डॉ.प्रकाश हिंदुस्तानी।
श्योपुर (ग्वालियर) में एक दैनिक अखबार के संवाददाता दशरथ सिंह के साथ स्थानीय एडीएम ने जो बर्ताव किया, वह आंचलिक पत्रकारों की समस्याओं को उजागर करता है। दशरथ सिंह श्योपुर में जन समस्याओं को अपने अखबार में उजागर करते रहे हैं। इन जन समस्याओं के उजागर होने से स्थानीय अधिकारियों के लिए वे एक चुनौती बन गए। स्थानीय अधिकारियों को उस वक्त बहुत अच्छा लगता है, जब पत्रकार उनके द्वारा किए गए कार्यों को बढ़ा-चढ़ाकर अपने अखबार में स्थान देते रहते हैं, लेकिन जैसे ही पत्रकार उनकी नाकामियों के बारे में लिखते हैं, स्थानीय अधिकारी बदले की भावना पर उतर आते है। ये अधिकारी इतने निरंकुश हो चुके है कि वे अपने आगे कानून को भी कुछ नहीं समझते है और मानते हैं कि आजकल के बादशाह वही हैं।
श्योपुर के पत्रकार दशरथ सिंह अपने इलाके की खबरों में जनसमस्याओं को लगातार उजागर करते रहे हैं। यह बात सभी जानते हैं कि ग्रामीण इलाकों में आम आदमी की जिंदगी कितनी दूभर है। दशरथ सिंह ने अपनी रिपोर्टिंग में ऐसे तथ्य उजागर किए कि जब किसानों ने बिजली के बिल की राशि जमा कर दी थी, फिर भी बिजली कंपनी के लोगों ने ट्रांसफार्मर उठा लिया। बिजली के बिना खेतों में पानी नहीं पहुंचा पाने के कारण दुखी किसान कि सदमे में ही मौत हो गई। बिजली विभाग की ही कारस्तानी है कि उसे अपने करोड़ों रुपए के बकाया की चिंता नहीं रहती, लेकिन किसानों पर मामूली रकम की वसूली के लिए भी सख्ती से बाज नहीं आते। गरीबी से तंग आकर मरने वाले किसानों के घर स्थानीय नेता आते है और हंसी-ठिठौली करके चले जाते है।
दशरथ सिंह ने अपने अखबार में लगातार लगभग सभी विभागों की नाकामियों को उजागर किया। डाक घरों में किसानों के खाते से किस तरह पैसे निकलने लगे। स्थानीय मेले में ठेकेदारों को टेंडर डालने से रोककर अपने चहेतों को कम राशि में ठेका दे दिया गया। चम्बल के क्षेत्र में माइनिंग विभाग रेत उत्खनन करने वालों के प्रति कैसी नरमी दिखा रहा है, यह भी उन्होंने अपनी खबरों में बराबर छापा।
इसी के साथ श्योपुर जिले में राजस्व अधिकारियों द्वारा किए जा रहे घोटालों की खबरें भी दशरथ सिंह लगातार प्रकाशित करते रहे। बरसों पहले भू-दान की जमीन की फर्जी रजिस्ट्री और नामांतरण संबंधी खबरें भी दशरथ सिंह ने अपने अखबार में लगातार छापी। ऐसे जमीन के घोटालों के बारे में जब कलेक्टर को जानकारी हुई, तब उन्होंने ऐसी रजिस्ट्री पर रोक लगा दी। उस जमीन के घोटालों से जुड़ी पूरी खबरें दशरथ सिंह अपने अखबार में लगातार प्रकाशित करते रहे, जिनसे स्थानीय एडीएम वीरेन्द्र सिंह को खासी परेशानी हुई। एडीएम होते हुए भी वीरेन्द्र सिंह को लगा कि उन खबरों के कारण उसका कथित घोटाला सामने आ गया है। फोन पर उसने कई दफा पत्रकार से बदसलूकी की। इतना ही नहीं, अपने कार्यालय में आने पर वीरेन्द्र सिंह ने पत्रकार दशरथ सिंह को रोका और अपने रीडर तथा गनमैन से कहा कि वे दोनों दशरथ सिंह की पिटाई करें। पत्रकार की पिटाई के बाद वीरेन्द्र सिंह यहां भी नहीं रुका और उसने अपने न्यायिक अधिकारों का उपयोग करते हुए बिना किसी मामले के ही पत्रकार को सीधा जेल भेजने का आदेश दे दिया। उसके कारिंदों ने आदेश का पालन किया और वीरेन्द्र सिंह इस तरह की शेखी बघारता रहा कि उसके आगे कानून व्यवस्था कुछ भी नहीं है, जो कुछ है, वही है, वही कानून है और वही संविधान। इस तरह की वारदातें वीरेन्द्र सिंह पहले शाजापुर में कर चुका हैं। वहां उसे पूरा सबक नहीं मिला, तो उसके हौसले और बढ़ गए। वह भूल गया कि भारत में लोकतंत्र है और मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ।
