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अभिव्यक्ति की आजादी रचनात्मकता के लिए हो, विनाश के लिए नहीं

मीडिया            Mar 16, 2016


मल्हार मीडिया। विज्ञान एवं पत्रकारिता के मूल तत्व एक ही हैं। पत्रकारिता में पांच डब्लयू और एच महत्वपूर्ण है। विज्ञान में भी यही मूल तत्व है। दोनों में मुख्य अन्तर यही है कि पत्रकारिता की शुरूआत कौन (who) से हाती है। विज्ञान में मूल तत्व क्या है। दोनों का आधार खोज है। विज्ञान में महत्वपूर्ण होता है कि क्या (what) हो रहा है। पत्रकारिता में आवश्यक होता है कि कौन क्या कह रहा है। यह विचार अमेरिका के मैसासुचेटस विश्वविद्यालय वैज्ञानिक और प्रोफेसर बलराम सिंह ने व्यक्त किये । माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में मीडिया का बदलता परिदृष्य और राजनीतिक सामाजिक परिवर्तन विषय पर आयोजित सेमिनार को संबोधित करते हुए प्रो. सिंह ने कहा कि भारत की जडें गहरी हैं और इसका प्रभाव दुनिया भर में है। इसके दर्शन का प्रभाव कई देशों के संविधान में भी देखने को मिलता है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र रहे प्रोफेसर सिंह ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सृजनात्मकता को बढ़ाने के लिए होना चाहिए न कि विनाश के लिए। युवाओं को सही राह दिखाना आवश्यक है। ऐसे समय में वरिष्ठ व्यक्तियों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। नारेबाजी से समाज और देश में बदलाव नहीं आते हैं। देश कुछ करने से सुधरता है। एक अच्छे संस्थान में पढने का अवसर मिला है, तब हमें वहाँ से अपने ज्ञान को समृद्ध करके समाज को वापस सौंपना होता है। उन्होंने कहा कि देशभक्ति सब में होनी ही चाहिए। मीडिया, राजनीति और विज्ञान के विषय में प्रो. बलराम ने कहा कि तीनों में कौन, कब, कहाँ, कैसे, किसने और क्यों जैसे प्रश्नों की समानता है। लोकतंत्र के चार स्तम्भ हैं। मीडिया भी एक प्रमुख स्तम्भ है। लेकिन, क्या चारों स्तम्भ ठीक प्रकार से काम कर रहे हैं यह विचार किया जाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि पत्रकारों को कम्युनिकेशन्स करने के पहले उसे समझना आवश्यक है। प्राचीन व्यवस्था का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि आज वैसा आचरण देखने को नहीं मिलता जो पहले होता था। मीडिया के सामने आज विश्वशनीयता का संकट है। उन्होंने भारतीय पाश्चात्य मीडिया को तुलनात्मक रूप से भी बताया। उन्होंने कहा कि यहां साइंस कांग्रेस में भगवान शिव को पर्यावरणविद् बताये जाने को लेकर हंगामा खड़ा कर दिया और यह कहा गया कि विज्ञान में धर्म को फंसाया जा रहा है। हम यह क्यों नहीं कहते कि धर्म को विज्ञान के आधार पर समझाया जा रहा है। 1965 मे वैज्ञानिक जेम्स जोन लोक ने विचार दिया कि धरती एक लिविगं प्राणी है यदि हम इसे नुकसान पहुंचायेगे तो वह भी हमें नुकसान पहुंचायेगी। उन्होंने कहा कि अमेरिका आज 35 फीसदी प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करता है। हम भी यदि अमेरिका बन जायेगे तो क्या होगा। बाकी देश क्या करेंगे और पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ेगा इस पर भी विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता विश्वविद्यालय द्वारा शोध में भारतीय सन्दर्भों का अध्ययन किये जाने के निर्णय सराहनीय है और यह विश्व के अन्य लोगों के लिए उपयोगी होगा क्योंकि आज हम भारतीय संदर्भों को देखेगे तो लोग भी अन्य देशों के लोग अनुसरण करेंगे। इससे कहीं कहीं भारत के ज्ञान का प्रकाश फैलेगा। सेमिनार की शुरूआत में कुलाधिसचिव लाजपत आहूजा ने स्वागत भाषण दिया। उन्होंने कहा कि प्रोफेसर सिंह भारतीय ज्ञान परंपरा के राजदूत के रूप में कार्य कर रहे है। रसायन शास्त्र के वैज्ञानिक होने के बाद भी उन्होंने मीडिया और राजनीति विज्ञान जैसे विषयों पर भी कार्य किया है। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अविनाश वाजपेयी ने किया।


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