ममता यादव।
बेरोजगारी महंगाई अपराध अराजकता आर्थिक तंगी।
यूं देखा जाए तो इन खबरों का आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है पर इन खबरों में इनसाइड में फोकस है उस पर जिसे इस देश में आम आदमी कहा जाता है।
अखबार न पढ़ना इस बहाने क्योंकि आपका सुबह-सुबह मूड ऑफ हो जाता है। मुंह ढांपकर सोने के बराबर ही है। आप सो सकते हैं क्योंकि सक्षम हैं।
दुर्भाग्य से यह वक्त ऐसा है कि अगर सबसे अक्षम और बेबस साबित हुआ है तो मध्यवर्ग। न मांग सकता है न बोल सकता है न कोई समझ सकता है। गैस महंगी
नीमच की खबर में अराजकता अपराध अमानवीयता की हदें पार हैं। ठीक ऐसी ही घटना रीवा में भी हुई है। ये आत्महत्या वाली खबर में आप एक एंगल ज्ञान देने के लिये देख सकते हैं कि उस व्यक्ति को ससुराल रिश्तेदारों का सपोर्ट तो था।
पर कबतक आप मांगकर खा सकते हैं बच्चों को खिला सकते हैं?
फीस नहीं भरी जा रही यूनिफॉर्म किताबें नहीं खरीद पा रहे। पर कोई भी कुछ कम करने को तैयार नहीं है। सरकार बीपीएल को फ्री बांटकर आत्ममुग्ध है कि हमने लोगों को खाने को दे दिया है। स्वर्ग में पहुंच चुके पूर्व वित्तमंत्री अरुण जेटली की बात याद आती है कि मिडिल क्लास अपनी चिंता खुद करे।
इस देश का इस देश की जनता का और खुद का सबसे बड़ा दुश्मन वो तबका है जिसने कड़वी जमीनी हकीकत की समस्याओं को नकारात्मकता का नाम देकर आंख फेरकर सिर्फ दूसरों को ज्ञान देना सीखा नहीं अंगीकार किया है।
अप्रैल-मई में भी यही तबका था जिसे इस बात से समस्या थी कि अस्पतालों की अव्यवस्था, लूट क्यों दिखाई जा रही है? सड़कों पर भागते मरते लोगों पर बात क्यों हो रही है? श्मशान की चिताएं, शवों की कतारें क्यों दिखा रहे हो?
सेफजोन से बाहर निकलिए साहेबान। क्या पता आपके पड़ोस में ही कोई ऐसी हकीकत दुर्घटना बनने के इंतजार में हो। तुम जो राजनीतिक दलों के नाम पर दुश्मनी पाल बैठते हो कभी देखा है किसी भी दल के नेता को इन चीजों के लिए परेशान होते हुए?
वे तुम्हें उलझा रहे हैं हिन्दू-मुसलमान-आदिवासी-अगड़ा-पिछड़ा-दलित में और तुम व्यस्त भी इन्हीं में हो, डेटा और समय दोनों फूंककर। मिलता क्या है 24 घण्टे अंगूठा स्क्रॉल कर-करके आखिर में ठेंगा
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