पुण्य प्रसून बाजपेयी।
धर्म से बड़ी कोई राजनीति नहीं और राजनीति से बड़ा कोई धर्म नहीं" वैसे तो ये बात लोहिया ने कही थी और लोहिया का नाम जपकर समाजवाद के नाम पर सत्ता चलाने वालों को जब यूपी के जनादेश ने मटियामेट कर दिया। पहली बार किसी धार्मिक स्थल का प्रमुख किसी राज्य का सीएम बना है तो ये सवाल उठना जायज है कि क्या वाकई धर्म से बड़ी कोई राजनीति नहीं और राजनीति से बड़ा कोई धर्म नहीं। क्योंकि जो शख्स देश के सबसे बड़े सूबे यूपी का मुखिया बना है वह गोरक्ष पीठ से निकला है। शिव के अवतार महायोगी गुरु गोरक्षनाथ के नाम पर स्थापित मंदिर से निकला है। नाथ संप्रदाय का विश्वप्रसिद्ध गोरखनाथ मंदिर से निकला है। जो हिंदू धर्म,दर्शन,अध्यात्म और साधना के लिये विभिन्न संप्रदायों और मत-मतांतरों में नाथ संप्रदाय का प्रमुख स्थान है। हिन्दुओं के आस्था के इस प्रमुख केन्द्र यानी गोरक्ष पीठ के पीठाधीश्वर महंत आदित्यनाथ जब देश के सबसे बड़े सूबे यूपी के सीएम हो चुके हैं, तब इस पीठ की पीठाधीश्वर मंहत योगीनाथ को लेकर यही आवाज है, "संतो में राजनीतिज्ञ और राजनीतिज्ञो में संत आदित्यनाथ"।
तो क्या आस्था का ये केन्द्र अब राजनीति का भी केन्द्र बन चुका है? क्योंकि अतीत के पन्नों को पलटें तो गोरक्षनाथ मंदिर हिन्दू महासभा का भी केन्द्र रहा और हिन्दु महासभा ने कांग्रेस से लेकर जनसंघ की राजनीति को भी एक वक्त हिन्दू राष्ट्रवाद के दायरे में दिशा दी। तो क्या योगी आदित्नाथ के जरीये हिन्दू राष्ट्रवाद की उस अधूरी लकीर को ही मौजूदा वक्त में पूरा करने का ख्वाब भी संजोया जा रहा है? या फिर अतीत की राजनीति के दायरे में योगी आदित्यनाथ को पऱखना भूल होगी? ये सवाल इसलिये क्योंकि 1921 में कांग्रेस के साथ हिन्दू महासभा राजनीति तौर पर जुड़ी, जो 16 बरस तक जारी रहा। आलम ये भी रहा कि मदन मोहन मालवीय एक ही वक्त कांग्रेस की अध्यक्षता करते हुये हिन्दू महासभा को भी संभालते नजर आये। फिर हिन्दू महासभा से निकले श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में जनसंघ की स्थापना की।
तो क्या अतीत के इन पन्नों के आसरे योगी आदित्यनाथ को आने वाले वक्त में हिन्दू राष्ट्रवाद के दायरे में यूपी की सत्ता चलाते हुये देखा जायेगा? या फिर पहली बार सावरकर की हिन्दुसभा और हेडगेवार की आरएसएस की दूरियां खत्म होंगी? पहली बार संघ परिवार और बीजेपी की राजनीति की लकीर मिटेगी? पहली बार अयोध्या से आगे गोरखपुर की गोरक्ष पीठ हिन्दुत्व की प्रयोगशाला बनेगी? क्योंकि कल तक गोरखनाथ मठ के महंत के तौर पर जाने जाने वाले सांसद योगी आदित्यनाथ अब मंदिर छोड़ बतौर सीएम लखनउ में मुख्यमंत्री निवास में रहेंगे और 96 बरस से सक्रिय राजनीतिक तौर पर गोरखनाथ मठ की सियासी सत्ता की नींव सीएम हाउस में पड़ेगी। तो क्या यूपी महज जनादेश के आसरे एक नये सीएम आदित्यनाथ को देखेगा और बतौर सीएम आदित्यनाथ भी महज पारंपरिक गवर्नेस को संभालेंगे?
