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3 साल में 93 बाघ लापरवाही की भेंट चढ़े, पूर्व आईएफएस ने मुख्य सचिव को लिखा पत्र

मध्यप्रदेश            Nov 11, 2024


मल्हार मीडिया भोपाल।  

मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ में 3 साल में देश में सर्वाधिक 93 बाघ लापरवाही की भेंट चढ़ गए। पिछले दिनों हुई 12 हाथियों की मौत के बाद बाघों के मरने का मामला भी गरमाने लगा है। पूर्व आईएफएस अधिकारी आजाद सिंह डबास ने मुख्य सचिव अनुराग जैन को पत्र लिखकर पूछा है कि चौथी टास्क फोर्स कौन गठित करेगा।

श्री डबास ने अपने पत्र में लिखा है कि बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में 12 हाथियों की मौत के मामलें में पार्क प्रबंधन की लापरवाही उजागर होने लगी है। प्रांरभिक जांच में पता चला है कि जिस दिन (दिनांक 28.10.2024) ‘‘भोपाल में कुशाभाऊ ठाकरे कन्वेंशन सेंटर में ‘‘जलवायु परिवर्तन के लिये वैश्विक प्रयास - भारत की प्रतिबद्धता में राज्य का योगदान‘‘ विषय पर पहली राज्य स्तरीय प्री-कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (सीओपी) परामर्श कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए मुख्यमंत्री . डॉ.मोहन यादव सियासतदानों को नसीहत देते हुए कह रहे थे कि हम राजनितिज्ञों के लिए दो बातें बहुत जरूरी हैं। पहली प्राकृतिक पर्यावरण की चिंता करते हुए शासन-प्रशासन से जुड़े फैसले लेना और दूसरी राजनीति के पर्यावरण को स्वच्छ बनाये रखना। सीएम ने तत्समय अपने भाषण में नर्मदा समेत सभी नदियों के संरक्षण हेतु खनन रोकने और नदियों को स्वच्छ करने के प्रयास पर भी जोर दिया। यह परामर्श कार्यशाला अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन एवं नीति विश्लेषण संस्थान, म.प्र विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद, नर्मदा समग्र, पब्लिक एडवोकेसी इनिशिएटिव फॉर राईट्स एवं वैल्यूज इन इंडिया और कम्यूनिटी इकोनोमिक्स एण्ड डेवलपमेंट कंसल्टेंट्स सोसाइटी की साझेदारी में आयोजित की गई।

इस कार्यशाला में देशभर से आए 200 से ज्यादा क्लाईमेट लीडर्स ने एक-दूसरे से अपने अनुभव साझा किये,‘‘ उसी 28 अक्टूबर की रात्रि में बांधवगढ़ टाईगर रिजर्व की खितौली और पतौर रेंज में रात भर हाथी दर्द से तड़पने के कारण जोर-जोर से चिंघाड़ते रहे। सुबह होने पर ग्रामीणों ने वन विभाग के अधिकारियों को इसकी सूचना भी दी लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नही की गई। वन अमला दोपहर को मौके पर पहुंचा लेकिन टाईगर रिर्जव का वाइल्ड लाइफ वेटनरी स्टाॅफ के बिना ही और मात्र तमाषबीन बने रहे।

दिनांक 30 अक्टूबरको भोपाल से प्रकाषित अखबारों में यह खबर प्रमुखता से छपी कि बांधवगढ़ टाईगर रिर्जव में 4 जंगली हाथियों की मौत हो गई है और 5 हाथियों की हालत गंभीर है। प्रधान मुख्य वन संरक्षक, वन्यप्राणी के अनुसार दिनांक 29.10.2024 को गष्त के दौरान रिर्जव के कर्मचारियों को खितौली और पतौर कोर रेंज की सलखनिया बीट में 4 जंगली हाथी मृत मिले और 5 अस्वस्थ्य हालत में पाये गये।

समाचार में डिप्टी डायरेक्टर पी.के वर्मा के हवाले से लेख है कि म.प्र में जंगली हाथी कई दशकों पहले खत्म हो चुके हैं। साल 2019 में पहली बार ओडिशा से जंगली हाथी छत्तीसगढ़ के रास्ते म.प्र में दाखिल होकर बांधवगढ़ में रूक गये। यही पर इनका कुनबा बढ़ा और आज यहां 70 से 80 हाथी हैं।

