श्रीकांत सक्सेना।
इस दुनिया में जितने नशे हैं, उनमें सबसे तीखा है-सत्ता का नशा।
जिसकी ख़ुमारी सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े हर शख़्स में देर तक रहती है।
आप किसी चपरासी से लेकर बड़े बाबू से होते हुए पुलिस,क़ाज़ी,सचिव,मंत्री या महामहिम किसी के भी मुँह के पास अपना मुँह लेकर जाएं तो एक जैसी ही तेज़ दुर्गंध पाएँगे।
जैसे सबने किसी एक ही ब्रांड की लगाई हुई हो।
कोई लड़खड़ा रहा है, कोई गालियाँ बक रहा है तो किसी की आँखों के लाल-लाल डोरों से आप उसकी ख़ुमारी का अंदाज़ा लगा सकते हैं।
सत्ता की दूसरी ख़ूबी ये है कि इसे हासिल करते ही इसके चले जाने का ख़ौफ़ तारी हो जाता है।
जैसे-जैसे ख़ुमारी बढ़ती है,वैसे-वैसे ये ख़ौफ़ और गहराता जाता है।
सुरक्षा के घेरे और ज़्यादा मज़बूत और ऊँचे कर दिए जाते हैं।
इतने ऊंचे कि घेरों के पार देखना नामुमकिन हो जाता है।
सड़क किनारे ठेले पर गोलगप्पों का लुत्फ़ लेता हुआ शायर कह उठता है-"दूर काली बिल्लियों के बीच सहमा जा रहा है।
एक राजा नग्न,चिंतामग्न।"
आपने कलंदरों की मस्ती और शाहों के ख़ौफ़ की कितनी ही कहानियाँ सुनी होंगी।
पहली-पहली बार राज्य जब अस्तित्व में आया तो उस वक़्त फ़िक्र ये थी कि जंगली जानवरों और दुश्मन कबीले के लोग रात-बिरात हमला करके लोगों के जानमाल को नुक़सान न पहुँचा सकें।
इसी के वास्ते सबने अपनी थोड़ी-थोड़ी आज़ादी और एक-एक कटोरी चावल देकर एक शख़्स को निगरानी पर लगा दिया।
जो और थोड़े से लोगों को अपने साथ लेकर दिनरात दुश्मनों और जानवरों पर नज़र रखने लगा।
इसके बाद हालात बदलने लगे।
चौकीदार ने कुछ दिन तो चौकस चौकीदारी की, उसके बाद वह मुफ़्त की दाल और सत्ता ब्रांड दारू का आदी हो गया।
कबीले में इक्के-दुक्का हादसे हुए तो चौकीदार से पूछगछ हुई, चौकीदार बहाने बनाने लगा।
कभी हथियारों की कमी के बहाने।
कभी दुश्मनों की ताक़त और तादाद के बहाने।
लोगों ने थोड़ा और पैसा और सामान इकट्ठा करके दे दिया।हालात फिर भी नहीं बदले।
तो कबीले के कुछ और दूसरे लोग सामने आने लगे-"तुम हटो,हम करेंगे चौकीदारी"।
चौकीदार के लिए ये और भी बड़ा ख़तरा था,चौकीदारी छिन जाने के ख़ौफ़ ने उसकी नींद ही उड़ा दी।
चौकीदार चौबीस घंटों में बस एक या दो घंटे की ही उचकती हुई नींद ले पाता।
अब उसे कबीले के ही हर शख़्स से ख़ौफ़ लगने लगा।
उसे लगता जैसे सब लोग उसके ख़िलाफ़ साज़िश करने में लगे हुए हैं।
उसने उन सब लोगों के ऊपर जासूस बिठा दिए जिन्हें उसे चुनौती मिलने का अंदेशा था।
जासूस 'विद्रोहियों' की प्रत्येक हरक़त पर नज़र रखते थे।
फिर घबराकर उसने कबीले के सभी लोगों के ऊपर जासूस बिठा दिए। लेकिन चौकीदार का खौफ दिनोदिन बढ़ता ही जा रहा था। वह विक्षिप्त सा हो गया।
दरअसल जासूस भी अपने होने को जस्टिफाई करने के लिए चौकीदार के ख़ौफ़ को दिन रात और बढ़ाते रहते थे,क्योंकि इसी से उनके बने रहने की वज़ह सिद्ध होती थी। कबीला पहले से भी ज़्यादा असुरक्षित और अराजक हो गया।
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