जनादेश 2024 भाजपा को मंथन का मौक़ा

खरी-खरी            Jun 08, 2024


राकेश दुबे।

अठारहवीं लोकसभा के लिए  जनादेश 2024 ने साफ किया है कि भारतीय जनता लोकतंत्र यज्ञ में किसी भी दल को स्वच्छंद व्यवहार की अनुमति नहीं देती।

सात चरणों के चुनाव के बाद आए अप्रत्याशित आकलनों-भविष्यवाणियों से अलहदा जो परिणाम सामने आए, उन्होंने सबको चौंकाया है। पिछले आम चुनाव में लगातार भारी बहुमत से सत्ता में आई भाजपा इस बार अपने बूते पूर्ण बहुमत से दूर रह गई और कांग्रेस नीत इंडिया गठबंधन ने इन चुनावों में उम्मीदों से कहीं ज्यादा सफलता हासिल की। अब कांग्रेस को लोकसभा में विधिवत विपक्षी नेतृत्व का अधिकार मिलेगा।

जनता जब लोकप्रहरी की भूमिका में आ जाती है। तब सामने कितना भी कद्दावर नेता क्यों न हो, जनता देश में सशक्त विपक्ष की भूमिका निबाहती भी है। देश में आपातकाल के बाद भी बदलाव का जनादेश आया था।

सही मायनों में यह जनादेश किसी की जीत व हार का नहीं, बल्कि लोकतंत्र की जीत का है। विपक्ष आरोप लगाता रहा है कि सत्तारूढ़ दल निरंकुश व्यवहार करते हुए सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग विपक्षी नेताओं को भयभीत करने को करता है। कुछ विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों व मंत्रियों को राजनीतिक दुराग्रह के लिये जेल भेजने के आरोप भी लगे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि गठबंधन सरकार के दौर में अब सत्ताधीश निरंकुश व्यवहार नहीं कर पाएंगे। इन नतीजों के दूरगामी परिणाम होंगे।

हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड और जम्मू-कश्मीर में होने वाले विधानसभा चुनाव पर भी इन परिणामों का असर दिख सकता है। वहीं, इन चुनाव परिणामों ने समता-ममता के लोकतंत्र की जरूरत को पुष्ट किया है। इस जनादेश ने भारतीय संवैधानिक संस्थाओं को मजबूती की जरूरत भी बतायी है।

इन चुनावों परिणामों ने सत्ताधीशों को बताया है कि बेरोजगारी, महंगाई और आम जीवन से जुड़े मुद्दों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। हरियाणा व राजस्थान में अग्निवीर भर्ती प्रक्रिया का प्रतिकार युवाओं की अभिव्यक्ति के रूप में इन चुनावों में नजर आने की बात कही जा रही है।

पेपर लीक की घटनाओं ने युवाओं को ही नहीं, उनके परिजनों को भी व्यथित किया। युवाओं के देश में हर हाथ को काम देना सरकारों को अपनी प्राथमिकता बनानी होगी।

उत्तर प्रदेश में भाजपा की सीटों में गिरावट पार्टी को आत्ममंथन का मौका है । वहीं उड़ीसा व अरुणाचल में भाजपा की अप्रत्याशित कामयाबी भी सामने आई है। अब केरल में उसका खाता खुला है और तेलंगाना में सीटें बढ़ी हैं। उसका वोट प्रतिशत भी कमोबेश बढ़ा है, भले ही ये वोट सीटों में न बदल सके हों।

दिल्ली, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल व गुजरात में उसकी कामयाबी जरूर पार्टी का उत्साह बढ़ाने वाली है। इसके विपरीत हरियाणा में डबल इंजन की सरकार के बावजूद कांग्रेस की बढ़त पार्टी के लिये चिंता बढ़ाने वाली है, क्योंकि राज्य में इसी साल विधानसभा चुनाव भी होने हैं। भाजपा के एक पक्ष में एक बात यह जरूर है कि देश में वर्ष 1962 में पं. नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस के लगातार तीसरे बार सरकार बनाने का रिकॉर्ड इस बार नरेंद्र मोदी दोहरा सकते हैं। वास्तव में यह पार्टी के लिये आत्ममंथन का मौका है कि क्यों पार्टी को अपने बूते सरकार बनाने का अवसर नहीं मिल पाया। यह भी कि अब पार्टी स्वीकारे कि लोकतंत्र सत्तापक्ष और विपक्ष के सामंजस्य व तालमेल से ही समृद्ध होता है। मजबूत विपक्ष लोकतंत्र में सचेतक की भूमिका निभा सकता है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

 



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