पत्र लिखे जाने तक अभी 10 हाथियों के मौत की खबर आ चुकी थी। इनमें 9 मादाएं थीं। इस बीच वाइल्ड लाइफ क्राइम कन्ट्रोल ब्यूरो (डब्ल्यूसीसीबी) दिल्ली ने भी एसआईटी गठित कर दी है। नेशनल टाईगर कन्र्जवेषन अॅथारिटी (एनटीसीए) के सेन्ट्रल जोन के एआईजी नंदकिशोर काले भी टीम के साथ बांधवगढ़ पहुंच गये हैं।

म.प्र के मुख्य वन्य जीव अभिरक्षक श्री अम्बाडे ने भी राज्य शासन के निर्देश पर 5 सदस्यीय जांच कमेटी (एसआईटी) गठित कर दी है जिसका अध्यक्ष एपीसीसीएफ एल. कृष्णमूर्ति को बनाया गया है। श्री कृष्णमूर्ति के मुताबिक शिकार, जहर समेत कई बिन्दुओं पर जांच जारी है।

प्रांरभिक साक्ष्यों के आधार पर मौत का कारण कोदो की विषाक्तता को माना जा रहा है। पोस्टमार्टम के दौरान सभी हाथियों के पेट में काफी मात्रा में कोदों मिला है। देश में पूर्व में भी हाथियों के कोदों खाने से बीमार पड़ने एवं मौत की जानकारी पता चली है। ग्रामीणों ने कोदो खाने से पूर्व में कुछ गाय एवं भैसों की मौत होने की जानकारी भी दी है।

इस मामले में रिसोर्ट संचालकों पर भी संदेह जताया जा रहा है। अभी स्पष्ट तौर पर कोई सबूत या कोई ऐसा साक्ष्य नही मिला है लेकिन किसी भी संभावना से इनकार नही किया जा सकता है।

एसआईटी प्रमुख श्री कृष्णमूर्ति के मुताबिक हाथियों के विसरा सैंपल इंडियन वेटरनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट बरेली, स्टेट फोरेंसिक लैब सागर एवं स्कूल आॅफ वाइल्ड लाइफ फोरेंसिक एण्ड हेल्थ जबलपुर भेजे गये हैं।

तीनों संस्थानों से हिस्टोपैथोलॉजिकल, टॉक्सिकोलाजिकल साइंटिफिक रिपोर्ट मिलने के बाद ही पता चल सकेगा कि हाथियों की मौत किस जहर से हुई है ?

यहां यह उल्लेखनीय है कि पूर्व में श्री चौधरी इतनी गंभीर वारदात (10 हाथियों की मौत) होने के बावजूद फील्ड डायरेक्टर श्री गौरव चैधरी ने अवकाष से वापस लौटना उचित नही समझा।

गौरतलब है कि श्री चौधरी दिनांक 09.09.2024 को बांधवगढ़ में उपस्थित होने उपरांत दिनांक 28.10.2024 से 08.11.2024 (26 एवं 27.10.2024 प्रीफिक्स, 09 एवं 10.11.2024 सफिक्स सहित) तक की अर्जित अवकाष का आवेदन देकर मुख्यालय से बाहर हैं। संभवतः श्री चौधरी का अवकाश आज दिनांक तक स्वीकृत नही हुआ है।

यहां यह भी गौरतलब है कि श्री चौधरी उत्तर शहडोल वन मंडल का प्रभार छोड़ना ही नही चाहते थे। ये बांधवगढ़ टाइगर रिर्जव के साथ-साथ उत्तर वन मंडल शहडोल का प्रभार भी अपने पास  रखना चाहते थे। मुझे यह भी जानकारी है कि वन मुख्यालय के 2 प्रधान मुख्य वन संरक्षक स्तर के अधिकारी भी अपने निजी स्वाथों के चलते इन्हें उत्तर वन मंडल शहडोल के प्रभार में बनाये रखने के हक में थे और इस दिषा में काम कर रहे थे ताकि उनके हितों की पूर्ति होती रहे।

