आशु की चकरघिन्नी
सीधी उन्गली से घी निकल पाने का कभी रिवाज नहीं रहा, दस्तूर हमेशा से उन्गली टेढ़ी करने का रहा है, लेकिन राजधानी के पत्रकार कुछ हटकर करने की महारत रखते हैं, सो उन्गली टेढ़ी करने की बजाए डिब्बा उलटा कर देने की हिम्मत कर दिखाई। जनसम्पर्क दफ्तर में बैठ, अधिकारियों की चाय की चुस्कियाँ लेते, उन्हीं के ऊपर गालियों की बौछार कर डाली। नाराजगी की वजह न्यूज़ पोर्टल्स को विज्ञापन का रिलीज़ आर्डर (आरओ) जारी न होने से थी। दबंगई की ठोस वजह थी मन्त्री के हर महीने विज्ञापन देने के निर्देश।
कमी जनसम्पर्क अधिकारी-कर्मचारियों के तत्काल पालन की। बस फूट पड़ा गुस्सा। सभ्यता के दायरे में रहने वाले विभाग के आला अफसरों के सामने असंवैधानिक अल्फाज लहराए। असर इस हद तक हुआ कि ताबड़तोड़ विज्ञापन आदेश जारी कर दिए गए। इसके लिए अगली सुबह का इन्तजार करने की गुस्ताखी करने की जुर्रत भी कोई नहीं कर पाया।
बताते चलें कि जनसम्पर्क विभाग में यह कोहराम मचाने वालों में कई नामी अखबारों के सम्पादक शामिल थे तो कुछ प्रमुख अखबार और चैनल के सीनियर रिपोर्टर भी। इनका इन्ट्रेस्ट क्या है, यह बताने की जरूरत तो है नहीं! गुस्सा इसलिए भी लाजिमी था कि जनसंपर्क मंत्री के साफ निर्देश के बावजूद वेबसाईट्स के आर ओ जारी नहीं किए जा रहे थे।
पुछल्ला
किसकी गाली लगी जोर से?
बुधवार शाम जनसम्पर्क में हुआ एपिसोड अगली सुबह चटखारेदार चर्चाओं में शामिल था। एपिसोड के अगुआ, मुख्य किरदार और खामोश हिमायत करने वाले इस बात पर "लक्ष्य जीतो" होड़ में लगे थे कि वह कौन सी और किसकी दी हुई गाली थी, जिसका हिन्ताल असर हुआ और आननफानन में आरओ जारी हो गए? मतलब ये कि कई पत्रकार यह कहते नजर आये मैने गाली दी लेकिन असल दमदार तो कोई और ही निकला।
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