सोशल मीडिया पर इस मामले को बहुत तेजी से उठाया गया, देखते ही देखते पूरे प्रदेश के आंचलिक पत्रकारों में आक्रोश फैल गया। पत्रकार संगठनों ने भी इस मामले पर दबाव बनाया। राज्य प्रशासनिक सेवा के 1995 की बेंच के इस अधिकारी को लगा कि इस तरह के मामले होते रहते है, उसका कोई क्या उखाड़ लेगा, लेकिन उसे न तो मास मीडिया की शक्ति का पता था और न सोशल मीडिया के पावर का। हजारों पोस्ट सोशल मीडिया पर लिखी गईं और ट्विटर पर भी बड़ी संख्या में संदेश जारी हुए। ट्विटर के जरिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और अन्य सभी शीर्ष नेताओं को वीरेन्द्र सिंह की करतूत की जानकारी दी जा चुकी थी। इस सब दबाव के चलते मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने वीरेन्द्र सिंह को सस्पेंड कर दिया और संभागायुक्त कार्यालय ग्वालियर में अटैच करने का आदेश दिया। सामान्य प्रशासन विभाग ने एक आदेश जारी किया और वीरेन्द्र सिंह के तमाम प्रशासनिक अधिकार लंबित कर दिए। यह भी आदेश दिया कि निलंबन की अवधि में उसे केवल निर्वाह भत्ता ही मिलेगा। मतलब उसका सारा ठाठ-बाठ छीन लिया गया है और औकात बता दी गई है। निलंबन आदेश में कहा गया है कि वीरेन्द्र सिंह ने मध्यप्रदेश सिविल सेवा आचरण नियमों का उल्लंघन किया है।
वीरेन्द्र सिंह के गैरकानूनी आदेश के बाद ही जेल जाने वाले पत्रकार दशरथ सिंह परिहार को रिहाई के लिए जमानत मिल गई है और दशरथ सिंह वापस पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हो गए है। पत्रकारों पर ज्यादती का यह कोई पहला मामला नहीं है, इसके पहले भी पत्रकारों के साथ ज्यादती के अन्य मामले यहां-वहां होते रहे हैं, लेकिन पत्रकारों के साथ ऐसी गुंडागर्दी के मामले कम ही देखने में आए हैं। पत्रकारों की हत्या तक होना कोई नई बात नहीं है, लेकिन यहां तो एक अधिकारी ने अपने दायित्व का निर्वहन नहीं करते हुए और मनमानी करते हुए अपने भ्रष्टाचार के आरोपों से बचने के लिए पत्रकार की पिटाई कर दी। अब वह अधिकारी सस्पेंड है, लेकिन पत्रकारों की मांग है कि ऐसे गुंडागर्दी वाले अधिकारी को खुला छोड़ना कानून और व्यवस्था के लिए समस्या खड़ी कर सकता है। जरूरी है कि ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध एफआईआर दर्ज हो और उसे जेल की सलाखों के पीछे किया जाए।
आंचलिक पत्रकारों की जिम्मेदारी और चुनौतियां राजधानी में काम करने वाले पत्रकारों से काफी अलग होती हैं। राजधानी में काम करने वाले ज्यादातर पत्रकार मोटी-मोटी तनख्वाहें पाते हैं और फिर भी ‘सेवा शुल्क’ लेकर कार्पोरेट और नेताओं के लिए अतिरिक्त सेवाएं उपलब्ध करवाते हैं। बोलचाल की भाषा में इसे दलाली कहा जा सकता है। आंचलिक पत्रकारों पर अपने मुख्यालयों का दबाव होता है कि वे समाचारों का संकलन और संपादन तो करें ही, साथ ही संस्थान के लिए विज्ञापन जुटाने में भी मदद करें। कई अखबारों और चैनलों ने तो आंचलिक संवाददाताओं को ही विज्ञापन बटोरने का दायित्व भी सौंप दिया है। छोटी जगहों पर जहां विज्ञापन कम होते हैं, वहां इन पत्रकारों पर दबाव डाला जाता है कि वे भले ही ब्लैकमेल करें, लेकिन अपने संस्थान के लिए विज्ञापन के रूप में आय जरूर कमाएं। इस सब के कारण आंचलिक पत्रकारिता में शुद्ध पत्रकार कम आ रहे हैं और पत्रकारिता में प्रदूषण फैलता जा रहा है।
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