अरूण पांडे।
सीतारमण समझा नहीं पाईं, लेकिन कार बिक्री में कुछ कमी की वजह ओला-ऊबर तो है ही और भी वजह हैं और ये वास्तविक हैं...
सच यही है कि अगर इकोनॉमी अपनी रफ्तार में लौट आएगी तब भी कारें अब उस रफ्तार से कभी नहीं बिकेंगी..
कार खरीदना जेब और होश दोनों के हिसाब से अब कष्टकारी फैसला बनता जा रहा है.
सीतारमण जी का लोग चाहे जितना मजाक उड़ाएं पर ये हकीकत यही है कि मुंबई, दिल्ली और बंगलुरू में तो बहुत से लोग ओला-ऊबर जैसी टैक्सी सर्विस से मिलने वाली सहूलियत की वजह खुद की कार में रकम नहीं फंसाना चाहते।
युवाओं की प्राथमिकता फिलहाल मोबाइल फोन और इलेक्ट्रानिक गैजेट हैं इसलिए वो कार में पैसे या तो फंसाना नहीं चाहते या उनके पास गुंजाइश नहीं है.
सैमसंग और एप्पल करीब करीब हर साल नए अपडेटेड वर्जन के फोन लॉन्च कर रहे हैं और मैं अपने आस पास के कई युवाओं को जानता हूं जो हर दूसरे साल 75,000 से 1,00,000 रुपए तक मोबाइल में खर्च करते हैं ऐसे में उनके पास कार खरीदने लायक गुंजाइश नहीं बचती.
नए फोन को एन्जॉय खुद की कार ड्राइव करते हुए नहीं कर सकते इसके लिए तो शोफर के साथ कार चाहिए और ये सुविधा ओला या ऊबर में ही मिल सकती है.
दिल्ली, मुंबई और काफी हद तक बंगलुरू में पार्किंग बहुत बड़ी समस्या बनकर उभरी है। नोएडा के कई इलाकों में तो आपको कई बार पार्किंग के लिए 2 किलोमीटर तक घूमना पड़ सकता है। दिल्ली का भी यही हाल है ज्यादातर जगह पार्किंग के लिए खून जलाना पड़ता है। मैं खुद भी कई बार अपनी कार घर पर ही रखकर ओला या ऊबर या ऑटो का इस्तेमाल करना पसंद करता हूं।
पार्किंग कम होने के साथ साथ महंगी भी बहुत हो गई है। रेलवे स्टेशन में 100 रुपए घंटा, एयरपोर्ट में 200 रुपए घंटा, ट्रैफिक जाम का तनाव अलग।
दिल्ली में तो झगड़ा होने का खतरा भी बहुत होता है इसलिए भी कार खरीदने का चलन कम होता जाएगा।
इलेक्ट्रिक कारों का रता-पता नहीं है फिर भी बहुत से लोग कहते पाए जाते हैं कि अब तो इलेक्ट्रिक कार ही खरीदी जाएगी।
मारुति सुजुकी के चेयरमैन आर सी भार्गव ने कुछ दिन पहले ही कहा कि कार रखना अब अफोर्डेबल नहीं बचा इसलिए कार खरीदने वालों की हिम्मत जवाब दे रही है।
सीएनबीसी यूएस के एक लेख के मुताबिक ज्यादातर करोड़पति लोगों का मानना है नौकरी करते ही या स्टार्टअप शुरू करते ही कार खरीदना मूर्खतापूर्ण फैसला है। जो लोग करोड़पति बने उनमें ज्यादातर ऐसे हैं जिन्होंने कमाई शुरू करते ही कार खरीदकर अपनी ऊर्जा और धन बर्बाद नहीं किया और ऐसे लोग आगे चलकर करोड़पति बने।
टेक्नोलॉजी और मार्केट को अक्सर लोग नहीं समझ पाते। जैसे पहले विनाइल रिकॉर्ड में गाने होते थे, फिर कैसेट में आए, फिर सीडी में, फिर पेन ड्राइव में और अब सब कुछ ऑनलाइन उपलब्ध है।
इसी तरह पहले याशिका का कैमरा उसमें कोडक की फिल्म होती थी लेकिन अब छोटे मोटे कैमरे गायब हो गए हैं मोबाइल की वजह से। अब सिर्फ प्रोफेशनल या फोटोग्राफी के शौकिया लोगों के पास महंगा कैमरा होता है।
इसलिए हर बात पर सिर्फ गरियाना ध्येय मत बनाइए लोग बहुत इमोशनल हो गए हैं... दोनों तरफ के लोग अतिवादी हो गए हैं। इनके चक्कर में आएंगे तो धोखा खाएंगे।
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