डा राम श्रीवास्तव।
अमृतसर की रेल त्रासदी के लिये अगर कोई ज़िम्मेदार है तो वह है रेलवे विभाग में व्याप्त ब्यूरोक्रेसी की जड़ता।
1964 में भारत में अन्मेन्ड लेवल क्रासिंग गेट की संख्या 17 हजार से ज़्यादा थी। सैकड़ों लोग प्रतिवर्ष यहॉ मरते रहते हैं।
आज भी भारत में 4379 ऐसे रेल सड़क के बीच जंक्शन हैं जहॉ पर कोई क्रासिंग पर फाटक नहीं है।
मैंने 1964 में रेल्वे मंत्रालय को स्वचालित लेवल क्रासिंग फाटक लगाने की योजना प्रस्तावित की थी।
रेल्वे बोर्ड ने मेरी योजना की पूरी विस्तृत जानकारी, डिजाईन तथा सभी तकनीकी जानकारी आॅफिसियली पत्र लिखकर मँगा ली थी।
तत्पश्चात जनवरी 1965 में रेल्वे बोर्ड ने लिखित में मुझे सूचित किया कि जो डिवाइज़ मेरे व्दारा प्रस्तावित की गई है, उसे भारतीय रेलवे में पहले ही विकसित कर लिया गया है।
दुर्भाग्य से 1964 से लेकर आज तक भी देश में किसी जगह स्वचालित लेवल क्रासिंग गेट कहीं पर भी स्थापित नहीं किये जा सके हैं।
अगर रेलवे ने मेरे व्दारा सुझाई गई युक्ति 1964 के पहले ही विकसित कर ली थी, तो आज तक उसे कहीं पर क्यों नहीं लगाया जा सका है?
असली में रेल्वे और भारत सरकार के बड़े से बड़े तकनीकी विशेषज्ञों का ज्ञान महज़ उस स्तर तक सीमित है, जब वह वर्षों पूर्व अपने इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ते थे।
आधुनिकतम ताजा तकनीकी प्रगति की उन्हें कोई जानकारी नहीं रहती है। उन्हें नई जानकारी का पाठ विदेशी बड़ी—बड़ी कम्पनियों के ‘पी आर ओ ‘और “एक्सपर्ट “पढ़ाते रहते हैं, जिनके करोड़ों के टेन्डर मंज़ूर करके यह रेल का आधुनिकरण करते हैं।
संलग्न दस्तावेज मेरे इस निष्कर्ष की पुष्टि करते हैं। अब बुलेट ट्रेन और हायपर लूप रेल भी भारत में आ रही है।
बधाई! पर इसमें ( महज पैसों के अलावा ) भारतीय क्या है? आजादी के 70 साल बाद भी हम विदेशी कीलें खरीद कर, दीवार पर ठोककर, वन्दनबार लटकाकर कब तक जश्न मनाते रहेंगे।
हम अपनी तकनीकें क्यों विकसित नहीं करते हैं और जो कुछ करना चाहते हैं उन्हें ब्यूराक्रेसी रोकती है, ऐसा कब तक चलेगा ?
आज के युग में तकनीकी विकास इतना अधिक हो चुका है कि जब एक कार के आगे अगर सामने जारही कार अचानक रूक जाती है, तो पीछे को चल रही कार में अपने आप ब्रेक स्वचालित तरीक़े से लग जाते हैं और पीछे की कार रूक जाती है। टक्कर होने से बच जाती है।
मैं स्वंय, आज भी, उस तकनीक को विकसित करके उपहार में रेल्वे को दे सकता हूँ, जिससे रेल के ट्रेक पर पॉच मील दूर भी कोई व्यवधान आ जाये , तो 120 कि०मी० प्रति घण्टे की रफ़्तार से चल रही रेलगाड़ी टकराने के हादसे से पहले ही स्वचालित ढंग से अपने आप रूक जाएगी।
पर हमारे देश का यह दुर्भाग्य है कि अगर हमारे देश का कोई व्यक्ति कोई नई युक्ति सुझाए तो हमारे यहॉ की ब्यूरोक्रेसी उसे मज़ाक़ में उड़ा देती है। जबकि यही नई चीज़ किसी विदेशी कम्पनी की तरफ़ से आती है तो सब लोग उसे जाने समझे बग़ैर गले से लगाकर धन्य होते हैं।
काश अमृतसर हादसे की ट्रेन में रेल्वे ट्रेक डिटेक्शन की स्वचालित डिवाइज़ लगी होती तो यह रेलगाड़ी ट्रेक पर आदमियों को देखने के साथ ही आटोमेटिक ब्रेकिंग लगाकर अपने आप रूक जाती। सैकड़ों लोगों की जान न जाती। मेरे विचार में अमृतसर के नरसंहार के लिये पूरी तरह हमारी ब्यूरोक्रेसी ज़िम्मेदार है।
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