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2014 के चुनाव केंद्र बिंदु रहा मध्यवर्ग हाशिए पर

खास खबर            Dec 31, 2018


राकेश दुबे।
आंकड़े कुछ भी कहें देश का समाज विषमता के दौर से गुजर रहा है। जाते हुए वर्ष 2018 का मूल्यांकन बढ़ी असमानता की उस पुरानी कहानी को ही दोहरा रहा है, जिसमें आर्थिक वृद्धि के लाभ मुख्यत: ऊंचे तबके के ही पास गये हैं।

छोटे कारोबार ने नोटबंदी और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के असर को बुरी तरह झेला है? इसका परिणाम यह हुआ है कि राज्य किसानों की कर्ज माफी कर रहे हैं, जीएसटी में लगातार बदलाव किए जा रहे हैं और सभी के लिए एक बुनियादी न्यूनतम आय की योजना लाने के बारे में चर्चा तेज हो गई है।

यह मुख्यत: मध्यवर्ग की बात है। जिसका आकार एक छोटे हिस्से से बढ़ते हुए 30 प्रतिशत से भी अधिक परिवारों तक जा पहुंचा है। मध्यवर्ग में शहरों या कस्बों के वे परिवार आते हैं जिनकी औसत मासिक आय 33000 रुपये या अधिक है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में मध्यवर्गीय परिवार की आय का स्तर कम है।

यह उस अंतरराष्ट्रीय मानक के समकक्ष है जिसके मुताबिक मध्यवर्गीय परिवार के हरेक व्यक्ति की दैनिक आय 10 डॉलर से ऊपर हो। भारत में इस आय स्तर से ऊपर के लोगों के पास आज एक कार या दोपहिया, स्मार्टफोन, केबल या सैटेलाइट कनेक्शन और संभवत: एक पर्सनल कंप्यूटर भी होता है।

यह तस्वीर ऊपर के 30 प्रतिशत हिस्से की है, बाकी 70 प्रतिशत की क्या हालत है? 2014 के चुनाव अभियान का केंद्र बिंदु नव-मध्य आबादी के मध्यवर्ती 30 प्रतिशत लोग थे। यह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की दो सरकारों के लक्षित समूह से एक स्तर ऊपर था।

संप्रग इस तबके के लिए रोजगार गारंटी योजना, खाद्य सुरक्षा कानून और शिक्षा का अधिकार कानून लेकर आया था।

नरेंद्र मोदी ने पहले रोजगार गारंटी योजना को कांग्रेस की नाकामी का प्रतीक बताकर उसका मजाक उड़ाया था, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी दिशा बदल ली और खुद तमाम योजनाएं उसी साधारण आदमी के लिए लेकर आए।

जन धन बैंक खाता, उज्ज्वला रसोई गैस योजना और स्वच्छ भारत योजना इसकी बानगी हैं। अब उस नव-मध्य वर्ग की बात कोई नहीं करता है जिसका जिक्र अरुण जेटली ने अपने पहले बजट भाषण में किया था लेकिन बाद में उसे भूल गए।

आज समस्या यह है कि नव-मध्य वर्ग एवं छोटे कारोबार का बड़ा तबका भी थका हुआ महसूस कर रहा है। गहरी समस्या यह है कि गरीबों के लिए चाहे जितनी भी योजनाएं बन जाएं,इनके क्रियान्वयन में लगी व्यवस्था उस साधारण आदमी के बजाय विशेषाधिकार वाले तबके के लिए अधिक काम करती है।

सड़कों का बड़ा हिस्सा गाड़ियों के हवाले हो जाता है और साइकिल या पैदल यात्रियों के लिए जगह नहीं बचती।

आधुनिक राष्ट्र-राज्य के सभी बुनियादी कार्यों- शिक्षा,सार्वजनिक परिवहन, अदालतों, स्वास्थ्य देखभाल और कानून व्यवस्था मशीनरी के मामले में भी निचले तबके की पहुंच की हालत ऐसी ही है। ऐसे में धनी एवं गरीब राज्यों का सम्मिलन कैसे हो पाएगा?

लेखक प्रतिदिन पत्रिका के संपादक हैं।

 


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