राकेश दुबे।
गैर जिम्मेदार पाकिस्तान को उसके पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने चेताया है कि परमाणु हथियार का उपयोग पाकिस्तान के लिए आत्मघाती होगा। मुशर्रफ की आशंका सही है।
पाक की सेना के सामने बौने पाक प्रधानमंत्री कुछ भी कर सकते हैं और इस बार भी सऊदी अरब की पाक फंडिंग इस्लामी कट्टरता, आतंकी संगठनों और वहाबी विचारधारा के प्रसार में हमेशा की तरह प्रयुक्त होगी,जो कुछ भी करा सकती है।
इन दिनों पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति बहुत दयनीय है। बांग्लादेश के 33 अरब डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार की तुलना में पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार केवल 9 अरब डॉलर रह गया है।
पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति उसे दक्षिण एशिया में सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाती है। पाकिस्तान की यह दीन दशा ही अमेरिका और चीन जैसे देशों को पाकिस्तान पर आधिपत्य स्थापित करने के लिए ललचाती रही है और यही बात पाकिस्तान को समय—समय पर मिलने वाले अंतरराष्ट्रीय संरक्षण के लिए उत्तरदायी है।
पिछले तीन दशकों से पाकिस्तान हमारे साथ छद्म युद्ध की रणनीति का प्रयोग करता रहा है।कश्मीर में आतंकियों और पत्थरबाजों को फंडिंग, ट्रेनिंग और संरक्षण, स्कूलों का जलाया जाना, हुर्रियत नेताओं का पालन-पोषण एवं उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंच प्रदान करना, कश्मीरियों को आतंकवाद से जोड़ना आदि इस रणनीति के भाग रहे हैं।
हाल के वर्षों में पाकिस्तान की यह रणनीति कश्मीर तक सीमित नहीं रही है। वह पूरे भारत में आतंकी गुटों और राष्ट्रविरोधी शक्तियों से संपर्क करने और उन्हें मदद देने में कामयाब रहा है। पिछले दशकों में पूरे देश में पाकिस्तान समर्थित आतंकियों का नेटवर्क सक्रिय रहा है और इसने देश को आतंकी हमलों से क्षति भी पहुंचाई है।
पाकिस्तान की यह रणनीति उसके लिए बहुत कारगर रही है। कारगिल, आईसी-814 अपहरण प्रकरण, संसद पर आक्रमण,जयपुर और अजमेर में विस्फोट, मुंबई में 26/11 का आतंकी हमला जैसी घटनाओं को अंजाम देने के बावजूद पाकिस्तान विश्व के शक्तिशाली देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के गंभीर प्रतिबन्धों से बचने में किसी हद तक कामयाब रहा है।
तथ्य बताते हैं कि सन् 2005 से 2012 तक कश्मीर में स्थिति सामान्य थी किंतु इसके बाद हालात बिगड़े हैं। हिजबुल मुजाहिदीन और लश्कर-ए- तैयबा जैसे आतंकी संगठनों से जुड़ने वाले युवाओं की संख्या 2017 में 126 थी जो 2018 में बढ़कर 191 हो गई।
जो युवा हथियार उठाने में झिझक रहे हैं उन्हें पत्थर थमाए जा रहे हैं। उच्च शिक्षित और उच्च पारिवारिक पृष्ठभूमि के युवा भी उसी तेजी से आतंकी गतिविधियों में लिप्त हो रहे हैं जैसे निर्धन और अशिक्षित युवा।
राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल कश्मीर में देशी बमों तथा अन्य विस्फोटकों के प्रयोग की घटनाओं में 57 प्रतिशत इजाफा हुआ जो आतंकियों को मिल रहे स्थानीय समर्थन का प्रमाण है।
यदि भारत पाक के इस छद्म युद्ध का प्रतिकार करना चाहता है तो अब समय आ गया है कि वह हाइब्रिड वॉर की रणनीति पर गंभीरतापूर्वक विचार करे। पाकिस्तान को जैसे को तैसा उत्तर देने के लिए यह रणनीति उपयुक्त सिद्ध हो सकती है।
हाइब्रिड वॉर में पारंपरिक तथा अपारंपरिक एवं सैन्य व असैन्य गतिविधियों और साधनों का मिश्रण होता है। फोर्थ जनरेशन वारफेयर के अपारंपरिक तरीकों के प्रयोग द्वारा सैन्य आक्रमण जैसा परिणाम प्राप्त करना इसका ध्येय होता है।
रूस ने यूक्रेन और क्रीमिया में हाइब्रिड वॉर की रणनीति का सफल इस्तेमाल किया है। भारत हाइब्रिड वार के माध्यम से पाकिस्तान की पीड़ित-शोषित जनता को मुक्ति और राहत दे सकता है और उसे धार्मिक कट्टरता और सैन्य तानाशाही की जकड़न से मुक्त कर सकता है तथा वहां सच्चे लोकतंत्र की स्थापना का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
देश को इसके साथ कश्मीर के सामाजिक-आर्थिक विकास के कार्यक्रम के साथ कश्मीरी नौजवानों को यह विश्वास दिलाना चाहिए कि पूरा देश उनका है। हर प्रान्त का वासी उनके साथ है। क्योंकि वे भी उतने ही भारतीय हैं जितने देश के किसी अन्य भाग के निवासी।
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