हेमंत पाल।
मध्यप्रदेश में किसान खुश हैं कि नई सरकार ने उनका दो लाख तक का बैंक कर्ज माफ़ करवा दिया। लेकिन, उन्हें सूदखोरों से कौन बचाएगा, जिनसे वे बैंक से कहीं ज्यादा परेशान हैं। इसी कारण किसान ख़ुदकुशी करने को भी मजबूर होते हैं। भाजपा के 15 साल के कार्यकाल में किसानों की ख़ुदकुशी का भी रिकॉर्ड बना। पर, सरकार ने गंभीरता से कुछ नहीं किया।
किसानों के लिए जार-जार आँसू बहाने का नाटक करने वाले तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने किसानों के लिए क्या किया, ये बातें अब छनकर बाहर आने लगी हैं। उन्होंने सूदखोरों को किसानों का खून चूसने की खुली छूट दे रखी थी। इन्हीं सूदखोरों के दबाव में ही प्रदेश सरकार ने 'साहूकारी कानून' में बदलाव को भी टाल दिया था, जबकि सारी तैयारी हो चुकी थी।
शिवराज सरकार ने दूसरे कार्यकाल में साहूकारी कानून में बदलाव करने की घोषणा की थी, लेकिन नहीं कर पाई। साल 2010-11 में भी प्रदेश में ऐसे ही हालात बने थे, जब सूदखोरी के चलते 89 किसानों की आत्महत्या की थी।
तब, शिवराज-सरकार ने स्वीकारा था कि किसानों की ख़ुदकुशी का कारण सूदखोरी है। किसानों की ख़ुदकुशी पर जब हंगामा हुआ तो शिवराजसिंह चौहान ने 15 जनवरी 2011 को 'साहूकारी कानून' में बदलाव की घोषणा की। उन्होंने राजस्व विभाग को संशोधन का ड्राफ्ट जल्द तैयार करने के निर्देश भी दिए थे।
विभाग को कानून में संशोधन का ड्राफ्ट तैयार करने में 4 साल लगे। दो बार ये ड्राफ्ट मुख्यमंत्री के सामने रखा गया, लेकिन अंतिम फैसला नहीं हुआ। इसके बाद 8 सितंबर 2015 को मुख्यमंत्री सचिवालय से प्रक्रिया को यथास्थिति रखने के निर्देश आ गए। तब से इस कानून में बदलाव की फाइल अलमारी में ही बंद है। संशोधन को टाले जाने का कारण था, भाजपा से जुड़े सूदखोरों का दबाव जो नहीं चाहते थे कि कोई संशोधन हो!
'साहूकारी कानून' में बदलाव के तहत ब्याज पर लेन-देन करने वाले सूदखोरों को लाइसेंस देने और गैर-लाइसेंसी सूदखोरों द्वारा दिए गए कर्ज को शून्य घोषित करने का प्रावधान रखा जाना था। सूदखोरों द्वारा दिए जाने वाले खेतीहर कर्ज की ब्याज दर का निर्धारण भी किया जाना था, ताकि सूदखोर मनमाने तरीके से ब्याज न वसूल सकें।
प्रदेश के तत्कालीन गृहमंत्री उमाशंकर गुप्ता ने किसानों की ख़ुदकुशी से संबंधित आंकड़े विधानसभा के सामने रखे थे। इस रिपोर्ट के मुताबिक 6 नवंबर 2010 से 20 फरवरी 2011 के बीच 89 किसान और 47 कृषि श्रमिक ने सूदखोरों के कारण ही ख़ुदकुशी की। वहीं 58 मामले ख़ुदकुशी की कोशिश के भी दर्ज हुए।
2010 में सरकार ने किसानों द्वारा की गई ख़ुदकुशी के मामलों की जांच कराई गई थी। जांच में पता चला था कि फसल खराब होने के कारण किसान कर्ज नहीं लौटा पा रहे हैं।
किसानों ने बैंकों के अलावा सूदखोरों से भी 2 से 6 फीसदी ब्याज पर कर्ज ले रखा था, जिसकी वसूली के लिए सूदखोर लगातार तकादा लगा रहे थे।
मानवाधिकार आयोग ने भी मध्यप्रदेश में किसानों की ख़ुदकुशी के बढ़ते मामलों पर टीम का गठन किया था। इस टीम ने जाँच के बाद आयोग को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इसमें खुलासा हुआ कि प्रदेश में किसानों की मौत का का बड़ा कारण सूदखोर ही हैं।
इनके दबाव में ही किसान ख़ुदकुशी करते हैं। आयोग ने शिवराज सरकार के राजस्व विभाग को भी ये जाँच सौंपी थी। इस रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा था कि प्रदेश सरकार साहूकारी कानून का पालन कराने में नाकाम साबित हुई है।
क़रीब आठ साल पहले 'कृषि लागत एवं मूल्य आयोग' (सीएसीपी) ने पंजाब में कुछ घटनाओं के आधार पर किसानों की ख़ुदकुशी की वजह जानने की कोशिश की थी। इसमें भी सबसे बड़ी वजह किसानों पर बढ़ता कर्ज़ और उनकी छोटी होती जोत बताई गई।
साथ ही मंडियों में बैठे साहूकारों द्वारा वसूली जाने वाली ब्याज की ऊंची दरें बताई गई थीं। लेकिन, यह रिपोर्ट भी सरकारी दफ़्तरों में दबकर रह गई। असल में खेती की बढ़ती लागत और कृषि उत्पादों की गिरती क़ीमत किसानों की निराशा की सबसे बड़ी वजह है।
कमलनाथ सरकार ने अपना चुनावी वादा पूरा करते हुए किसानों के 2 लाख तक का कर्ज माफ़ कर दिया। ये अलग बात है कि इस घोषणा से कितने किसानों का कर्ज माफ़ हुआ और किसे इसका लाभ नहीं मिला। लेकिन, सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या वास्तव में किसान बैंक कर्ज से ही परेशान होते है?
