राकेश दुबे।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह प्रदेश के गेंहू के लिए विश्व का बाज़ार तलाशने की बात कह रहे हैं। उन्हें एक नजर विश्व के उत्पादन और मध्यप्रदेश में कुपोषण के आंकड़ों पर भी डाल लेना चाहिए।
अपने को “किसान पुत्र” होने का प्रचार करने वाले को यह मालूम होना चाहिए कि यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद पूरे विश्व में खाद्यान्न की आपूर्ति बाधित हुई है।
दुनिया की रोटी की टोकरी के रूप में चर्चित यूक्रेन से गेहूं के निर्यात रुक जाने से भारत गेहूं समेत खाद्यान्न निर्यात की बढ़ी हुई मांग को पूरा कर सकता है।
यह भी विचार का मौका है कि भारतीय किसान खेती के स्वरूप को बदल कर विश्व की अनाज मंडी के रुख को मोड़ सकते हैं।
याद कीजिये, पहले विश्व युद्ध के बाद अब इस समय गेहूं की आपूर्ति सबसे अधिक प्रभावित हुई है। यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद गेहूं के मूल्य 30 प्रतिशत से अधिक बढ़ गये है रूस और यूक्रेन मिल कर वैश्विक गेहूं आपूर्ति के लगभग एक चौथाई हिस्से का निर्यात करते हैं, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते इन देशों से गेहूं की वैश्विक आपूर्ति रुक गयी है।
ऐसे में भारत सहित अन्य देशों से गेहूं और अन्य कृषि उत्पादों की निर्यात मांग में तेज इजाफा हुआ है।
भारत ने फरवरी, 2022 के अंत तक जो गेहूं का निर्यात किया है, जो अब तक का सर्वाधिक है। आने वाले कुछ दिनों में 70 लाख टन से अधिक गेहूं का निर्यात हो सकता है। वैश्विक स्तर पर गेहूं के दाम दस साल के उच्चतम स्तर पर हैं और भारत के गेहूं के दाम भी करीब 320 डॉलर से बढ़ कर 360 डॉलर प्रति टन आंके गये हैं।
वैश्विक बाजार में गेहूं की कमी को भारत तेजी से भर सकता है। इस समय भारत के करीब 2.5 करोड़ टन से अधिक के विशाल गेहूं भंडार से अधिक निर्यात की संभावनाओं को मुठ्ठियों में लिया जा सकता है, परन्तु पहले अपने प्रदेश के कुपोषण ग्रस्त बच्चों को रोटी देना प्राथमिकता होनी चाहिए।
यदि खाद्यान्न के वैश्विक बाजार की स्थिति इसी तरह बनी रहती है, तो भारत का गेहूं निर्यात 2022-23 में एक करोड़ टन के रिकॉर्ड स्तर को छू सकता है।
यह सही है, रूस और यूक्रेन युद्ध से उत्पन्न हालातों के बीच गेहूं समेत अन्य खाद्यान्नों की मांग कर रहे जरूरतमंद देशों को भारत खाद्यान्नों की आपूर्ति कर सकता है, पर कब जब उसके घर में कुपोषण खत्म हो जाये।
ज्ञातव्य है कि देश में गेहूं सहित खाद्यान्नों के रिकॉर्ड उत्पादन के मद्देनजर भी कृषि निर्यात की नयी संभावनाएं बढ़ गयी हैं, कुपोषण के आंकड़े भी कम डरावने नहीं है।
आंकड़े बताते हैं, इस उत्पादन परिदृश्य के पीछे जनवरी 2022 तक 11.30 करोड़ से अधिक किसानों को 1.82 लाख करोड़ रुपयों की आर्थिक मदद, कृषि क्षेत्र में शोध एवं नवाचार को बढ़ावा और विभिन्न कृषि विकास की योजनायें हैं। जिससे कृषि क्षेत्र में उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है।
यह विभिन्न प्रयासों का ही परिणाम है कि वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन द्वारा प्रकाशित वैश्विक कृषि व्यापार में रुझान रिपोर्ट 2021 के तहत दुनिया में कृषि निर्यात में भारत ने नौवां स्थान हासिल किया है।
देश के कुल निर्यात में कृषि की हिस्सेदारी 11 प्रतिशत से अधिक हो गयी है और जीडीपी में कृषि निर्यात का योगदान करीब 1.6 प्रतिशत है। साथ ही देश में कुपोषण के आंकड़े भी बड़े हैं।
कृषि निर्यात नीति-2018 का सकारात्मक परिणाम मिलने लगा है, इस नीति में निर्यात के बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने पर पूरा जोर है।
सरकार ने नयी कृषि निर्यात नीति के तहत ज्यादा मूल्य और मूल्यवर्धित कृषि निर्यात को बढ़ावा दिया है| निर्यात किये जाने वाले कृषि जिंसों के उत्पादन व घरेलू दाम में उतार-चढ़ाव पर लगाम लगाने के लिए रणनीतिक कदम उठाये हैं। काश सरकारें कृषि नीति के साथ देश की बढती भूख और कुपोषण को जोड़ एक समग्र नीति बनाती।
रूस-यूक्रेन संकट से भारतीय खाद्यान्न निर्यातकों के लिए निर्मित खाद्यान्न निर्यात की नयी मांग के कारण चालू वित्त वर्ष में कृषि निर्यात के 43 अरब डॉलर के लक्ष्य को सरलता से प्राप्त किया जा सकता है, परन्तु पहले देश की भूख, कुपोषण और गरीबी पर ध्यान देना जरूरी है।
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