दीपक तिवारी।
लोकतंत्र की असली ताकत यह चंद मुट्ठी भर लोग हैं जो असहमति की आवाज, एक समय का भोजन खा कर भी बुलंद करते रहते हैं.....
भिलाई के पास कुम्हारी गांव में आज मजदूर संगठनों से जुड़े इन कार्यकर्ताओं और छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के कुछ नेताओं को जब मैंने मानव-अधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज और तीन अन्य बुद्धिजीवियों की गिरफ्तारी के खिलाफ प्रदर्शन करते देखा तो मेरा भरोसा लोकतंत्र में और भी मजबूत हो गया।
मध्यम वर्गीय सुविधाभोगी समाज कभी भी जनमहत्व के मुद्दों पर लड़ाई लड़ने को सड़क पर नहीं आता। सड़क की लड़ाई हमेशा मजदूर और सर्वहारा वर्ग ही लड़ता है।
स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सब तरह की आवाज़ें होना आवश्यक है। सितंबर 1991 में शंकर गुहा नियोगी की हत्या के बाद सुधा भारद्वाज ने पूरे छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा और मजदूर आंदोलन को बिखरने से बचाया था।
सुधा भारद्वाज IIT की पढ़ी हुई है और अमेरिका में पैदा हुई थी। कहते हैं उनकी मां भारत की पहली वित्त सचिव थी। सुधा भारद्वाज ने अपने लिए बजाय किसी सुविधाभोगी जीवन के, दल्ली-राजहरा और छत्तीसगढ़ के मजदूरों की लड़ाई लड़ना ज्यादा उचित समझा।
सड़कों की लड़ाई अदालतों मैं जाने के कारण उन्होंने दुर्ग जिले के एक कॉलेज से एलएलबी की पढ़ाई की।
आज वह बिलासपुर उच्च न्यायालय की वकील हैं और अपने समूह के माध्यम से गरीब लोगों की लड़ाई फ्री में लड़ती है। उनको जब प्रधानमंत्री की हत्या के षड्यंत्र में गिरफ्तार किया गया तब वे दिल्ली में एक लॉ कॉलेज में पढ़ाने का काम कर रही थी।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं यह खबरनुमा टिप्पणी उनकी फेसबुक वॉल से ली गई है
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