प्रदेश में किसानों की ख़ुदकुशी के कारण क्या सिर्फ बैंक कर्ज है? इन सवालों का जवाब खोजा जाए तो निष्कर्ष निकलता है कि किसान बैंक कर्ज के कारण ही ख़ुदकुशी के लिए मजबूर नहीं होते! किसानों को सबसे ज्यादा त्रस्त सूदखोरों से होते हैं। वे ज्यादा ब्याज पर तो कर्ज देते ही हैं, खेत और उनके घर के कागजात तक रहन में रख लेते हैं।
प्रदेश में किसानों की ख़ुदकुशी का एक बड़ा कारण ये भी है। क्या कांग्रेस की कमलनाथ सरकार प्रदेश के साहूकारी कानून को सख्त बनाकर किसानों को राहत देगी, जो शिवराज-सरकार घोषणाके बावजूद नहीं कर सकी!
बैंक से कर्ज लेने के अलावा सूदखोरों से भी कर्ज लेना किसानों की मज़बूरी है। साल में कम से कम दो बार ऐसे मौके आते हैं, जब किसानों को इन सूदखोरों के चंगुल में फंसना पड़ता है। इसी वक़्त का फ़ायदा उठाकर सूदखोर किसानों 4 से 6 और कभी-कभी 8 फीसदी ब्याज पर कर्ज देते हैं।
कर्ज देने के साथ ही वे अपना ब्याज भी काट लेते हैं। ब्याज पर रुपए देने के बदले किसान की जमीन, मकान की रजिस्ट्री, वाहन, सोने-चांदी के जेवर तक अपने पास रख लेते हैं। इसके बाद तय समय पर रुपए नहीं लौटाने पर पेनल्टी लगाई जाती है। पेनल्टी 10 से 25 फीसदी तक वसूली जाती है। जो रुपए नहीं देता उसकी उसकी जमीन, मकान, वाहन तक ये सूदखोर हड़प लेते हैं। उसे बेइज्जत भी किया जाता है।
ऐसे में ब्याज लेने वाला व्यक्ति प्रताड़ित होने लगता है। उसके घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ जाती है और वह आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाता है। ब्याज पर रुपए देने के साथ ही हुंडी-चिट्ठी का कारोबार भी किसानों से किया जाता है। इसमें ब्याज पर रुपए देने के बाद चिट्ठियों से हिसाब-किताब रखा जाता है।
मध्यप्रदेश में 2013 से 2016 के बीच किसानों की खुदकुशी दर 21% की दर से बढ़ी। हालांकि, केन्द्र सरकार ने लोकसभा में दिए जवाब में हाल ही में कहा कि इसके बाद के आंकड़े उसके पास उपलब्ध नहीं हैं।
5 बार कृषि कर्मण अवॉर्ड जीतकर रिकॉर्ड बनाने वाले राज्य के नए हुक्मरानों को भी अब सिर्फ उत्पादन नहीं उत्पादक पर भी ध्यान देना होगा ताकि इन आंकड़ों में कमी आए।
राज्य सरकार का दावा है, कि राज्य ने पिछले कुछ सालों में कृषि में अभूतपूर्व प्रगति की है, तो फिर राज्य के किसान क़र्ज़ में क्यों हैं और वे ख़ुदकुशी क्यों कर रहे हैं?
अब ये कमलनाथ सरकार की जिम्मेदारी है कि वो किसानों के बैंक कर्ज माफ़ करने की वाह-वाही लूटने के बाद अब साहूकारों की गर्दन पर हाथ रखे। क्योंकि, जब तक किसानों को साहूकारों से मुक्ति नहीं मिलेगी, उनकी चिंताएं दूर नहीं होने वाली। शिवराज सरकार ने जो काम पूरा नहीं किया, उसे कमलनाथ सरकार पूरा करे!
लेखक सुबह सवेरे इंदौर के स्थानीय संपादक हैं।
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