जहां किसानों की कर्ज माफी से लेकर 24 घंटे बिजली का जिक्र होगा, जहां कानून व्यवस्था से लेकर रोजगार का जिक्र होगा या फिर जहां गो हत्या पर पाबंदी से लेकर मंदिर निर्माण का जिक्र होगा। यकीनन जनादेश का आधार कुछ ऐसा हो सकता है लेकिन योगी आदित्यनाथ जिस छवि के आसरे राजनीति को साधते आये हैं और पहली बार संघ परिवार से लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने योगी आदित्यनाथ की राजनीति को मान्यता दी है।
तो आने वाले वक्त में तीन राजनीति के तीन तरीके उभरेंगे ही। पहला, विकास शब्द को हिन्दू सांस्कृतिक लेप के साथ परोसा जायेगा। दूसरा, किसानी या गरीबी को मिटाने के लिये हिन्दुत्व जीवन पद्धति से जोड़ा जायेगा। तीसरा, कानून व्यवस्था का दायरा पुरानी तुष्टिकरण की नीति को पलट देगा। कह सकते हैं यूपी को चलाने के लिये हर समुदाय के लिये जो राजनीतिक कटघरा मायावती या मुलायम ने यूपी में खड़ा किया, वह कटघरा योगी आदित्यनाथ के वक्त 180 डिग्री में उलटा दिखायी देगा। लेकिन योगी को सिर्फ महंत से सीएम बनते हुये देखने से पहले योगी की उस राजनीतिक ट्रेनिंग को समझना होगा जो गोरखनाथ मठ की पहचान रही।
महज दिग्विजय ने 1949 में संघ के स्वयंसेवकों को गोरखनाथ मंदिर से बाहर भी किया। 1967 में हिन्दू महासभा के टिकट से महंत दिग्विजय ने चुनाव भी लड़ा। 1989 में महंत अवैधनाथ ने हिन्दू महासभा की टिकट पर चुनाव लड बीजेपी को भी हराया। यानी हिन्दुत्व या राम मंदिर के नाम पर जो लकीर संघ खींचता आया है उसे हिन्दू महासभा ने हमेशा बेहद कमजोर माना और जब बीजेपी को इसका अहसास हुआ कि हिन्दू महासभा के महंत अवैधनाथ को साथ लाये बगैर हिन्दुत्व के ठोल पीटे नहीं जा सकते। या राम मंदिर का सवाल आंदोलन में बदला नहीं जा सकता तो 1991 में मंहज अवैधनाथ को मान मनौवल कर बीजेपी के टिकट से गोरखपुर में लड़ाया गया।
यानी हिन्दुत्व के सवाल पर संघ और हिन्दू महासभा के बीचे दूरियों का रुख ठीक उसी तरह रहा जैसे एक वक्त हिन्दू रक्षा के सवाल पर गुरुगोलवरकर और सावरकर से लेकर मंहत दिग्विजय तक में भिन्नता थी। विभाजन के दौर में जब देश दंगों में झुलस रहा था तब हिन्दु महासभा का संघ पर आरोप था कि वह कबड्डी खेलने में व्यस्त है। यानी हिन्दु रक्षा की जगह सेवा भाव में ही संघ रहा। इसीलिये जिस वक्त अयोध्या आंदोलन उग्र हुआ तब महंत अवैधनाथ बीजेपी के साथ आये और आज भी योगी आदित्यनाथ ये मानते हैं कि राम मंदिर निर्माण को सत्ता ने टाला। लेकिन हिन्दुत्व की योगी आदित्यनाथ की शैली क्या प्रधानमंत्री मोदी के लिये राहत है? ये सवाल इसलिये बड़ा हो चला है क्योकि गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ का राजनीतिक मॉडल उस दबंग राजनीति के उस अंदाज पर टिका है, जिसे हिन्दू रक्षा के लिये एक वक्त सावरकर ने माना और यूपी में मंहज दिग्विजय ने अपनाया भी।
यानी योगी के दौर में यूपी में कानून व्यवस्था की परिभाषा भी बदल जायेगी। क्योंकि जिस राजनीतिक मॉडल को योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर में अपनाया, उसका सच ये भी है कि हिन्दू संघर्ष वाहिनी का अपने इलाके में अलग खौफ है। गोरखपुर में सांस्कृतिक सवालों के जरीये वाहिनी की दंबगई के आगे कानून व्यवस्था मायने नहीं रखती। खुद योगी आदित्यनाथ ने गोऱखपुर के कई ऐतिहासिक मुहल्लों के नाम मुस्लिम विरोध के बीच बदलवा दिए। उर्दू बाजार हिन्दी बाजार बन गया, अलीनगर आर्यनगर हो गया। मियां बाजार मायाबाजार हो गया। यानी योगी का अपना एजेंडा रहा-और उस एजेंडे में कानून अभी बाधा नहीं बना।
और योगी की दबंगई ही उनका यूएसपी है,जो गोरखपुर में लोगों को उनका मुरीद भी बनाता रहा।यानी योगी की गोरखपुर की पहचान का अगर विस्तार बतौर सीएम यूपी में होगा तो दंबग जातियों को दब कर चलना होगा। हिन्दू रक्षा के लिये कानून व्यवस्था अब काम करती दिखेगी। दबंग राजनेताओं की राबिन हुड छवि खत्म होगी और मुस्लिम दबंगई पर तो बहस बेमानी है। यानी योगी की राजनीतिक धारा की दबंगई खुद ब खुद कानूनी मान्यता पायेगी और सड़क पर दंबग राजनीति में नयापन दिखायी देगा। ये तय है। ऐसे में जो हिन्दुत्व या राम मंदिर के अक्स तले योगी को समझना चाहते हैं तो फिर याद कीजिए साल भर पहले यानी 2 मार्च 2016 को गोरखनाथ मंदिर में भारतीय संत सभा की चिंतन बैठक हुई थी, जिसमें आरएसएस के बड़े नेताओं की मौजूदगी में संतों ने कहा था "1992 में 'ढांचा' तोड़ दिया। अब केंद्र में अपनी सरकार है। सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला हमारे पक्ष में आ जाए, तो भी प्रदेश में मुलायम या मायावती की सरकार रहते रामजन्मभूमि मंदिर नहीं बन पाएगा। इसके लिए हमें योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाना होगा"
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