इनमें एक प्रधान मुख्य वन संरक्षक (हॉफ) के अंतर्गत कार्यरत हैं तो दूसरे वन विभाग के एक उपक्रम के मुखिया हैं। केन्द्र के दबाव एवं उच्च स्तरीय दखल के बाद इन्होनें अनमने मन से उत्तर शहडोल वन मंडल का पदभार छोड़ा और बांधवगढ़ प्रभार ग्रहण किया। अवकाष पर जाना भी इनकी स्ट्रैटजी का हिस्सा है। यहां यह भी विषेषतौर पर उल्लेखनीय है कि श्री चौधरी हाथियों की मौत की खबर सुनकर न सिर्फ अपने कार्यस्थान पर ही नही लौटे अपितु अपना शासकीय मोबाइल भी कई दिन तक बंद रखा।

श्री डबास ने पत्र में उल्लेख किया है कि मैंने स्वंय इनसे संपर्क करने की कोशिश की लेकिन मोबाइल बंद होने की वजह से संपर्क नही हो सका। शासन द्वारा ऐसे गैरजिम्मेदाराना रवैये के फलस्वरूप इन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित करना स्वागत योग्य कदम है। मैं यहां यह भी उल्लेख करना चाहूंगा कि ऐसे गैर जिम्मेदाराना और भ्रष्ट अधिकारी को मात्र निलंबित करना ही पर्याप्त नही है। शासन को चाहिए कि इनके उत्तर शहडोल वन मंडल के पूरे 3 वर्ष के कार्यकाल में हुये कार्यो की विशेष दल बनाकर जांच करायें ताकि इनके समस्त काले कारनामे सामने आ सके और इनको विधिवत चार्जशीट जारी की जा सके।

ध्यान रहे कि श्री चौधरी ने लघु वनोपज संघ के वरिष्ठतम अधिकारियों (प्रबंध संचालको) से सीधे साठ-गांठ कर करोड़ो रूपये के अधोसंरचना विकास के कार्य नियम विरूद्ध स्वीकृत कराकर उस क्षेत्र के तेंदुपत्ता माफिया सुनील मिश्रा के साथ मिलकर करोड़ो रूपयो का भ्रष्टाचार किया गया है। इसके अतिरिक्त विकास शाखा से प्राप्त राषि के कार्यो की भी जांच दल से जांच करावें। मैं यहां यह भी उल्लेख करना चाहूंगा कि पूर्व में जहां-जहां श्री चै चौधरी पदस्थ रहे हैं, इन्होने हर जगह भारी भ्रष्टाचार किया है अतः शासन को चाहिए कि इनके कार्यकाल की विधिवत जांच कराकर ही आरोप पत्र जारी करें। मुझे शक ही नही अपितु पूर्ण विश्वास है कि अगर आरोप पत्र जारी करने में शासन ने अगर जरा भी कोताही/लापरवाही बरती तो इनके विरूद्ध सही आरोप पत्र जारी नही हो सकता।

श्री डबास ने लिखा यहां यह भी उल्लेखनीय है कि चूंकि बांधवगढ़ आने के पूर्व श्री चौधरी शहडोल वृत्त में कार्यरत थे अतः प्रचलित प्रथा के अनुसार शासन वन संरक्षक शहडोल वृत्त से आरोप पत्र मंगायेगा जो उचित नही होगा। अभी हाल ही में शासन द्वारा शहडोल वृत्त में श्री अजय कुमार पाण्डे नामक अधिकारी की पोस्टिंग की है, जो मात्र 08 माह बाद सेवानिवृत्त होने वाले है।

पूर्व आईएफएस लिखते हैं मैं यहां श्री पाण्डे की निष्ठा पर सवाल नहीं उठाना चाहता लेकिन यह भलि-भांति समझा जा सकता है कि जो अधिकारी मात्र 08 माह में सेवानिवृत्त होने वाला हो, वह किसी भी समझौते के लिये तैयार हो सकता है। जिस तरह से श्री लखनलाल उइके, मुख्य वन संरक्षक, शहडोल को सेवानिवृत्ति के 08 माह पूर्व शहडोल वृत्त के प्रभार से हटाकर श्री पाण्डे, जो आगामी 08 माह में ही सेवानिवृत्त होने वाले हैं, को पदस्थ किया गया है, वह वन विभाग में होने वाली समस्त पदस्थापनाओं पर ही प्रश्न चिन्ह लगाता है ? मैं तो यहां तक कहना चाहूंगा कि आपकी अध्यक्षता में आईएफएस अधिकारियों के लिए बने स्थानांतरण बोर्ड की कार्यप्रणाली संदेह के घेरे में है।

