प्रोपेगेंडा की राजनीति में बाबा बड़े काम के साबित होते हैं

खरी-खरी            May 18, 2023


 

हेमंत कुमार झा।

बाबा ने जोर से कहा, "भारत हिन्दू राष्ट्र बनेगा...", लाखों की भीड़ उत्साहित हो कर तालियां बजाने लगी, जयकारा लगाने लगी।

भीड़ में हर तरह के लोग थे। कर्ज में डूबे किसान, पकी हुई दाढ़ी के साथ बरसों से बेरोजगारी झेलते लोग, नए जमाने के साथ कदमताल करते, माथे को चारों ओर से छिलाए और ऊपर में काले द्वीप की तरह नजर आते बालों वाले युवा, बेटी की शादी और बेटे की नौकरी के लिए दिन रात चिंता से असमय बूढ़ी हो रही गृहणियां, खाए, अघाए, मुटाते चले जाते अधेड़-अधेड़नियां, भीषण गर्मी से हलकान लेकिन कौतूहल से भरे बच्चे...।

बाबा प्रवचन दे रहे हैं, भक्ति की धारा बहा रहे हैं, भीड़ के सामने आरामदेह सोफे की कतारें लगी हैं जिन पर भाजपा के मंत्री, पूर्व मंत्री, सांसद, विधायक आदि विराजे हैं, संभव है कुछ और पार्टियों के नेता भी हों...भजनों की स्वर लहरियों के साथ ताल से ताल मिलाते, भक्ति की धारा में बहते चले जाने का पोज देते।

बिहार का मीडिया ही नहीं, देश की मुख्यधारा का मीडिया, जिसे आजकल प्रचलित भाषा में 'गोदी मीडिया' कहा जाता है, इन तमाम घटनाक्रमों को इस तरह कवरेज दे रहा है जैसे इतिहास करवटें ले रहा हो, बिहार की अभिशप्त धरती के उद्धार के लिए कोई अवतारी पुरुष अपने दिव्य चरण लिए आ गया हो।

खुद को नंबर वन बताने वाला देश का 'सबसे तेज' चैनल आज दोपहर में बाबा के रोड शो का लाइव प्रसारण कर रहा था और माइक लिए उसका रिपोर्टर चीख रहा था, "ये देखिए बाबा हाथों को हिलाते अब दाएं घूमे और इधर का जन सैलाब कैसे उनकी एक झलक पाने को आतुर हो एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ लगा रहा है।

बाबा प्रतिदिन 'हिंदू राष्ट्र' बनाने का संकल्प दोहराते हैं और पूरी निष्ठा से मीडिया का बड़ा हिस्सा इसे दोहराता है, तिहराता है।

बिहार को 'अपना' बताते बाबा अब थोड़ा अधिक पिन प्वाइंटेड होते हैं, "देश को हिंदू राष्ट्र बनाने में बिहार की मुख्य भूमिका होने वाली है।"

जाहिर है, नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के एक मंच पर आने से बिहार की राजनीतिक जमीन भाजपा के लिए बेहद सख्त हो गई है। इस सख्त जमीन को तोड़ना है, अधिक से अधिक वोटों की फसल उगानी है।

कुछ दिलजले विश्लेषक डरा रहे हैं कि नीतीश-तेजस्वी और वाम की जुगलबंदी 2024 में भाजपा को बिहार में सिंगल डिजिट में समेट सकती है।

2024 में बड़े दांव लगे हैं, कितनी सरकारी कंपनियां और परिसंपत्तियां अभी भी बची हैं। उन्हें निजी हाथों में देने का टास्क अभी तक पूरा नहीं हुआ है।

राहुल गांधी के तेवरों से और विपक्ष के कई बड़े नेताओं के नीतीश कुमार को मिल रहे समर्थन से कारपोरेट का एक प्रभावी तबका सहमा हुआ है।

पता नहीं, नीतियों में क्या फेरबदल हो, पता नहीं देश कौन सी दिशा पकड़ ले, चहेते कार्पोरेट्स की लिस्ट में किसका नाम रहे न रहे।

अभी तो रेलवे बिकना शुरू ही हुआ है, अभी तो बिकने वाले बैंकों की लिस्ट पर ही माथा पच्ची हो रही है, अभी तो आयुध निर्माण में निजी वर्चस्व कायम करने का टास्क भी अधूरा ही है, कितने सारे टास्क बचे हुए हैं।

सबसे बड़ा प्रॉब्लम, राज करने का सुख छिन न जाए, इस आशंका से कितने प्रचारक, कितने नेता, कितने पत्रकार, कितने एंकर, न जाने कौन-कौन, न जाने कितने-कितने लोग दुबले हुए जा रहे हैं।

बिहार में महागठबंधन एक बड़ी बाधा, विरोध का एक सशक्त प्रतीक बन कर उभरा है।

हिंदू राष्ट्र जैसी बातों की छाया में कितनी-कितनी बातें हो रही हैं। इधर 'सनातन' शब्द का प्रयोग भी कुछ अधिक ही किया जाने लगा है।

बिहार में गाड़ियों के आगे क्रुद्ध हनुमान जी के रेखांकन वाले झंडों की संख्या बढ़ गई है। पता नहीं, वे किस पर क्रुद्ध हैं? लेकिन, उनकी फोटो को गौर से देखो तो लगता है कि "कुमति निवार सुमति के संगी" हनुमान जी वाकई भारी नाराज हैं।

अब यह तो वही तय कर सकते हैं कि कुमति किसको कहते हैं और इससे ग्रस्त कौन है, कौन सी शक्तियां मानवता के लिए खतरा बन कर आ खड़ी हुई हैं।

2024 में बिहार बड़ी चुनौती बन सकता है इसलिए, धंसी आंखों में रोजगार की ललक लिए लोगों को हिंदू राष्ट्र के सपने दिखाने हैं, काल्पनिक दुनिया बसानी है जिसमें "विप्र धेनु सुर संत हित" राज कायम करना होगा।

ऐसे ऐसे बड़े-बड़े बाबाओं के बड़े प्रभाव होते हैं, प्रोपेगेंडा की राजनीति में ये बड़े काम के साबित होते हैं। इसलिए नेता चरणों पर बिछे जा रहे हैं, भजनों पर झूमे जा रहे हैं। लाखों की भीड़ उत्साहित, उन्मादित हुई जा रही हैं।

बाबा शहर के सबसे पॉश इलाके के सबसे महंगे होटल में ठहरे हैं, आधी-आधी रातों को बड़ी संख्या में भक्त गण होटल के सामने बिछे नजर आते हैं।

बाबा हिंदू राष्ट्र की कल्पना साकार करेंगे, जिसमें राम राज्य होगा, जहां "दैहिक दैविक भौतिक तापा" आदि का कोई नामोनिशान नहीं होगा, जिसमें सबको रोजगार मिलेगा, सबका इलाज होगा, सब पढ़ेंगे, सब आगे बढ़ेंगे।

लेखक पटना यूनिवर्सिटी में एसोशिएट प्रोफेसर हैं।

 



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