राकेश दुबे।
अंतत: भारत सरकार ने “स्टार्ट अप” को मदद करने का एक नया तरीका खोज ही लिया। सरकर के उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) ने 'ऐंजल टैक्स' की गुत्थी सुलझाने के लिए कार्यबल गठित करने का फैसला किया है।
ये इस बात का संकेत है कि नीति निर्माता आयकर अधिनियम की धारा 56(2) से पैदा होने वाली दिक्कतों को लेकर सजग हैं।
हालांकि केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने इस धारा के तहत कर मांगों को लेकर कार्रवाई सुस्त करने का फैसला किया है इसके बावजूद 2000 से अधिक स्टार्टअप को पहले ही आयकर नोटिस मिल चुके हैं।
कुछ स्टार्टअप ने यह भी शिकायत की है कि कर विभाग ने उनकी कंपनी के खाते फ्रीज कर दिए हैं और ऐंजल टैक्स की मांग का पैसा खाते से निकाल लिया है।
हालांकि सीबीडीटी ने बाद में इससे इनकार किया लेकिन स्टार्टअप में डर बना हुआ है। हालांकि इस समस्या का स्थायी समाधान इस विवादास्पद धारा को खत्म करना है।
उद्योग से जुड़े लोगों, कर विशेषज्ञों और खुद डीपीआईआईटी ने इस धारा को रद्द करने की सिफारिश की है।
अभी तो सरकार की यह योजना कागजों में तो अच्छी नजर आ रही है कि वह स्टार्टअप की एक परिभाषा लेकर आएगी,लेकिन यह काम मुश्किल साबित हो सकता है।
इस धारा में समस्या कुछ शेयरधारकों के स्वामित्व वाली उन गैर-सूचीबद्ध कंपनियों पर कर की अवधारणा से होती है, जो 'उचित कीमत'से ऊपर शेयर जारी करती हैं।
शेयर की कीमत और'मूल्यांकन' के बीच अंतर पर आय के रूप में कर लगाया जाता है।
माना जाता है कि इस प्रावधान से धन शोधन रुकेगा और शेल कंपनियों में गलत तरीके से लगाए जा रहे पैसे की पहचान हो सकेगी।
दुर्भाग्य से अभी तक स्टार्टअप के मूल्यांकन का कोई पुख्ता और स्टीक नियम नहीं है। सेवा आधारित अर्थव्यवस्था में मूल्यांकन और भी मुश्किल है, जहां नए कारोबारों में पूंजीगत संपत्तियां कम होती हैं।
ऐंजल निवेशक स्टार्टअप में निवेश करते समय भविष्य की वृद्धि का अनुमान लगाने के लिए कला और विज्ञान दोनों का इस्तेमाल करते हैं।
उद्यमी और निवेशक ज्यादा जोखिम और ज्यादा प्रतिफल के इस समीकरण को स्वीकार करते हैं।
बार-बार कर नोटिसों के कारण पहले से ही अधिक जोखिम वाले क्षेत्र पर अनावश्यक दबाव और बढ़ जाता है। यह धारा इसलिए भी पक्षपाती है क्योंकि विदेश से पूंजी जुटाने वाली स्टार्टअप इस जांच के दायरे में नहीं आती हैं।
इस धारा के मूल्यांकन का आकलन करने वाले अधिकारियों की विवेकाधीन शक्तियों को देखते हुए भारत में धन जुटाने वाली स्टार्टअप को कर नोटिस मिलने की ज्यादा संभावना होती है।
अनुमान है कि भारतीय निवेशकों की मौजूदगी वाली ७० प्रतिशत से अधिक स्टार्टअप को आईटी नोटिस मिल चुके हैं। छूट की प्रक्रिया काफी जटिल है।
इसमें आवेदन और बहुत से दस्तावेज डीपीआईआईटी को जमा कराने होते हैं, जिसे सीबीडीटी को छूट की सिफारिश करने का विवेकाधिकार है।
इस धारा में संशोधन कर इससे स्टार्टअप को बाहर निकालना बहुत मुश्किल काम है।
कागजों में नई पंजीकृत शेल कंपनी और असल स्टार्टअप में तब तक अंतर नहीं किया जा सकता, जब तक कि स्टार्टअप राजस्व सृजित करना शुरू नहीं कर देती है।
देश में धन शोधन की पहचान के लिए आजमाए हुए तरीके मौजूद हैं।
सरकार का दावा है कि वह पिछले चार वर्षों में लाखों शेल कंपनियों का पंजीकरण रद्द कर चुकी है।
धन शोधन और कर वंचना ऐसी नुकसानदेह गतिविधियां हैं, जिन्हें खत्म किया जाना चाहिए, साथ ही कारोबारी गतिविधियों में तेजी और रोजगार सृजन के लिए स्टार्टअप तंत्र बहुत जरूरी है।
अगर कर प्रताड़ना के इस रूप से स्टार्टअप को बाहर नहीं किया जा सकता तो ऐंजल टैक्स की धारा को खत्म किया जाना चाहिए।
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