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अबकी बार राम जाने क्या-क्या पहली बार पर रिकार्ड तो टूट ही गए

खरी-खरी            Dec 07, 2018


ममता यादव।
इस सरकार में हद से ज्यादा बहुत कुछ पहली बार हुआ है। ये पहली सरकार है जिसका सबसे ज्यादा समय एक खानदान को कोसने के नाम रहा।

यह पहली सरकार है जिसने विपक्ष की भूमिका भी मजबूती से निभाई इसका क्रेडिट कांग्रेस को जाना चाहिए। थोड़ी देर से जागती है।

बुजुर्गों और महिलाओं को दरकिनार करने का रिकॉर्ड बनाने वाली भारतीय जनता पार्टी शायद पहली पार्टी होगी।

ये पहली सरकार है जिसने वायदे को जुमला कहने का फैशन निकाला।

इस दौरान पहली बार मीडिया को खुलकर गरियाने का फैशन चल निकला औऱ पत्रकारों की राजनीतिक प्रतिबध्दताएं इस हद तक सामने आईं कि उनमें और पार्टी प्रवक्ताओं में कोई फर्क ही नज़र नहीं आता।

पहली बार एक नया रोजगार श्रृजित हुआ सोशल मीडिया पर जहर फैलाने का, मरे हुओं को ज़लील करने औऱ गढ़े मुर्दे उखाड़कर विवाद पैदा करने का।

पहली बार हुआ कि सत्ताधारी दल किसी पूर्व प्रधानमंत्री की समाधी पर नहीं जाएगा। मगर विदेशों में इनका नाम लिए बिना काम भी नहीं चला।

पहली सरकार है जिसके प्रधानसेवक ने ये कहा था कि पहले लोगों को खुद को भारतीय कहने में शर्म आती थी। तो साहब सरकार किसी की भी रही हो खुद को भारतीय कहने में किसी भी भारतवासी को शर्म आई हो कहना मानना नामुमकिन है।

ये भी पहली बार हुआ कि जरा जरा सी बेतुकी बात पर न सिर्फ लोगों की देशभक्ति पर सवाल उठाए जाने का दौर चला बल्कि खुलेआम देशद्रोही कहा औऱ लिखा भी जाने लगा।

ऐसे पहले प्रधानमंत्री मोदीजी हैं जिनकी एक भी स्पीच ऐसी याद नहीं आती जो प्रधानमंत्री के स्तर की हो। और यह स्तर दिन पर दिन गिरा ही है।

2019 के लोकसभा चुनावों में सीमा की भी सीमा पार होगी हर पार्टी की तरफ से इसे लिख लीजिये।

हर समय चुनावी मोड में रहने वाले पीएम साहब की भाषा पर उनका अपना कोई नियंत्रण नहीं है न ही उनकी पार्टी के लोगों पर। सीता से लेकर हनुमान तक टिप्पणी करने वाले सबसे ज्यादा रिकॉर्ड भारत की सबसे बड़ी राम की नामलेवा पार्टी के नाम हो गया।

श्रृद्धा का तो राम ही जानें। बाकी तो जो है सो है ही। तमाशा चालू है सजग रहिये दिल-दिमाग, आँखें, नाक, कान सब खोलकर। श्री राम अब आप ही उतर आओ मन्दिर बनाना हो तो बनाओ पर समस्या हल करवाओ।

साथ मे Awesh Tiwari की ये पोस्ट संलग्न है भक्त जरूर गौर फरमाएं

इस तस्वीर को ध्यान से देखिए। कहा जाता है कि इन चारों ने आज के ही दिन बाबरी विध्वंस को अंजाम देकर देश मे युगों युगों से सोई हिन्दू चेतना को जगाने का काम किया था। वह दिन और आज का दिन, 25 साल बीत चुके हैं।

आडवाणी हमेशा के लिए खामोश हो चुके हैं, इसे हम पॉलिटिकल कोमा में जाना भी कह सकते हैं।

उमा को सुनने वाला न पार्टी के भीतर है न बाहर, शायद चुनाव भी न लड़ें।

कल्याण सिंह बतौर राज्यपाल जीवन के अंतिम दिन काट रहे, कभी जयपुर के रिम्स में इलाज कराते हैं तो कभी दिल्ली के मैक्स में।

प्रोफेसर मुरली मनोहर जोशी फिल्में देखकर समय बिता रहे, नजदीकी कहते हैं उन्होंने पूजा पाठ के घंटे बढ़ा लिए हैं।

विनय कटियार की तस्वीर इसमे नही हैं लेकिन वो कहाँ हैं कहाँ नहीं उन्हें खुद न पता होगा।

यह सब तो हमेशा के लिए चुप हो गए लेकिन मुजफ्फरनगर, बुलंदशहर या देश में कभी भी कहीं से जब कोई कराह उठती है सबसे पहले हमें इनकी याद आती है।

फिर सोचता हूँ कि क्या हिन्दू चेतना जगाने वालों का हश्र यह होना था? बस हाथ जोड़े दो बनियों की जोड़ी के पीछे पीछे लगे रहो।

यह सब निरीह हो चुके हैं दयनीय है। हर भक्त को इन सबमे अपना चेहरा देखना चाहिए और याद रखना चाहिए आने वाले वक्त में भी कोई न कोई मोदी कोई न कोई अमित शाह जन्म लेता रहेगा।

 


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