डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी।
कहावत है कि जब नाव को ज़मीन पर कहीं ले जाना होता है, तब उसे गाड़ी पर रखना पड़ता है, लेकिन जब गाड़ी को नदी के पार ले जाना हो, तब गाड़ी को नाव पर चढ़ाने की ज़रूरत होती है। आशय यह कि दिन सभी के आते हैं।
एक दौर था, जब पी. चिदंबरम की तूती बोलती थी। वे मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में सबसे महत्वपूर्ण मंत्रियों में से थे। कभी गृह और वित्त मंत्रालय उनके अधीन था। अब चिदंबरम खुद गर्दिश में हैं।
2007 में हुए एक सौदे के मामले की जांच करते हुए सीबीआई ने पाया कि वित्त मंत्री के रूप में चिदंबरम ने जो कार्य किए, उनमें कई पेंच थे। सीबीआई के अनुसार चिदंबरम ने न केवल अपने बेटे कार्ती चिदंबरम को अनेक तरीके से फ़ायदा पहुंचाया, बल्कि उन लोगों को भी फायदा पहुंचाया, जो उनके समूह में शामिल थे।
वित्त मंत्री की हैसियत से प्रवर्तन निदेशालय पी. चिदंबरम के ही हाथ में था। सीबीआई में दर्ज एफआईआर के अनुसार चिदंबरम ने 2007 में 307 करोड़ रुपये के विदेशी निवेश की धनराशि में काफी घपले किए।
20 अगस्त को दिल्ली हाई कोर्ट ने इसी मामले में चिदंबरम की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद चिदंबरम ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, लेकिन वहां उन्हें अभी तक कोई राहत नहीं मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में तुरंत सुनवाई से इनकार कर दिया है।
अब इस मामले की सुनवाई शुक्रवार 23 अगस्त को हो सकती है। इससे पहले बुधवार सुबह तीन जजों की बेंच ने कहा था कि राहत से जुड़ी याचिका को मुख्य न्यायाधीश के सामने रखा जाए और सीजेआई रंजन गोगोई ही इस मामले में सुनवाई करेंगे। चिदंबरम के वकीलों की कोशिश थी कि इस मामले में बुधवार को ही सुनवाई हो जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
इसके अलावा यूपीए के शासनकाल के दौरान एयर इंडिया के लिए किए गए 111 विमानों के सौदे के सिलसिले में भी पी चिदंबरम को जांच एजेंसी ने शुक्रवार को पेश होने के लिए समन भेजा है।
एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के विवादास्पद विलय समेत यूपीए सरकार के दौरान के कम से कम चार सौदों में अनियमितताओं और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों की जांच के लिए कई आपराधिक मामले दर्ज किए गए थे।
ये मामले अक्टूबर 2018 में दर्ज हुए थे। चिदंबरम पर आरोप है कि विदेशी विमान विनिर्माण कंपनियों को फायदा पहुंचाने के इरादे से सरकारी कंपनियों के लिए 70 हज़ार करोड़ रुपये के 111 विमान खरीदे गए थे। जांच एजेंसी ने आरोप लगाया था, 'ऐसी खरीददारी से पहले से ही संकट से गुज़र रही सरकारी विमानन कंपनी को कथित वित्तीय नुकसान हुआ।' सीएजी ने भी 2011 में सरकार के 2006 में विमान खरीदने के फैसले के औचित्य पर सवाल उठाया था।
विमान ख़रीदी मामले की जांच अभी जारी है। इसमें भी उनका फंसना तय ही है। अभी वे फंसे हैं आईएनएक्स मामले में। कहानी शुरू होती है 2007 से, जब पीटर मुखर्जी और इंद्राणी मुखर्जी की कंपनी आईएनएक्स मीडिया को विदेशी निवेश की अनुमति दिलवाई गई थी।
अनुमति मिली थी केवल 5 करोड़ रुपये के विदेशी निवेश की, लेकिन निवेश हो गया 300 करोड़ रुपये से अधिक। इस निवेश की गतिविधि में पी. चिदंबरम के पुत्र कार्ती चिदंबरम भी शामिल हो गए और उन्होंने अधिकारियों को प्रभावित करने की कोशिश की।
आईएनएक्स मीडिया को जिस निजी कंपनी से अरबों रुपये का फंड ट्रांसफर हुआ था, उस पर पी. चिदंबरम के बेटे कार्ती चिदंबरम का नियंत्रण था। किसी भी तरह का विदेशी निवेश हासिल करने के लिए फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट क्लियरेंस सर्टिफिकेट हासिल करना पड़ता है।