ऐसा होने से ही वन विभाग में आईएफएस अधिकारियों की पोस्टिंग/तबादले का मसला आज एक उद्योग का रूप ले चुका है जिसमें विभाग के वरिष्ठतम अधिकारी एवं विगत 04 मंत्री सर्वश्री गौरीशंकर शेजवार, उमंग सिंघार, विजय शाह एंव नागर सिंह चैहान की भूमिका अत्यंत संदिग्ध रही है और स्थानातरंणो की पूरी प्रक्रिया ही एक मजाक बनकर रह गई है।

सही जगह भ्रष्ट अधिकारियों को पदस्थ करने का ही परिणाम है कि प्रदेश में वनों का उत्पादन लगातार गिर रहा है और जंगल दिनो-दिन बरबादी की कगार पर पहुंच रहे हैं। उल्लेखनीय है कि सदस्य, भारतीय वन सेवा संघ की हैसियत से मैनें अपने पत्र क्रमांक/क्यू-1 दिनांक 25.05.2009 से तत्कालीन अध्यक्ष, भारतीय वन सेवा संघ, म.प्र को एक पत्र लिखा था जिसमें तत्समय वनों की दुदर्षा पर उनका ध्यान आकर्षित किया गया था। मैं उस समय मुख्य वन संरक्षक प्रशासन-2 के पद पर कार्यरत था। मैनें अपने पत्र में लेख किया था कि प्रदेष के 50 प्रतिशत से ज्यादा वनक्षेत्र बिगड़े वनों के श्रेणी में आ चुके हैं। वर्ष 1967-68 में म.प्र में जहां 62.49 लाख घनमीटर लकड़ी (टिम्बर एवं जलाऊ) का उत्पादन होता था, वह वर्ष 2008-09 में घटकर 3.60 लाख घनमीटर रह गया है। प्रदेश के वनों से वर्ष 1978-79 में 4 लाख Notional Tonnes ¼Commercial+ Industrial½ बांस का उत्पादन हुआ था, वह वर्ष 2008-09 में घटकर 1 लाख Notional Tonnes ¼Commercial+ Industrial½ से भी कम रह गया है। Source : Four Decades of Forestry (1956-1995) Published by CCF Working Plan. M.P. ( December 1995). तत्समय प्रदेष के वनों मे प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहने वाली अनेक प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर थी, जिस पर भी मैनें उनका ध्यान आकर्षित किया था। मैनें अपने पत्र में वनों की इस दर्दनाक हालत के लिये 14 कारण दर्षाये थे। इस पत्र का इनाम मुझे तत्कालीन प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख श्री गंगोपाध्याय द्वारा अनुसंधान एवं विस्तार वृत्त झाबुआ के उस पद पर स्थानांतरित करके दिया गया, जो बंद होने वाला था। हालांकि ज्यादातर अधिकारी अभी भी अपने दायित्वों का भली-भांति निवर्हन कर रहे हैं लेकिन कुछ आईएफएस अधिकारियों की भूमिका अत्यंत संदिग्ध प्रतीत हो रही है। ऐसा होने से वनों की हालत लगातार बिगड़ रही है।

लगभग 30 वर्ष पूर्व जहां मध्यप्रदेश का 40 प्रतिषत वनक्षेत्र बिगड़े वनों के श्रेणी में था, आज वह लगभग 60 प्रतिशत हो गया है। विगत 5 वर्ष से टिम्बर उत्पादन मात्र 2 लाख घनमीटर के आस-पास रह गया है। (इसमें 20 से 25 हजार घन मीटर वह लकड़ी है जो मालिक मकबूजा, एफसीए प्रकरणों, पीओआर Cases और ग्राम विस्थापन से आती है)। विगत 30 वर्षो में बांस उत्पादन गिरकर मात्र एक चौथाई रह गया है।

