मल्हार मीडिया ब्यूरो।
देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट पंजाब और हरियाणा की बार काउंसिलों पर बेहद नाराज हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इनके बारे में कहा है कि ये संस्थाएं “बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार”, “शर्मनाक कृत्यों” और “गलत आचरण” में लिप्त हैं।
साथ ही शीर्ष अदालत ने इन पर सख्त रुख अपनाते हुए यह चेतावनी तक दे डाली है कि अगर जरूरत पड़ी तो इन मामलों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया जाएगा, जो विशेष रूप से हरियाणा में बार निकायों के बैंक खातों की जांच करेगा।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने नाराजगी में ऐसा कहा है. अब सभी की नजरें 15 अप्रैल को होने वाली अगली सुनवाई पर टिकी हैं, जिसमें इस मामले में आगे की कार्रवाई पर फैसला लिया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि “पंजाब एवं हरियाणा की राज्य बार काउंसिल के वकीलों के कार्यालय और चैंबर प्रॉपर्टी डीलरों और भ्रष्टाचार का अड्डा बन गए हैं।
ये लोग हर तरह के शर्मनाक कृत्यों और गलत आचरण में शामिल हैं. यह हमारे संज्ञान में आया है और हम इसे हल्के में नहीं छोड़ेंगे। इन्होंने वकालत के पेशे को बदनाम किया है।”
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी एक याचिका की सुनवाई के दौरान की, जिसमें करनाल बार एसोसिएशन के चुनाव में हिस्सा लेने से अयोग्य ठहराए गए एक वकील संदीप चौधरी ने अपनी अयोग्यता को चुनौती दी थी।
चौधरी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता नरेंद्र हुड्डा ने कोर्ट को बताया कि रिटर्निंग ऑफिसर ने बिना कोई वोट डाले ही मतदान केंद्र के बाहर बैठकर उम्मीदवारों को निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिया। चौधरी ने इसे अपने अधिकारों का हनन बताते हुए कहा कि यह एक वकील के रूप में उनके मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है।
हुड्डा ने कोर्ट को बताया कि चौधरी को धन के दुरुपयोग के आरोपों के आधार पर चुनाव लड़ने से रोक दिया गया था और इसकी जांच के लिए एक समिति का गठन किया गया है। चौधरी ने अपनी अयोग्यता के खिलाफ बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) में अपील दायर की थी, जिसने उनकी अयोग्यता पर रोक लगा दी थी। हालांकि, बीसीआई के इस आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई, जिसने 27 फरवरी को चौधरी को दी गई राहत को रद्द कर दिया।
जस्टिस सूर्यकांत ने सुनवाई के दौरान हरियाणा सरकार पर भी निशाना साधा. उन्होंने कहा, “हरियाणा सरकार ने इन बार काउंसिलों को लाड़-प्यार दिया है। वकीलों के चैंबर प्रॉपर्टी डीलरों के अड्डे बन गए हैं। वहां कोई भी गंभीर पेशेवर वकील नहीं बैठता। मैंने कई जिला बार एसोसिएशन देखे हैं और ये सभी तरह के कदाचार और भ्रष्टाचार में लिप्त हैं।” कोर्ट ने यह भी कहा कि इन बार काउंसिल के पदाधिकारी पेशे को बदनाम करने में लगे हैं।
इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने करनाल बार एसोसिएशन के सदस्य और वरिष्ठ वकील आरएस चीमा से सहायता मांगी। पीठ ने चीमा से कुछ अन्य वरिष्ठ और प्रतिष्ठित वकीलों के नाम सुझाने को कहा, जो अस्थायी रूप से बार निकाय के पदों को संभाल सकें। कोर्ट ने चीमा को अगली सुनवाई में वर्चुअल रूप से उपस्थित होने की अनुमति दी और इस मामले की अगली सुनवाई 15 अप्रैल को तय की।
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