पी. चिदंबरम ने खुद फॉरेन इन्वेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड की तरफ से आईएनएक्स मीडिया को अनुमति दी थी। इसी मामले की जांच में आईएनएक्स मीडिया के प्रमुख पीटर मुखर्जी से भी न्यायिक हिरासत में पूछताछ की गई। जांच एजेंसियां चाहती थी कि पीटर मुखर्जी और कार्ती चिदंबरम को आमने-सामने बैठाकर पूछताछ की जाए।
पहले तो पी. चिदंबरम के पुत्र कार्ती चिदंबरम कानूनी दांव-पेंच का सहारा लेते रहे, लेकिन सीबीआई ने पाया कि विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड की मंजूरी में काफी अनियमितता की गई और काले धन का लेन-देन भी इस मामले में संभव है, जिसे तकनीकी भाषा में मनी लांड्रिंग कहा जाता है। सीबीआई और ईडी अभी इस मामले में पड़ताल कर रही है कि किस तरह अनुमति से कई गुना ज्यादा विदेशी मुद्रा प्राप्त की गई और उसे अलग-अलग कारोबारों में लगाया गया।
पीटर मुखर्जी स्टार टीवी के भारत स्थित प्रमुख रहे हैं। मीडिया जगत में उनका काफी नाम है। पीटर और उनकी पत्नी इंद्राणी ने आईएनएक्स मीडिया कंपनी बनाई। प्रमोटर के रूप में मुखर्जी दंपत्ति ने विदेशी निवेश के लिए प्रयत्न किया और उसमें सफल हुए।
विदेशी निवेश संबंधी अनुमति के सिलसिले में वे वित्त मंत्री पी. चिदंबरम से मिले थे। चिदंबरम ने दोनों की गुजारिश पर कहा कि मैं तुम्हारी मदद करूंगा, बदले में आप दोनों मेरे बेटे कार्ती की बिज़नेस में मदद करना। इसके बाद कार्ती और मुखर्जी दंपत्ति मिलकर काम करने लगे। इस तरह कार्ती चिदंबरम आईएनएक्स मीडिया से जुड़ गए।
कुछ समय पूर्व जब ईडी की जांच टीम एयरसेल-मैक्सिम डील की जांच कर रही थी, तब कार्ती चिदंबरम से जुड़ी कंपनियों में विदेशी पैसा आने की बात सामने आई। जांच की, तो उसकी परतें खुलने लगीं।
आईएनएक्स की प्रमोटर इंद्राणी मुखर्जी सरकारी गवाह बन गई और उसने जो बयान दिए, वे सब चिदंबरम के ख़िलाफ़ जाते थे। इंद्राणी मुखर्जी शीना बोरा हत्याकांड में आरोपी है। इंद्राणी पर आरोप है कि उसने अपनी और पूर्व पति संजीव खन्ना की बेटी शीना की हत्या की।
इंद्राणी मुखर्जी आईएनएक्स मीडिया में सीईओ रही है। कंपनी बनने के दो साल बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया और कंपनी में अपनी हिस्सेदारी भी बेच दी। आईएनएक्स मीडिया भी बनने के बाद से ही अनेक मामलों में विवादों में रहा है। पहले इस कंपनी पर एक संस्थापक वीर संघवी का नियंत्रण था, लेकिन कंपनी बनने के बाद इंद्राणी और पीटर ने वीर संघवी को बाहर जाने के लिए मज़बूर कर दिया।
आईएनएक्स न्यूज़ मीडिया में इंद्राणी मुखर्जी ने पूरी तरह मनमर्जी से काम किया। कई वरिष्ठ पत्रकार जैसे अविरुक सेन, राजेश सुंदरम, निक पोलार्ड, अरुण रायचौधरी, कैलाश मेनन आदि को उसने बाहर का रास्ता दिखा दिया। प्रकाश पात्रा और नरेन्द्र नाग जैसे कई वरिष्ठ पत्रकारों ने इंद्राणी के दुर्व्यवहार के खिलाफ इस्तीफ़ा दे दिया।
पत्रकारों ने तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री प्रियरंजन दासमुंशी तक अपनी बात पहुंचाई। पत्रकारों ने उन्हें बताया कि आईएनएक्स मीडिया में मनी लांड्रिंग का पैसा लगा हुआ है। दासमुंशी ने तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम को मामले से अवगत कराया और जांच की बात भी कही। ऊपरी दबाव के बाद आईएनएक्स मीडिया ने पूर्व पत्रकार अविरुक सेन से सेटलमेंट कर लिया और उन्हें 2 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया।
इसके बाद अविरुक शांत बैठ गए। वीर संघवी के बाहर जाने के बाद निवेशकों के दबाव बढ़ने लगे। आईएनएक्स मीडिया ने तब तक अपना समाचार चैनल शुरू भी नहीं किया था। 31 मार्च 2008 उसकी डैडलाइन थी। पीटर मुखर्जी ने इस रास्ते से बाहर आने के लिए नए रास्ते तलाशे और आईएनएक्स मीडिया इडी मीडिया नेटवर्क को बेच दिया, जिसके आंशिक स्वामी इंदौर के एक अखबार मालिक भी थे ।
