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Thu, 29 May 2025

आप तय करें कौन संत,कौन भगवान,क्या है आस्था? मीडिया नहीं।

मीडिया            Aug 11, 2015


ld-sharma एल डी शर्मा मीडिया की अंधी दौड़ धर्म क्या है ? संत कौन है ? भगवान कौन है ?आस्था क्या है ?? पिछले एक साल से ऐसे कई मामले सामने आये जिनके मीडिया ने खूब मज़े लिए ,ऐसी कई स्टोरीज का सहारा लेकर नंबरों की दौड़ में दिखे और कई तो जो नंबरों की दौड़ में नहीं थे वो तो ऐसे मुद्दे उठा कर नंबरों की दौड़ में शामिल भी हो गए ! आज कल राधा माँ को लेकर भी खासे उत्त्साही दिखाई दे रहे हैं , सभी ये चाहते हैं कि अपने नंबर बढाने का अच्छा मौका मिला है ! ऐसा नही है कि मैं कोई राधा माँ का भक्त हूँ ,मैं आप को बता दूं कि मैंने भी इस देश के करोडों लोगों की तरह मीडिया में उनका नाम आने के बाद ही उन्हें जानने लगा हूँ ! go-home-indian-media-02 तो बात चल रही थी मीडिया की अंधी दौड़ और धर्म ,संत ,भगवान और आस्था की,बात शुरू होती है निर्मल बाबा से ,एक वक़्त ऐसा था जब सभी टीवी चैनल निर्मल दरबार दिखा—दिखा कर अपनी तिजोरियां भर रहे थे,कुछ समय बाद बाबा को लगा कि अब टीवी की जरुरत नहीं उनकी प्रसिद्धी बहुत हो गयी, अब टीवी चैनल की क्या जरुरत?सब बंद फिर क्या था एक छोटे से मामले से इतना बड़ा बवाल हुआ की हर एक खबरिया चैनल पर सिर्फ बाबा की सम्पत्ति,उनके दरबार,उनकी चाल बाज़ी और हर जगह बड़ी बड़ी बहस होने लगी,सभी चैनल पर प्राइम टाइम में सिर्फ एक ही न्यूज़ बाबा का दरबार , आम जनता जो बाबा के दरबार में एक आस्था से जाते थे उन्हें बेवकूफ बताने की भरसक कोशिश हुई, कुछ दिन हंगामा होने के बाद नतीजा क्या निकला ?? बेचारे बाबा को फिर से आना पड़ा टीवी पर और आज रोज दोपहर कई न्यूज़ चैनल पर दिखाई देने लगे ! फिर आया आशा राम और नारायण साईं, कोर्ट क्या फैसला करेगा ये तो वक़्त बताएगा लेकिन टीवी ने इतना ट्रायल चलाया कि कई बार तो लगने लगा की इस देश में उनके अलावा कोई दूसरी घटना होती ही नही ,खबरों का ही अकाल आ गया ,कितनी ही बहस हुई टीवी पर ,कई बड़े ज्ञानी ध्यानी बैठे टीवी पर और होने लगी बहस धर्म ,संत ,भगवान और आस्था पर। फिर से बापू के दरबार में जाने वाले भक्तो को बेवकूफ बताने को कोशिश हुई ! एक दिन शंकराचार्य का बयान फिर से तूफ़ान ला देता है, साईं बाबा पर, वो भगवान है की नही ? वो संत थे या फ़कीर ? हिन्दू उनकी पूजा करे या मुसलमान ? फिर से टीवी पर दरबार लगे ,देश के पढ़े लिखे पत्रकारों का और कुछ स्वघोषित हिन्दू धर्म के प्रवक्ताओं का क्या किया जाये और क्या नहीं ? कुछ समझ नहीं आया,लेकिन उन दिनों इस बहस से एक बात निकल कर आई कि लोग किसकी पूजा करेंगे ,किस धर्म,संत ,भगवान को मानेंगे वो उनका खुद का फैसला है , वो बेवकूफ है या समझदार इसका फैसला कौन करेगा ? अब राधे माँ को लेकर फिर से वही दौर चल रहा है , आखिर क्या होगा आगे ? क्या करे ? क्या वाकई धर्म,संत, भगवान और आस्था का मतलब बदल गया है ? या फिर ये फैसला हम करेंगे कि हम किसे धर्म,संत और भगवान मानें या फिर हम रोज—रोज अपनी आस्था और भगवान टीवी के रोज रोज के खुलासों के बाद बदलते रहेंगे ?


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