आज प्रदेश में बांस का उत्पादन लगभग 30 हजार Notional Tonnes ¼Commercial+ Industrial½ ही रह गया है। एक समय प्रदेश के बांस बाहुल्य जिलों जैसे- बालाघाट, छिंदवाड़ा, सिवनी, मण्डला, डिडोंरी, बैतूल इत्यादि जिलों में बांस प्रचुर मात्रा में होता था। अकेले बालाघाट जिले में ही लगभग 60 हजार Notional Tonnes ¼Commercial+ Industrial½ बांस का उत्पादन होता था। बैतूल जिले में पूर्व में इतना बांस का उत्पादन होता था कि वह जिले की पूर्ति तो करता ही था, साथ ही कई अन्य जिलों को भी भेजा जाता था।    

  प्रदेश में 30 वर्ष पूर्व जहां 37 उत्पादन वनमण्डल होते थे, वे आज सिमट कर मात्र 4-5 रह गये हैं। तेंदुपत्ता केा छोड़कर अन्य लघुवनोपज लगातार विलुप्त होती जा रही हैं और लघुवनोपज संघ मात्र तेंदुपत्ता में अर्जित राशि के बदौलत अपनी पीठ थप-थपा रहा है। 7-8 वर्ष पूर्व एएमडी विस्तार की हैसियत से मेरे द्वारा सुझाये गये किसी भी सुझाव पर आज तक कोई गौर नही किया गया जिससे हालत बद से बदतर होती जा रही है। प्रदेष के वनों में लेन्टाना ही लेन्टाना का प्रकोप दिखाई दे रहा है और विभाग हाथ पर हाथ धरे बैठा है। प्रदेष के वनों में दबकर अवैध उत्खनन हो रहा है। ट्राईबल राईट्स एक्ट के तहत विगत 20 वर्षो से लगातार नियमों के विपरीत वन अधिकार पत्र बांटे जा रहे हैं। जलाऊ लकड़ी की वैकल्पिक व्यवस्था के अभाव में जंगल बरबाद हो रहे हैं। अवैध कटाई पर कोई प्रभावी नियत्रंण नही हो रहा है। इसी वर्ष पुनः टाईगर स्टेट बनने पर म.प्र का वन विभाग अपनी उपलब्धी पर फूला नही समा रहा है। गौरतलब है कि विगत सेन्सस में प्रदेष में 785 टाईगर बताये गये हैं ।

श्री आजाद ने लिखा मैं वन्यप्राणी विशेषज्ञ होने का दावा नही कर रहा हं, लेकिन यह कटु सत्य है कि अगर 20 वर्ग किलोमीटर के दायरे को एक टाईगर की टेरीटरी माना जावे तो एक लाख वर्ग किलोमीटर के वनक्षेत्र में 785 के बजाय लगभग 5000 टाईगर होने चाहिए। आज ज्यादातर वन्यप्राणी नेशनल पार्क, टाईगर रिजर्व एवं वन्य प्राणी अभ्यारण्यों तक ही सिमटे हुए हैं। इनके बाहर वन्य प्राणियों की उपस्थिति नगण्य है, जो चिंता का विषय है।

मेरी जानकारी में यह तथ्य भी आया है कि वर्ष 2021 में कर्नाटक के प्रो. सुकुमार, हाथी विषेषज्ञ की अध्यक्षता में एक समीति का गठन किया गया था जिसमें म.प्र के वन्य प्राणी विषेषज्ञ श्री अभिलाश खांडेकर (जो 3 बार म.प्र राज्य वन्य प्राणी बोर्ड के अषासकीय सदस्य रह चुके हैं), वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के विवेक मेनन एवं अन्य जानकार शामिल थे। इस समीति ने अपनी रिपोर्ट तत्कालीन प्रधान मुख्य वन संरक्षक, वन्य प्राणी श्री आलोक कुमार को सौंपी थी।

