ममता यादव।
साल 2018 में जब डेढ़ दशक बाद मध्यप्रदेश में सरकार बदली तो कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए विधासभा में उपाध्यक्ष का पद अपनी ही पार्टी की विधायक हिना कांवरे को दे दिया।
इससे पहले तक विधानसभा उपाध्यक्ष का पद प्रतिपक्ष के पास होता था।
बाद में परिस्थितियां बदलीं और कांग्रेस सरकार चली गई। परंतु अब कमलनाथ सरकार द्वारा डाली गई यह नई परंपरा कांग्रेस के लिए ही गले की हड्डी बन गई है।
अब भाजपा सरकार भी विधानसभा उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को नहीं देना चाहती। नतीजतन पिछले दो साल से ज्यादा समय से मध्यप्रदेश विधानसभा में उपाध्यक्ष का पद खाली पड़ा हुआ है।
संसदीय कार्यमंत्री डा.नरोत्तम मिश्रा ने भी कह दिया है कि हम परंपरा को निभाएंगे और विधानसभा उपाध्यक्ष पद भाजपा के पास ही रहेगा।
स्थिति यह है कि कमलनाथ सरकार गिरने के बाद से अब तक विधानसभा उपाध्यक्ष पद के लिए चुनाव की प्रक्रिया नहीं हो पाई है।
दरअसल इस पद को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों में कश्मकश की स्थिति बनी हुई है। भाजपा भी विपक्ष को यह पद देना नहीं चाहती है और कांग्रेस को उम्मीद है कि सरकार विपक्ष को यह पद देकर पुरानी परंपरा को निभाएगी।
ज्ञात हो कि उपाध्यक्ष पद को लेकर विवाद की शुरूआत 2019 में तब हुई थी, जब भाजपा ने विपक्ष में रहते हुए विधानसभा अध्यक्ष पद के लिए विजय शाह को खड़ा कर चुनाव कराया था।
इसी कारण कांग्रेस ने उपाध्यक्ष पद परंपरा अनुसार मुख्य विपक्षी दल भाजपा को न देते हुए पार्टी की हिना कांवरे को उपाध्यक्ष बनाया था। परिस्थितियां बदलीं और भाजपा सत्ता में आ गई।
कांग्रेस की ओर से उपाध्यक्ष का पद प्रतिपक्ष को देने की मांग भी रखी गई पर इसको लेकर निर्णय नहीं लिया गया।
इधर भाजपा 7 मार्च से प्रारंभ होने वाले सत्र में उपाध्यक्ष का चुनाव कराने की तैयारी में है।
संसदीय कार्यमंत्री डा.नरोत्तम मिश्रा ने साफ किया कि कांग्रेस ने जो परंपरा शुरू की थी, उसे हम निभाएंगे, उपाध्यक्ष का पद हमारे पास ही रहेगा।
उधर, विधानसभा सचिवालय ने शासन को प्रस्ताव दिया है कि जब तक उपाध्यक्ष का चुनाव नहीं हो जाता है तब तक उपाध्यक्ष को मिलने वाले स्वेच्छानुदान का उपयोग करने का अधिकार अध्यक्ष को दे दिया जाए।
उपाध्यक्ष को प्रतिवर्ष एक करोड़ रुपये की स्वेच्छानुदान निधि मिलती है। कांग्रेस मुख्य सचेतक डा गोविंद सिंह का कहना है कि विधायक दल की बैठक में हम उपाध्यक्ष पद के लिए अपनी रणनीति तय करेंगे। जरूरत पड़ी तो प्रत्याशी भी ख्ड़ा कर सकते हैं।
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