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क्यों आप अपनी गारंटी के आगे प्रश्नवाचक विस्मयादिबोधक से घिरे नजर आने लगे

खरी-खरी            Jun 05, 2024


प्रकाश भटनागर!

बात लोकसभा चुनाव के नतीजों में उलटफेर भर की नहीं है] बात उन उलटबासियों की भी है, जिसका दोष यदि सिर्फ और सिर्फ आपको दिया जाए, तो शायद गलत नहीं होगा।

मुमकिन है कि आप फिर से सरकार बना लें,  लेकिन यह खुद आप भी जानते हैं कि मामला उतना असरकार नहीं होगा, जितना दिख रहा था। जैसा कि आप दिखा रहे थे।

कहाँ तो चार सौ पार का दंभ और कहां हालात यह कि बहुमत के लिए कोहनी के बल रेंगने की नौबत आ गयी! निश्चित ही आपके ऊपर 'सब कर लेंगे' वाला भरोसा दिख रहा था। ऐसा परिदृश्य आपने ही निर्मित किया। 'आऊंगा तो मैं ही' वाले अति-आत्मविश्वास में चूर होकर। फिर भी ऐसा नहीं हो पाया।

हां, जो आपके लिए कर सकते थे, उन्होंने उसमें कोई कसर नहीं छोड़ी। मध्यप्रदेश की सभी सीटों पर खिला कमल इस बात की एक नजीर मात्र है। इसके लिए निश्चित ही मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा जी बधाई के पात्र हैं। लेकिन खुद आप क्यों नहीं वह कर सके, जिसकी बात कह रहे थे?

 चार सौ पार तो दूर, आप अपनी पार्टी की दम पर बहुमत के लिए आवश्यक आंकड़ा भी नहीं जुटा सके। हालांकि यह आप ही हैं, जिनके चलते बीते दो आम चुनावों में लगातार कमल का फूल अपनी दम पर स्पष्ट बहुमत के साथ खिला।

निश्चित ही यह आप ही हैं, जिन्होंने ऐसे नतीजों के बाद भी सहयोगी दलों को पर्याप्त मान-सम्मान और पारितोषिक भी दिए। लेकिन इस बार क्या हो गया?

क्यों आप खुद ही अपनी गारंटी के ठीक आगे कहीं प्रश्नवाचक तो कहीं विस्मयादिबोधक चिन्ह से घिरे नजर आने लगे हैं?

आखिर ऐसा क्या है कि जिन्हें आपने लगातार निशाना बनाया, वह राहुल गांधी रायबरेली सहित वायानाड में उतने मतों से जीत गए, जिस संख्या से बहुत कम (शर्मनाक) आंकड़े के साथ आप को जीत हासिल हो सकी?

यह उलटबासी जैसा मामला ही है, कहीं न कहीं आप एक भयावह रिवर्स गेयर लगा बैठे। कम से कम बीते पांच साल के आपके आचरण का अवलोकन करें तो यह अनगिनत अवसर पर साफ़ हुआ कि आप खुद को पार्टी से ऊपर मानने की प्रलयंकारी भूल कर बैठे।

जो लोग राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के एक कर्तव्यनिष्ठ कार्यकर्त्ता के रूप में आपकी तत्कालीन तस्वीरों को पूजते, हैं, खुद वह भी यह देखकर हताशा में आ गए होंगे कि किस तरह आपने संघ के लिए अपने उस संग को तिलांजलि दे दी, नतीजा सामने है।

आपके ही कार्यकाल में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने सामाजिक समरसता के अपने अभियान को गति दी। उसके लिए जमकर  पसीना बहाया।

जाहिर है कि संघ का काम सरकार चलाना नहीं है लेकिन, कम से कम आपका कर्म तो संघ की नीति और नीयत को समझने का भी था।

फिर समाज में एकता के विषय को भला कैसे किसी भी तरह से गलत कहा जा सकता है? लेकिन आपने इस मामले में एक के बाद एक वह कदम उठाए कि संघ की कोशिशों से परे विपक्ष जातिगत आधार पर बहुसंख्यक वोट को भी भाजपा से नाराज कर अपनी ओर खींचने में लगभग पूरी तरह सफल हो गया।

आपकी उपलब्धियों पर कोई संदेह नहीं, उलटा गर्व है लेकिन. उस सबका असर क्या हुआ? कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति सहित अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण की उपलब्धियां कैसे आपके वोटर के मस्तिष्क से तिरोहित हो गईं?

आपकी लोकप्रियता और स्वीकार्यता आज भी निःसंदेह है, किंतु अब वह पड़ताल आपको ही करना होगी, जो आपके पक्ष के तमाम सकारात्मक पहलुओं के बाद भी आज के नतीजों में आपकी आशाओं के पहलू को कचोटने वाले अंदाज से भर गयी।

खैर, सफलता फिर भी सफलता है, किंतु यदि उसमें मलाल का तत्व भी शामिल हो जाए, तो क्या उसका गौरव महसूस किया जाना चाहिए? यह आप ही तय कीजिए।

 



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