श्री आलोक कुमार ने इस रिपोर्ट के आधार पर मैदानी अधिकारियों को हाथी प्रबंधन के सबंध में एक विस्तृत गाइडलाइन भी भेजी थी। इस रिपोर्ट की प्रति शासन को भी भेजी थी। यहां यह भी लेख है कि विभाग द्वारा टाइगर प्रोजेक्ट एवं ऐलीफेंट प्रोजेक्ट को मर्ज तो कर दिया गया है लेकिन ऐलीफेंट के नाम पर राषि उपलब्ध नही हो पा रही है। बिमार पड़ने पर आवश्यक हाथी ट्रांसपोर्टिंग वाहन, के्रन व एक्सकेवेटर इत्यादि की भी जरूरत है। हाथियों के मूवमेंट से पहले ही ग्रामीणों को समय पर सूचना देने के लिए पेट्रोलिंग वाहन और अलार्म सिस्टम की भी जरूरत है।

हाथियों की मौत की सच्चाई जानने हेतु केन्द्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा भी वाइल्ड लाइफ क्राइम कन्ट्रोल ब्यूरो को जांच सौंपी गई है जिसके 4 सदस्यों की टीम ने जांच शुरू भी कर दी है। मुख्यमंत्री म.प्र के निर्देष पर शासन स्तर पर हाथी टास्क फोर्स का गठन किया जा रहा है। हाथियों को अन्य वन्य प्राणियों के साथ किस तरह रखा जाये, इसकी योजना बनाई जा रही है। इस योजना में कर्नाटक, केरल और असम जैसे राज्यों की बेस्ट प्रैक्टिसेस को शामिल किया जावेगा। इन राज्यों में म.प्र के वन अधिकारियों को भेजा जावेगा ताकि सहअस्तित्व की भावना के आधार पर हाथियों के साथ बफर एरिया, कोर एरिया में बाकी का जन जीवन प्रभावित न हो इसका अध्ययन किया जावेगा। टाइगर रिर्जव के बफर एरिया के बाहर के मैदानी इलाकों में जहां फसल उगाई जाती है, उनकी सोलर फेन्सिग से सुरक्षा सुनिष्चित की जावेगी। वन्य प्राणी शाखा द्वारा हाथियों के निगरानी के लिये 6 विषेष दल गठित किये गये है जो स्वस्थ्य हाथियों की माॅनिटरिंग कर रहे हैं। हाथियों के मौत के मामलें में पहली रिपोर्ट 7 दिन बाद आई है जिसमें हाथियों के विसरा में जहरीला एसिड मिला है। हाथियों की मौत इसी से हुई है, यह तय नही है। अभी और भी जांचे आना शेष हैं। उम्मीद है कि आगामी 1-2 दिन में शेष जांचे भी आ जावेगी जिससे हाथियों की मौत का वास्तविक कारण सामने आ सकेगा। हाथियों की मौत के मामलें में मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस भी कूद पड़ी है। कंाग्रेस पार्टी ने पूरे मामले में सीबीआई के जांच की मांग की है। हालांकि आगामी 1-2 दिवस में समस्त जांच रिपोर्ट प्राप्त हो जावेगी और मैदानी जांच के तथ्य भी सामने आ जावेगें लेकिन यह तय है कि जब तक श्री गौरव चैधरी जैसे अकर्मण्य, नकारा एवं भ्रष्ट अधिकारी वन विभाग में मौजूद रहेगें तब तक कितनी ही टास्क फोर्स गठित कर दी जावें, इस तरह के हादसे होते रहेगें। आपसे अनुरोध है कि पत्र में दिये गये समस्त तथ्यों का अवलोकन कर आवष्यक कार्रवाई करने का कष्ट करें ताकि भविष्य में इस तरह की दर्दनाक घटनाएं घटित न हो और प्रदेष के वन एवं वन्य प्राणी सुरक्षित रह सकें। 

