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आशु की चकरघिन्नी:नो मोर 'उगलती आग' 'दहकते अन्गारे'

मीडिया            Mar 18, 2016


मल्हार मीडिया। देर आयद, दुरुस्त आयद! सरकार को समझ तो आया कि अखबार निकालने के मायने सिर्फ अखबार निकालना ही नहीं, बल्कि इसके लिए व्यवहारिक समझ भी जरुरी है। नियम बनाया जा रहा है कि अब समाचार पत्र का प्रकाशक वही व्यक्ति होगा, जो इसके लिए व्यवहारिक ज्ञान के साथ, उच्च शिक्षा तथा पत्रकारिता का पाठ (डिग्री/डिप्लोमा) रखता हो। नए नियम की जरूरत पड़ी, दिन दुगनी, रात चौगुनी अखबारों की बढ़ती संख्या के कारण। अकेले दिल्ली में छोटे, बड़े, मन्झले समाचारपत्रों की तादाद 15 हज़ार पार है। भोपाल में भी इस संख्या को इसके आसपास माना जा सकता है। काले धन्धों को छिपाने से लेकर सरकार और सरकारी लोगों पर अपना प्रभुत्व दिखाने की मन्शा पूरी करने तक और ज्यादा कुछ नहीं तो वक्त-बेवक्त विज्ञापनों की रेवड़ी हासिल करने के लिए अखबार प्रकाशन की होड़ मची पड़ी है। धन्नासेठों के प्रकाशन मैदान में आने का नतीजा असल कलमकारों की फजीहत और कम होते सम्मान के रूप में तथा गैर जानकारों के पत्रकार(?) बन जाने का नतीजा जगजाहिर है। नए नियम के आकार लेने से उम्मीद की जा सकती है कि कुकुरमुत्ते की तरह बढ़ रही अखबार तादाद पर अन्कुश लग जाए। उम्मीद यह भी की जा सकती है कि धन्नासेठ अखबार निकालने के लिए डिग्रीधारी पत्रकारों की कुछ पूछपरख करने लगें। नियमों से गलियारे न निकाले गए और भ्रष्टाचार की गहरी छाया इस पर न पड़ी तो बड़े बदलाव के आसार कहे जा सकते हैं।


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