें तो मुस्लिमों के लिए वाकई भाजपा ने काम किया है और मुस्लिम इसे समझता भी है।
विपक्षी भाजपा से होड़ के चक्कर में मुस्लिम वोटों से अघोषित रूप से दूर हो गए।
खैर यह एक अलग विषय है। चुनावी मोड के विषय पर आते हैं।
भारतीय जनता पार्टी के विपरीत दूसरे दल साढ़े चार साल आराम की मुद्रा में रहते हैं। चुनावी साल में सक्रिय होते हैं, दो—तीन महीने कैंपेनिंग हंसी ठट्ठा,उसमें भी इनका एक ही ट्रैक रिकार्ड चलता है मीडिया को कोसना, जनता को यह बताना कि देखो हम आ गए अब भाजपा गई।
आप लाख इस तथ्य को झुठला लें मगर सत्य यही है कि मोदी और भाजपा को मजबूत बनाने में सबसे बड़ा योगदान अंध समर्थकों और विपक्षी पाटियों के तर्कहीन विरोधी विचारों का ज्यादा है।
कांग्रेस और सपा सहित तमाम पार्टियों को आत्ममंथन, पार्टी अनुशासन और अपनी ही पार्टी में आपसी चर्चा की बहुत जरूरत है।
बाहर वालों को टिकट दोगे अपनों को किनारे करोगे, जनता के सामने दुत्कारोगे तो क्या मिलेगा? कार्यकर्ता पार्टी की ताकत होता है, इसे पार्टियों को समझना होगा। बतौर विपक्ष भी जिम्मेदारी मिली है तो निभाईये तरीके से।
Comments