5 साल तक यह मामला यूं ही चलता रहा। अप्रैल 2013 में जब नीरा राडिया प्रकरण सामने आया, तब आईएनएक्स न्यूज के मालिकों में मुकेश अंबानी का नाम आगे था। सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस (एसएफआईओ) को तब पता चला कि इंदौर का वह अखबार वास्तव में अप्रत्यक्ष रूप से मुकेश अंबानी समूह के स्वामित्व का है, जिसे 7 जनवरी 2009 को आईएनएक्स मीडिया के 208 रुपये 24 पैसे कीमत वाले शेयर मात्र 10 रुपये में बेच दिए गए।
इस तरह सामान्य शेयरधारकों के करोड़ों रुपये मनमाने दाम पर बेचकर आर्थिक घोटाले किए गए। आईपीसी की धारा 120बी (षड्यंत्र), 415 (चीटिंग), 418 (जान-बूझकर नुकसान पहुंचाने के इरादे से की गई चीटिंग) और 420 के तहत मामला दर्ज़ किया गया।
आईएनएक्स मीडिया के गड़बड़ियों की सूची काफी लंबी है। फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (फेमा) के तहत भी 2010 में मामला दर्ज हुआ था। इसके अनुसार विदेशों से आया सीधा निवेश मॉरिशस की तीन कंपनियों को डायवर्ट कर दिया गया था।
इसके लिए फॉरेन इन्वेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड से कोई परमिशन भी नहीं ली गई। ये तीन कंपनियां थी न्यू फेरनॉन प्राइवेट इक्वीटी लिमिटेड, न्यू सिल्क रूट पी.ई. मॉरिशस और दुनअर्थ इन्वेस्टमेंट (मॉरिशस)। जांच में पता चला कि मुखर्जी दंपत्ति ने 275 करोड़ 50 लाख रुपये मॉरिशस की 8 ऐसे कंपनियों को ट्रांसफर कर दिए थे, जो आईएनएक्स ग्रुप की सहयोगी कंपनियां थी। सितंबर 2015 में ईडी के मुंबई कार्यालय में 2010 के फेमा केस को फिर से खोल दिया।
पी. चिदंबरम के खिलाफ जब जांच शुरू हुई, तब पीटर मुखर्जी और इंद्राणी मुखर्जी ने खुलकर बयान दे दिए। ईडी ने इंद्राणी मुखर्जी के बयान को तो चार्जशीट में भी शामिल कर लिया। मामला बिल्कुल साफ़ है कि तत्कालीन वित्त मंत्री ने ग़लत तरीके से आए करीब 300 करोड़ रुपये का फंड रोका नहीं और उसका उपयोग अपने बेटे के कारोबार को बढ़ाने के लिए किया।
यह बात अभी तक साबित नहीं हुई है और न ही कोई खुलासा हुआ है कि मुखर्जी दंपत्ति ने चिदंबरम को रिश्वत दी या नहीं या कितनी रिश्वत दी, लेकिन मामला यह है कि रिश्वत नकद में न देकर सेवा के रूप में दी गई। इंद्राणी मुखर्जी का बयान कहता है कि पी. चिदंबरम ने मामला सुलटाने के लिए कोई रिश्वत नहीं मांगी, लेकिन उनके बेटे कार्ती ने कहा कि अगर 10 लाख डॉलर उनके किसी ओवरसीज बैंक अकाउंट में जमा करा दिए जाए, तो मामला निपट सकता है।
पीटर ने कहा कि बाहरी बैंक में पैसा ट्रांसफर करना संभव नहीं है, तब कार्ती ने दो फर्म- चेस मैनेजमेंट और एडवांटेज स्ट्रेटेजिक में पेमेंट का सुझाव दिया।
अब इंद्राणी मुखर्जी सरकारी गवाह बन गई है। पीटर मुखर्जी से उनके तलाक की प्रक्रिया जारी है। इंद्राणी जेल में बार-बार कहती रही कि मुझे जेल में जान का खतरा है। कार्ती चिदंबरम जांच एजेंसियों के हत्थे चढ़ चुके है। पी. चिदंबरम की जमानत हाईकोर्ट रद्द कर चुका है। और वे यह लिखे जाने तक लापता हैं।
कहा जा रहा है कि अमित शाह चिदंबरम से अपना हिसाब पूरा करना चाहते हैं, क्योंकि अब अमित शाह गृह मंत्री हैं। अमित शाह भी सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले, इशरत जहां केस और एक महिला आर्किटेक्ट की जासूसी के मामले में फंसाए जा चुके हैं। वे इन सबसे कानूनी रूप से बाहर आने में सफल हुए हैं। कानूनी रूप से अमित शाह का दामन पाक साफ है, लेकिन पी. चिदंबरम का दामन अभी साफ़ नहीं कहा जा सकता।
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