राकेश दुबे।
चुनाव जो न कराए थोडा है। कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ही प्रदेश में धार्मिक हो गई है।दोनों का लक्ष्य एन- केन- प्रकारेण चुनाव जीतना है चाहें उसके लिए कुछ भी कहना सुनना और करना पड़े कोई गुरेज नहीं।
जैसे कांग्रेस ने मुख्यमंत्री पद का कोई दावेदार घोषित नहीं किया है,लेकिन अपने समर्थकों के माध्यम से नेताओं ने अपने को मुख्यमंत्री बनाने के जतन करना शुरू करवा दिये हैं| इनमे कथा भागवत से लेकर तन्त्र मन्त्र सब कुछ शामिल हैं। छिंदवाडा जिले की आदिवासी बाहुल्य सीट जुन्नारदेव में कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और छिंदावाड़ा से सांसद कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के लिये महायज्ञ और देवपूजा की गयी। इस पूजा का उद्देश्य और फल पूरी निर्वाचन प्रक्रिया और राजनीति समझ पर प्रश्न चिन्ह है।
इस पूजा का आयोजक कांग्रेस का आदिवासी प्रकोष्ठ था। जिसने आदिवासी परंपरा के अनुसार यज्ञ को संपन्न कराया। यज्ञ के हवन कुंड को १०१ गाँव की मिट्टी से तैयार किये जाने की खबर है। इसमें १२१ गावों के सामाजिक झंडों को एकत्र कर ध्वजा बनाई जाने के भी समाचार है। कहते है ११धर्माचार्यों ने आदिवासी रीतिरिवाज से कमलनाथ को मुख्मंत्री बनाने के लिये यज्ञ में आहुतियां दी।
इस दौरान आदिवासियों से अपने कुलदेवता से कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के लिये प्रार्थना भी कराई गई। इसी तरह चौरागढ़ की पहाड़ियों की शुरु होने वाली पहली पायरी के मैदान में आदिवासी समाज ने बड़ा देव की पूजा भी इसी उद्देशय को लेकर की गई। दरअसल, गुना सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ कांग्रेस की और मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार माने जा रहे हैं। दोनों कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते। ग्वालियर और दिल्ली में सिंधिया समर्थक ऐसे ही काम में जुटे हैं।
भाजपा भी कहाँ पीछे रहने वाली है। उसके आयोजन में तो भगवान से भी मनचाही बात कहलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। भोपाल के हुजुर निर्वाचन क्षेत्र के हिरदाराम नगर में हो रही भागवत कथा में बेटी कथा के बचाओ, बेटी पढ़ाओं की योजना का विज्ञापन कुछ इस तरह हो रहा है।
वक्ता ने भागवत का वाचन करते हुए कहा कि भगवान से कहलवा दिया कि “जिस घर में कन्या धन है उस घर में मेरा वास है। बेटियों को पढ़ाना, लिखाना, उनकी अच्छी परवरिश करना,उनका सम्मान करना तो मैं अगले जन्म में तुम्हारे घर पुत्र बन कर आऊंगा ।”
यह सब राजनीतिक छल दुर्भाग्य से उस देश में चल रहे हैं, जहाँ धर्म और कर्मकांड का अर्थ आत्मकल्याण है। इसमें शामिल जो नेता अपने जिस चुनाव की शुरुआत इन हथकंडों से कर रहे हों , उनसे स्वस्थ प्रजातान्त्रिक प्रक्रियाओं का पालन करने की अपेक्षा कोई समझदारी नहीं है।
 
                   
                   
             
	               
	               
	               
	               
	              
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