बनारस से अभिषेक शर्मा।
आज गंगा दशहरा है मतलब कि आज ही के दिन अयोध्या के रहने वाले राजा भगीरथ माँ गंगा को धरती संग अपने पुरखों के उद्धार के लिए स्वर्ग से लाए थे। युगों पुरानी गंगा नदी को हमेशा जीवित स्वरूप माना गया और पूजा भी देवी के तौर पर होती आई है। पुराणों में एक मान्यता है कि कलियुग जब चरम पर होगा तो गंगा सूख जाएंगी। इस लिहाज से देखें तो कलियुग चरम पर है क्योंकि गंगा मैदान में आते ही सूख जा रही हैं।
पंचनद में शामिल यमुना, चम्बल इटावा में मिलकर एक होती हैं और एक धार यमुना बनकर इलाहाबाद में गंगा में मिल जाती हैं। इस लिहाज से मैदान में आकर गंगा के सूखते हलक को यमुना चम्बल का सहारा मिलता है। (... और इलाहाबाद के आगे लोग इसे फिर भी गंगा मानते हैं) फिर यही पानी बनारस होता हुआ बिहार पहुंचता है और इसमें सरयू/घाघरा का अथाह जल मिलता है और लोग कहते हैं हर हर गंगे। इलाहाबाद से पहले पहाड़ों से उतरी गंगा का हलक टिहरी में ही सूख जा रहा है और लोग यमुना चम्बल सरयू के पानी को हर हर गंगे कह कर सम्मान देते हैं। गंगा तो बस मान्यता भर की ही बची हैं, आप यमुना चम्बल और सरयू के जल को गंगा कहते हैं तो खुद को या तो धोखा दे रहे हैं या धोखे में जी रहे हैं।
गंगा की निर्मलता इसकी अविरल धारा में है जिसे उत्तराखंड में थाम कर गंगा को गन्दा करने का काम सभी सरकारों ने किया है। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल मुदित हैं इस बात से कि गंगा हमें आज भी सींच रही हैं मगर क्रेडिट यमुना, चम्बल और सरयू को नही देते। तीन वर्ष पूर्व टिहरी में गंगा को मुक्त कराने के लिए कुछ साधु संत और पर्यावरणविद गए थे प्रदर्शन करने। जानते हैं वहां उनको लाठियों से पीट पीट कर भगा दिया गया, समझिये कि गंगा की मौज का मौज बंजारा बनकर उत्तराखंड ले गया और हम सभी गंगा के नाम पर नाली के जल से आचमन कर हर हर गंगे कर रहे हैं।
करोड़ों अरबों रुपये गंगा से छान रहे ठेकेदार मगर गंगा को मिला क्या? गंगा मंत्रालय तीन वर्षों में कई अरब रुपये पी गया मगर गंगा किनारे एक भी सीवर ट्रीटमेंट प्लांट नही शुरू हुआ (सवाल तो करूँगा भले बुरा लगे आपको)। उद्योगों का मल जल फर्रुखाबाद से लेकर पश्चिम बंगाल तक बिना उपचारित हुए सीधा गंगा में जा रहा है मगर सरकार चोट कर रही है गंगा किनारे बसे गांवों को कि शौचालय बनवाओ।
जख्म कहीं है, इलाज कहीं हो रहा है... मगर हम मौन रहेंगे क्योंकि माने बैठे हैं सरकार जो कर रही है सही कर रही है। गंगा को गन्दा कहने पर धर्म और आध्यात्म की बातें सिखाने वाले भी सरकार से यह नही पूछेंगे कि गंगा की मुक्ति सरकार करेगी या हम मोर्चा सम्भालें! कानपुर के चमड़ा उद्योगों का लाखों टन केमिकल युक्त प्रदूषित पानी सीधे गंगा में जा रहा मगर अदालत रोकेगी किसे- मूर्तियों के विसर्जन को। सरकार को इन मूर्तियों का गंगा में विसर्जन कुछ नही देता मगर उद्योगपति राष्ट्रीय पार्टियों को फंड यानी मोटा माल देते हैं। लिहाजा सरकार भी गंगा को साफ करने का सिर्फ ढोंग करती है... बुरा मानना हो खूब मानिए, मुझे कोसिये, गालियां दीजिये क्योंकि आपकी सरकारों को कठघरे में खड़ा करता हूँ आपकी राजनीतिक भक्ति और आस्था को चोट पहुँचाता हूँ। मगर मैं भी नही लिखूंगा तो आने वाली नस्लें कहेंगी कि कलम से क्रांति करने वाले भी सत्ता के तलुवों में भविष्य को गर्त में पहुचने के लिए लोटपोट थे। #नमन_माँ_गंगा
Comments