उन्होंने लिखा मैं यहां इस तथ्य की ओर भी आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं कि प्रधान मुख्य वन संरक्षक, वन्य प्राणी की पदस्थिति में भी कोताही बरती जा रही है। वर्तमान प्रधान मुख्य वन संरक्षक, वन्यप्राणी विजय कुमार अम्बाडे हैं। श्री अम्बाडे 6-7 माह पूर्व भारत सरकार से लगभग 11 वर्ष की प्रतिनियुक्ति उपरांत वापिस म.प्र में आ चुके थे। श्री अम्बाडे एक बहुत ही निपुण अधिकारी रहे हंै। इनको वन्य प्राणी प्रबंधन का लंबा अनुभव है। ये अपने कैरियर के शुरूआती दौर में डायरेक्टर माधव नेषनल पार्क षिवपुरी, डायरेक्टर इन्द्रावती टाइगर रिर्जव, डायरेक्टर पन्ना टाइगर रिर्जव,  डायरेक्टर सतपुड़ा टाइगर रिर्जव के पद पर पदस्थ रहे हैं। श्री अम्बाडे वन्य प्राणी मुख्यालय में भी साढे़ 3 वर्ष तक पदस्थ रहे हैं। श्री अम्बाडे ने कान्हा-पेंच कोरिडोर की कार्य आयोजना बनाई है। श्री अम्बाडे ने एनवीडीए में रहकर मांधाता, नर्मदा एवं ओकारेष्वर वन्य पाणी अभियारण्यो की एक्षन प्लान भी बनाई है। मेरी समझ में यह नही आता कि वन्य प्राणी क्षेत्र के इतने अनुभवी, कर्मठ एवं ईमानदार अधिकारी के रहते प्रतिनियुक्ति से लौटने उपरांत इन्हें 6 माह का इंतजार क्यों कराया गया ? इसी अवधि में डॉ. अतुल कुमार श्रीवास्तव, जो पूर्व में ही प्रधान मुख्य वन संरक्षक, कार्य आयोजना के पद पर पदस्थ थे, उन्हें वहां से हटाकर वन्य प्राणी में मात्र 03 माह के लिये क्यों पदस्थ किया गया ? क्या इसमें किसी साजिष की बू नही आती है ? इसी प्रकार इसी अवधि के दौरान श्री शुभरंजन सेन, अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक को 2 बार वन्य प्राणी शाखा में सीडब्ल्यूएलडब्ल्यू का प्रभार किन परिस्थितियों में दिया गया ? ये सब विचारणीय प्रष्न हैं। यहां यह भी विचारणीय है कि बांधवगढ़ टाइगर रिर्जव जैसे संवेदनषील पार्क को लगभग 01 साल तक डबल प्रभार (शहडोल वृत्त एवं टाइगर रिर्जव) में क्यों रखा गया ? डबल प्रभार का अधिकारी दोनों पदो से न्याय कैसे कर सकता है ? इसके पूर्व में पदस्थ 2 अधिकारियों को 01-01 वर्ष में क्यों बदला गया ? यह सब दर्षाता है कि वन विभाग में संवेदनषील पदो पर होने वाली नियुक्ति कितनी पारदर्षी है ?

मैं यहां आपसे यह भी उम्मीद करूंगा कि विगत 10 वर्षो में विभाग में हुये स्थानांतरणो के घपले की भी आप जांच करायेंगे ताकि समस्त दोषी चाहे वे कितने भी बडे क्यो न हो, उन्हें अपने किये की सजा मिल सके। मैं यहां यह भी लेख करने से नही हिचकिचाउंगा कि अगर आपने विषेष दल गठित कर विगत 10 वर्षो से वन विभाग के स्थानातरंणो में हुये सैकड़ों करोड़ के घोटाले की जांच नही कराई तो मैं यह मानने के लिये विवष होउंगा कि आप वन विभाग में हो रहे भ्रष्टाचार को प्रश्रय (संरक्षण) देना चाहते हैं। यहां यह देखना भी दिलचस्प होगा कि हाथियों की मौत की जांच के लिये तो 3 स्तरीय टास्क फोर्स बना दी गई है लेकिन वन विभाग के स्थानांतरणों मे हो रहे भ्रष्टाचार की जांच के लिये चैथी टास्क फोर्स कौन और कब गठित करेगा ? आषा है कि मेरे पत्र की भावना को आप समझेंगे एवं त्वरित आवष्यक कार्रवाई कर मुझे 01 माह के अंतर्गत अवगत भी करायेगें अन्यथा मैं अग्रिम आवष्यक कार्रवाई (जिसमें लोकायुक्त/ ईओडब्ल्यू/ न्यायालीन कार्रवाई) करने हेतु स्वतंत्र होऊंगा ।

 


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