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मंदाकिनी को बचा लें तो स्वतः हो जायेगा ग्रामोदय

खास खबर            Feb 28, 2017


बांदा चित्रकूट से आशीष सागर।
चित्रकूट/सतना (एमपी)- एमपी के हिस्से में स्थित बीजेपी सियासत के गढ़ दीनदयाल शोध संस्थान में गत तीन दिन से विशाल ग्रामोदय मेला का आयोजन किया जा रहा है। देश भर के संघ नेता-प्रचारक और एमपी,बिहार,हरयाणा राज्य सरकार के मंत्री,राज्यपाल सभी ने अपनी हाजिरी लगाई। संघ प्रमुख मोहन भागवत,बिहार के राज्यपाल कोविद,हरयाणा के राज्यपाल कप्तान सोलंकी,केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते,हरयाणा के ग्रामीण विकास मंत्री ओमप्रकाश धनकल,एमपी बुन्देलखण्ड विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष डाक्टर रामकृष्ण कुसमरिया,अर्चना चिटनीस आदि ने यहाँ दस्तक दी।

बतलाते चलें चित्रकूट में डीआरआई के संस्थापक श्रधेय नाना जी देशमुख के अथक प्रयास से एक दशक पूर्व शुरू हुई 500 गाँवो की 'स्वावलंबन योजना' (एक दम्पति एक गाँव में रहकर वहां सर्वोदय,ग्रामीण विकास की पुनर्स्थापना का प्रयास करता था ) इसमें बहुत हद तक सफलता भी मिली लेकिन समय के साथ नानाजी की उम्र के पड़ाव में संस्थान की बागडोर यहाँ के तत्कालीन प्रधान सचिव भरत पाठक,डाक्टर नंदिता दास के हाथों में आ गई। परिवारवाद की चपेट में आये इस प्रकल्प को ठीक वैसा ही घुन लगा जैसा उत्तरप्रदेश में समाजवादी परिवार की सियासत को! कभी डाक्टर कलाम भी सुरेन्द्रपाल ग्रामोदय की धरती में पंगत भोजन कर चुके हैं,उन्होंने तब नानाजी को ग्रामीण विकास का योद्धा कहा था। अक्सर होता कि तयशुदा विजिट आथित्य में जमीन का सच छुप जाता है।

नानाजी अपनी बीमारी के चलते संस्थान के आंतरिक मामलों से दूर थे और भरत-नंदिता की पकड़ मजबूत हो रही थी। गौरतलब है दीनदयाल शोध संस्थान की बुनयाद में उन तमाम युगल दम्पति और कार्यकर्ता का श्रम-पसीना लगा है जिन्हें आज भी माकूल मासिक वेतन नहीं मिलता है। एक सर्वे एजेंसी को इसका भी आंकलन करना चाहिए कि क्या यहाँ उनके मानवधिकार सुरक्षित है? संस्थान के उच्च पद पे आसीन बीजेपी/ संघ के नेता वीआईपी खानपान,उपचार आवभगत से लैस होते है। चित्रकूट एमपी की इस इमारत को कभी टाटा ने अपने अनुदान से खड़ा किया था नानाजी की पवित्र परिकल्पना से प्रभावित होकर। जिसको उनके दत्तक पुत्र भरत ने बट्टा लगा दिया। इसी के चलते वर्तमान केंद्र सरकार बदलते ही उन्हें प्रधान सचिव पद से हटाकर अभय महाजन को यहाँ लाया गया। आज वे गोंडा प्रकल्प में है। भरत के लिए विद्रोह के अंकुर बहुत पहले से पोषित हो रहे थे जिसे सरकार बनते ही कारगर किया गया।

 

आज एमपी सरकार की बड़ी लाभकारी योजना का प्रशिक्षण केंद्र बना ये संस्थान बीजेपी की चुनावी,संघठन की समीक्षा का केंद्र है। ग्रामोदय मेले में ग्रामीण विकास के चरणबद्ध सोपान का प्रचार है,उधर इस मेले से ठीक बीस किलोमीटर की दूरी में सती अनसुइया मार्ग में बसे आदिवासी गाँव के हाल भी देखे जा सकते है। आगे चलने पर सतना से लगे मंझगवा-सतना के गाँव भी देख लीजिये। वहीं चित्रकूट की यूपी सरहद में भी इस संस्थान ने स्वालंबन योजना के तहत काम किया था। सरैया-नयाचन्द्रा,मानिकपुर के पाठा इलाके में आदिवासी जीवन की बदहाली आज जस की तस है। महिला प्रसव,बाल शिक्षा,गाँव विकास के माडल धराशाही है।

खैर ये मुद्दे छोड़िये जब ग्रामोदय की बात है तो चित्रकूट की एमपी-यूपी की प्राणदायनी मंदाकनी-पयश्वनी नदी का सच भी मेले में आये 'माननीय' लोगों को देखना-संज्ञान लेना चाहिए। पहले भी स्थानीय साथियों ने कई बार मंदाकनी की व्यथा को उकेरा है। यह नदी ग्रामीण कृषि,चित्रकूट के पर्यटन की एक मात्र आस्था,अस्मिता है.स्थानीय रहवासियों की पहचान- आजीवका भी है। अब तक करोड़ों रूपये इसकी बहाली में खर्च किये जा चुके लेकिन एमपी-यूपी के हिस्से में एक सीवर लाइन न बन सकी। मंदिर,ट्रस्ट,होटल,घरों से निकलने वाले सीवर इसको गटर बना चुके हैं।

चित्रकूट सतना बस स्टैण्ड से आगे कांच मंदिर से लेकर,प्रमोदवन,सियाराम कुटीर-अन्नपूर्णा भोजनालय,रामघाट और नयागांव से आने वाले मैले को इस ग्रामोदय मेले में आये नेताओं,संघ-बीजेपी प्रचारकों ने क्यों नहीं देखा ये यक्ष प्रश्न है? एनजीटी,जबलपुर उच्च न्यायालय के आदेश चित्रकूट की रामनगरी में दफ़न है। याचिका करने वाला सामाजिक कार्यकर्ता अपनी टूटन से हलकान है। जिसने जहाँ समझा,मौका पाया नदी को पाटने का जतन किया है। क्या मंदाकनी के जिंदा रहे बगैर चित्रकूट का गामोदय हो सकता है ? मेले में आये उन वीआईपी वक्ताओं से मेरा यही सवाल है,यह भी जानता हूँ ये एक पोस्ट मात्र है जिसका असर कुछ नहीं होना है केंद्र और एमपी सरकार पर जो नर्मदा यात्रा का प्रपंच कर रही है पर सवाल मौजूद है तो उठेगा ही! कभी शिविर से इतर आस-पास की दुर्दशा भी देखा करे तभी ग्रामोदय की ज़रूरत समझ पाएंगे बाकि मेला तो मेला है निपट जायेगा अगले एक और जलसे की जुगाड़ में...जिस उत्पाद को मेले में सजाये है उसके निर्माता थे जंगल के आदिवासी जिन्हें आज अनियोजित विकास का कलपुर्जा थमा दिया गया है इसको बदलने की आवश्यकता है अगर ग्रामोदय ही देखना है।



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