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अपनी पूँछ में आग लगा ली है तो भला लंका कैसे नहीं मिलेगी?

खरी-खरी            Apr 18, 2022


राकेश कायस्थ।
कुछ बातें बार-बार दोहराने की होती हैं। कौन पढ़ेगा, कौन समझेगा पता नहीं? फिर भी कहना पड़ता है, क्योंकि कहना ज़रूरी है।


1.पहले कई बार लिख चुका हूँ। यह दौर वैचारिक रूप से हाशिये पर पड़े समाज के सबसे जड़बुद्धि लोगों के सशक्तिकरण का है। जो किसी भी प्रकार के विमर्श में अयोग्य हैं, उन्हें इस बात का एहसास कराया गया है, तुम सबसे ज्यादा बुद्धिमान हो। तुम संख्या में अधिक हो और समाज के ज्यादातर लोग जो बात करें, वह बात कभी गलत नहीं हो सकती है। जो लोग तुम्हे गलत बता रहे हैं, वे तुम्हारे दुश्मन हैं, इसलिए हथियार उठाओ और उन्हें रौंद दो।

2.अब सवाल है ये है कि संख्या बल में प्रबल मूढ़ दल का सशक्तिकरण पहले उस तरह क्यों नहीं हुआ जैसा अब हो रहा है? इसका सीधा कारण यह है कि पिछली पीढ़ियों में शास्त्रीय दक्षिणपंथ की अगुआई करने वाले नेता पढ़े-लिखे हैं और उनके मन के किसी कोने में थोड़ी-बहुत नैतिकता जीवित थी। वे मूर्ख और अज्ञानी लोगों की भीड़ को वोटर समूह में परिवर्तित तो करना चाहते थे लेकिन उनके जैसा दिखना नहीं चाहते थे। उन्हें ऐसा करने में शर्म आती थी।

3.मौजूदा समय शर्म निरपेक्षता का है। चाहे ट्रंप हों या बोलसानारो या फिर श्रीमान भाग्य-विधाता। आधुनिक विश्व में नेताओं की ऐसी पौध दुनिया में पहले कभी नहीं देखी गई, जो लोगों को लामबंद करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। ये नेता बौद्धिक स्तर पर अक्सर अपने समर्थकों की तरह दिखते हैं। दिनभर में अनगिनत झूठ बोलते हैं और हास्यास्पद होने की हद तक अतार्किक बातें करते हैं। समाज का पढ़ा-लिखा तबका क्या सोचता है, इससे इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि ये जानते हैं कि मूर्ख मंडली के सशक्तिकरण के ज़रिये उन्होंने एक ऐसा खजाना ढूंढ लिया है जो बरसों तक खत्म नहीं होगा।

4.पूंजीवाद या क्रोनी कैपिटलिज्म दुनिया के अलग-अलग कोनों में संभवत: अपने सबसे विकृत रूप में है। माल बेचने के लिए किसी भी हद तक जाना अनैतिक नहीं है और ठगी भी सहज-स्वीकार्य बात है। मौजूदा राजनीति ने बाज़ारवाद से ना सिर्फ बहुत कुछ सीखा है बल्कि क्रोनी कैपिटलिज्म के साथ एक अजेय गठजोड़ बनाये रखने के लिए रात-दिन नये फॉर्मूले तलाश रही है।

5.मानव जाति के इतिहास में पहली बार इतनी सशक्त हुई मूर्ख मंडली क्या कर रही है? नई पहचान ने उसे एक अलग आत्मविश्वास दिया है। वह अपने चारों तरफ शत्रु ढूंढ रही है। उसका तर्क यह है कि जब अपनी पूँछ में आग लगा ली है तो भला लंका कैसे नहीं मिलेगी? लंका अगर ना मिली तो फिर उसे जहां मन करेगा आग लगा देगी। संख्या बल का तांडव अभी शुरू हुआ है यह पूरी दुनिया में लगातार तेज़ होगा और उस समय तक नहीं थमेगा, जब तक किसी परिणति तक ना पहुंच जाये।

 



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