विश्व नेतृत्व से पीछे खिसकता अमेरिका, विश्वगुरू बनता चीन पर भारत कहां है

खरी-खरी            Dec 31, 2017


डॉ.प्रकाश हिंदुस्तानी।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के प्रशासन में राष्ट्रीय सुरक्षा उप सलाहकार रहे एंटोनी जॉन ब्लिंकेन ने न्यू यॉर्क टाइम्स में एक लेख लिखा है, जिसमें उन्होंने राय व्यक्त की है कि विश्व नेतृत्व से अमेरिका धीरे-धीरे पीछे खिसक रहा है और जिस तरह से चीन आगे बढ़ रहा है, उससे यह संभव है कि वह विश्व का नेतृत्व करने लगे।

उन्होंने चीन की कूटनीतिक गतिविधियों के हवाले से कहा है कि चीन के वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग बहुत तेजी से चीन को वैश्विक परिदृश्य पर उभार रहे हैं। चीन में लोकतंत्र नहीं है, वहां पर्यावरण की स्थिति चिंताजनक है और मानव अधिकारों की बात करना ही फिजूल है, लेकिन फिर भी जिस तरह चीन आगे बढ़ रहा है, वह पूरी दुनिया के लिए गंभीर बात हो सकती है।

फिलहाल अमेरिका में रोजगार की स्थिति अच्छी नहीं है। वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का रवैया अड़ियल है और वे कुछ-कुछ अधिनायकवादी बातें करते हैं। मेक्सिको की सीमा पर ट्रम्प को बड़ी दीवार बनाने का जुनून सवार है। ट्रम्प की नीतियों की विश्वभर में आलोचना हो रही है। यह सब अमेरिका के लिए अच्छे लक्षण नहीं कहे जा सकते।

पूरी दुनिया अमेरिका को एक बड़ी शक्ति मानती है और सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका दुनिया का एक छत्र नेता बनकर उभरा था। अब उसमें सेंध लगाई जा रही है। अमेरिका की उदारवादी छवि नष्ट हो रही है। बराक ओबामा के समय में किए गए वादे झुठलाए जा रहे हैं और एशिया के सहयोगी देशों के साथ अमेरिका के रिश्तों पर भी तरह-तरह के आक्षेप लग रहे है। ऐसा लगता है कि अब अमेरिका को विश्व व्यापार समझौते का सम्मान करने की कोई गरज नहीं बची।

चीन वैश्विक शक्ति के रूप में नेतृत्व करने के लिए ये कार्य कर रहा है :
1.विश्व व्यापार संगठन के विवादों को सुलझाकर चीन ने विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में अपना प्रतिशत बढ़ा लिया है।

2.अब चीन एशिया के बड़े प्रमुख देशों के साथ ही ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के साथ भी बड़े व्यापार समझौते करने जा रहा है।

3. संयुक्त राष्ट्र के बजट में सर्वाधिक योगदान देने वाला चीन है। भारत की स्थिति वहां बहुत अच्छी नहीं है। संयुक्त राष्ट्र की भाषा हिन्दी बनाने का मामला भी आगे नहीं बढ़ रहा है। हिन्दी को लेकर भी भारत में ही विवाद है।

4. संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में चीनी सैनिकों की संख्या सबसे ज्यादा है। चीन संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के लिए भी सर्वाधिक धन दे रहा है।

5. चीन पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों और इनोवेटर्स को अपने यहां आमंत्रित कर रहा है। चीन का लक्ष्य सूचना प्रौद्योगिकी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आदि के क्षेत्र में शीर्ष पर पहुंचना है। गूगल (अल्फाबेट) के एरिक स्मिथ की चेतावनी है कि अगले एक दशक में चीन अमेरिका को ओवरटेक कर सकता है।

6. चीन ने रोबोटिक्स, हाई स्पीड रेल नेटवर्क, एवरो स्पेस, न्यू एनर्जी व्हीकल, एडवांस मेडिकल प्रोजेक्ट आदि में बढ़त हासिल कर ली है। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प ऑटोमेशन के क्षेत्र में मात खा रहे मैन्युफेक्चरिंग उद्योग में वापस जान फूंकना चाहते है, जबकि चीन यहां सबसे ऊपर है।

7. चीन ने अपने स्थानीय उद्योगों के विकास के लिए कई क्षेत्रों को विदेशी निवेश से अलग रखा है। विदेशी कंपनियों के चीन आने पर उसने ऐसी सख्त शर्तें लगा रखी है। जिससे उसका फायदा निश्चित है। जैसे स्थानीय कंपनियों को पार्टनर बनाना और तकनीक का हस्तांतरण करना।

8. चीन ने अपने पड़ोसी छोटे देशों को भारी कर्जे से लाद रखा है। पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान और अन्य देश चीन से भारी आर्थिक मदद पा रहे है। यह मदद कर्ज और सहयोग राशि दोनों के रूप में है।

9. चीन ‘वन बेल्ट, वन रोड’ प्रोजेक्ट के तहत बड़े पैमाने पर कार्य कर रहा है। चीन से सड़क मार्ग से १२ हजार किलोमीटर तक लंबा सफर तय किया जा सकता है। सभी पड़ोसी देशों की सीमाओं तक और कुछ देशों के भीतर तक भी चीन का सड़क मार्ग खुला है। जाहिर है चीन इसका उपयोग अपने मेन्युफेक्चरिंग सेक्टर को बढ़ाने के लिए कर रहा है।

10. चीन ने नए समुद्री रास्ते भी खोले हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में चीन खतरनाक तरीके से कार्र्य कर रहा है। अपनी नीतियों से एक दम सस्ता माल खपाकर उसने भारत जैसे कई देशों के मैन्युफेक्चरिंग सेक्टर को खतरे में डाल दिया है। चीन मुक्त व्यापार और वैश्वीकरण के क्षेत्र में नया चैम्पियन बनने जा रहा है।

चीन में लोकतंत्र नहीं है, मजदूरों पर भारी अत्याचार हो रहे हैं, नागरिक अधिकारों का हनन हो रहा है, कार्य की दशाएं अमानवीय हैं, गरीब और अमीर के बीच की खाई बढ़ती जा रही है, सामाजिक व्यवस्था चकनाचूक हो रही है, पर्यावरण के विरूद्ध खतरनाक तरीके से कार्य हो रहा है इन सब बातों के बावजूद चीन ने दुनिया के सामने अपनी एक अलग छवि बनाने में लगा है। अनेक देशों की अर्थव्यवस्था चीन की दया पर निर्भर है।

चीन ने अपने लक्ष्य दूरगामी रखे हैं और वह लगातार अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ रहा है। चीन पूरी दुनिया के खिलाफ दुष्प्रचार में जुटा है और उसका तरीका ऐसा है कि कोई भी उसकी मुखालिफत नहीं कर सकता। चीनी नागरिक दुनिया के लगभग सभी देशों में बहुतायत से है। अमेरिका तक की अर्थव्यवस्था में चीन और चीनियों का योगदान उल्लेखनीय है। चीन की आबादी, आकार, आधारभूत संरचना, प्राकृतिक संसाधन, भारत से कही ज्यादा है। चीन की अर्थव्यवस्था भारत की तुलना में कई गुना बड़ी है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह आलेख उनके ब्लॉग से लिया गया है।

 



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