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ऐसी कार्यवाही से आसान नहीं होगा आम आदमी का सफर साहब

खरी-खरी            Dec 30, 2023


नितिनमोहन शर्मा।

नेता ही हैं ट्रांसपोर्ट माफ़िया

बेलगाम बसों, होती दुर्घटनाओं, अराजक सफर के पीछे दोनो दलों के नेता

नेताओ की बसों के ड्राइवर-कंडक्टर को किसका ख़ौफ़? नशा कर दौड़ा रहे बसें

परमिट-फ़िटनेस से क्या होना जाना? चालक-परिचालक की कंसी जाए मुश्कें

जिन रूट्स पर घाटा बताकर बंद की रोडवेज, उन जगहों पर दौड़ रही नेताओ की बसें, खूब कमाई

शिक्षा, स्वास्थ, सुरक्षा सरकार के जरूरी काम है तो क्या सुगम सुरक्षित सफर सरकार का काम नहीं? फिर क्या कारण है देश में केवल मध्यप्रदेश ही ऐसा राज्य क्यों जहां सरकार समर्थित परिवहन नही? सब कुछ निजी हाथों में। समूचा सफर सरकारी नियंत्रण से बाहर क्यों?

घाटा बताकर बंद किये गए रोड़वेज के बाद इस प्रदेश में लक्जरी बसों से महंगे सफर का कारोबार कैसे फिर फलफूल रहा है? बेतहाशा रफ्तार से दौड़ती बेलगाम बसों के आगे सरकार क्यो बेबस है?

नई सरकार से उम्मीद है कि वे सरकार के नियंत्रण में फिर से बसों का संचालन लाये। अन्यथा गुना जैसे हादसे होते रहँगे।

13 जिंदगियों को राख कर देने वाले गुना बस हादसे से भी अगर सरकार सबक ले लेवे तो भविष्य में निर्दोष मुसाफिरों की जान बच सकती हैं। यात्रियों का सफर सुगम हो सकता हैं। डॉ मोहन यादव सरकार प्रदेश की परिवहन व्यवस्था पर श्वेत पत्र लेकर आये।

इससे ख़ुलासा हो जाएगा कि समूचे हिंदुस्तान में सिर्फ मध्यप्रदेश में ही बसें क्यों बेलगाम हैं? क्यो आये दिन बस हादसे हो रहें हैं? अधिकांश बसों के पीछे कोई न कोई नेता खड़ा है। इसमें दोनो दल के नेता शामिल हैं।

बसों का संचालन लाभ का सौदा हो चला है, तभी तो सरकारी परिवहन व्यवस्था प्रदेश में खड़ी नहीं की जा रही हैं। उसकी जगह निजी कम्पनियां बनाकर बसों का संचालन कर ये जताने की फर्जी कोशिशें की जा रही है कि इस संचालन के पीछे सरकार है और उसका निगरानी तन्त्र है। जबकि ऐसा कुछ नही। इस सबके पीछे नेता है।

 1-1 करोड़ की दौड़ती वॉल्वो बसें क्या किसी सामान्य बस आपरेटर की है? जांच करें तो ख़ुलासा हो जाये कि इन बसों के पीछे पैसा किसका लगा हुआ है। क्या करेगा आरटीओ, क्या करेगा उसका उड़नदस्ता? किस पर नकेल कसेगा?

गुना की जिस बस ने 13 जिंदगियों को राख के ढेर में बदल दिया, वो भी भाजपा नेता की थी। हैरत की बात है कि इस नेता की ऐसी दर्जनभर बसें है और सब बिना परमिट फ़िटनेस। सस्पेंड आरटीओ ओर अन्य अफसर हो गए। नेताजी का क्या हुआ? उनका बाल भी बांका नही हुआ। बस इसी कारण प्रदेश के लाखों मुसाफिरों का सफर राम भरोसे या ट्रांसपोर्ट माफिया भरोसे ही चल रहा है। कही कोई निगरानी तंत्र है ही नहीं।

हैरत की बात है कि जिस रोडवेज को ये कहकर बंद कर दिया गया कि वो घाटे में चल रहा है तो फिर उसी सिस्टम में दौड़ती नेताओं की बसें कैसे एक साल में एक से दो हो रही हैं? इसका जवाब किसी के पास है क्या? जवाब तो इसका भी नहीं कि सामान्य बसों की जगह इस प्रदेश में वॉल्वो बसों का महंगा सफर कैसे ओर किसके इशारे पर दिन दूना रात चौगुना फल फूल रहा है?

जैसी भी थी सरकारी बस, आम आदमी का सफर तो आसान था। मुसाफ़िर सरकार समर्थित परिवहन व्यवस्था का हिस्सा था। उसे भरोसा था कि कुछ गड़बड़ हुई तो सरकार सम्बंधित ड्राइवर कंडक्टर को सस्पेंड कर देगा। निजी बसों में ये काम किसके जिम्मे है?

कई बड़े ट्रेवल्स सरकार की बेबसी का सर्वोत्तम उदाहरण

 आये दिन नामदार ट्रवल ट्रेवल कम्पनियों की बसों की अराजकता के किस्से सामने आते हैं लेकिन कार्रवाई क्या होती हैं, किसी को कुछ पता है? देखते ही देखते हंस का साम्राज्य कैसे बढ़ गया? कौन कौन नेताओं की बसें इससे जुड़ी हैं? ऐसे ही अन्य ट्रेवल्स वाले हैं।

अधिकांश नेताओं की सरपरस्ती में संचालित हैं। तभी तो ये ट्रांसपोर्ट माफिया सरेआम वार-त्योहार यात्रियों की मजबूरी का बेशर्मी से फायदा उठाता है और किराया सामान्य दिनों से दुगना-तिगुना तक वसूल लेता है। क्या रोडवेज ऐसे वार-त्यौहार किराया बढ़ाती थी?

फिर भी आज तक किसी ने जुर्रत नही की कि आप ऐसे कैसे किराया बड़ा रहे हो? इंदौर से पड़ोसी प्रान्तों में जाने वाली बसों में ये अराजकता पूरे सालभर है लेकिन कही कोई सुनवाई नही। सफर में भी नवधनाढ्य की ही चिंता नजर आती है। आम आदमी के लिए सुरक्षित, सुगम और सस्ते सफर के बंदोबस्त कही नजर आते हैं?

परमिट-फ़िटनेस से क्या? जब ड्राइवर ही नशे में हो

क्या होगा बस का परमिट फ़िटनेस अपडेट हो, ज। ड्राइवर ही नशे में हो। उसको कौन जांचेगा? यात्री की जान का मालिक ड्राइवर ही होता है और इस जरूरी व्यक्तित्व पर कही कोई बात ही नही। बेतहाशा रफ्तार से दौड़ती और परस्पर रेस लगाती बसों के पीछे ड्राइवर ही तो है। उन पर क्या नियम कायदे? अब तो वे सरकारी भी नही हैं। बस, बस मालिक के मुलाजिम है। सरकार के नियंत्रण से बाहर।

किसी को याद है कि सालों में कोई ऐसा आदेश, कार्यशाला, नियम कायदे सामने आए जो सिर्फ ड्राइवर कंडक्टर पर केंद्रित हो। 90 लाख या 1 करोड़ की लक्ज़री बस से क्या होना जब बस के स्टियरिंग किसी नशे करे हुए चालक के हाथ मे हो? पड़े लिखे भी बस का लक्जरी होना ही जांच रहे। ड्राइवर कंडक्टर नही, कि वे कौन है-कैसे है? नशाखोर तो नही? अपराधी तो नही।

 



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