मल्हार मीडिया ब्यूरो।
नोटबंदी के दौरान अगर आपने किसी को पैसे उधार दिए हैं और अगर वह पैसे लेने अगर आप कोर्ट तक जाते हैं तो आप निराश हो सकते हैं।
क्योंकि मध्यप्रदेश की खंडवा जिला अदालत ने ऐसे ही एक मामले में फैसला सुनाया है कि उस समय दिए गए उधार पैसे कागज के टुकड़े थे। इसलिए उन्हें वापस करने की जरूरत नहीं।
अदालम ने कहा कि देनदार को पता था कि नोटबंदी में रुपये केवल बैंक में जमा करना है।
उसने जानबूझकर लेनदार को रुपये उधार दिए।
उन रुपयों की बाजार में कोई कीमत नहीं थी वे केवल कागज के टुकड़े थे।
प्राप्त जानकारी के अनुसार संतोष नाम के एक शख्स से रामनगर में रहने वाले पवन से अपना कर्ज चुकाने के लिए नवंबर 2016 में 2.50 लाख रुपये नगद उधार लिए थे।
सभी नोट 500 व 1000 रुपये के थे। इसके बाद अपना कर्ज चुकाने के लिए पवन ने इतनी ही राशि का एक चेक संतोष को दिया था।
दरअसल नोटबंदी के दौरान उधार दिए गए 2.50 लाख रुपये के एवज में लेनदार द्वारा दिया गया चेक बाउंस हो गया।
देनदार ने न्यायालय में चेक बाउंस का केस लगा दिया।
6 साल तक चली सुनवाई के बाद न्यायालय ने केस में फैसला सुनाया है।
कोर्ट ने कहा देनदार को पता था कि नोटबंदी में रुपये केवल बैंक में जमा करना है।
उसने जानबूझकर लेनदार को रुपये उधार दिए। उन रुपयों की बाजार में कोई कीमत नहीं थी, वे केवल कागज के टुकड़े थे।
उधार देने वाले ने आरबीआई व भारत सरकार के जारी राजपत्र के निर्देशों का उल्लंघन किया है, इसलिए उधारी चुकाने वाला दोषी नहीं है। उसे दोषमुक्त किया जाता है।
यह चेक सिविल लाइन स्थित पंजाब बैंक में 16 जनवरी 2017 को भुगतान के लिए प्रस्तुत किया गया।
6 अप्रैल 2017 को वह चेक खाते में राशि नहीं होने पर बाउंस हो गया। संतोष ने वकील के माध्यम से केस न्यायालय में प्रस्तुत किया।
मामले में जब न्यायालय ने संतोष से जवाब-तलब किए तो उसने स्वीकार किया कि उसने नोट बंदी के दौरान रुपये उधार दिए थे।
500 व 1000 के नोटों की संख्या कितनी थी उसे याद नहीं।
भारत सरकार के राजपत्र एवं रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के निर्देश के अनुसार जब पूरे भारत में 8 नवंबर 2016 के बाद 500 एवं 1000 के नोटों का केवल बैंक के माध्यम से ही व्यवहार करने के निर्देश गए थे, तो लेनदार ने रुपये उधार क्यों दिए।
उसे उन रुपयों को बैंक में जाकर जमा करवाना था। मामले में 9 जून 2022 को न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी ने फैसला सुनाया।
फैसले में न्यायालय ने टिप्पणी की कि संतोष ने पवन को जो राशि उधार दी थी उस मुद्रा का बाजार में कोई मूल्य नहीं था।
वह मुद्रा मात्र एक उपयोग विहीन एवं मूल्य रहित साधारण कागज का एक टुकड़ा है।
अतः ऐसी मुद्रा के आधार पर पवन को सजा ना देकर उसे दोषमुक्त किया जाता है।
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