Breaking News

एक और फर्जी किस्सा सुधीर चौधरी के खाते में

मीडिया            Mar 16, 2016


om-thanvi-001ओम थानवी। जो लोग पत्रकारिता के पतन पर शोध करते हों, वे ज़ी न्यूज़ के प्रधान संपादक के कृत्यों में एक प्रसंग और जोड़ कर रख सकते हैं। इसका भुक्तभोगी मैं स्वयं हूँ। कुछ महीने पहले मेरे बारे में सोशल मीडिया में एक अफवाह उड़ी की महिलाओं पर अभद्र टिप्पणी के कारण मुझ पर हमला हुआ या मेरे साथ मारपीट हुई। सच्चाई यह है कि किसी के साथ आज तक हाथापाई तक नहीं हुई है। वह दरअसल डॉ नामवर सिंह के जन्मदिन समारोह की घटना थी, जहाँ साहित्य और पत्रकारिता पर ही बात हो रही थी। किसी ने जाने क्यों (दुश्मन कम तो नहीं!) वह अफवाह उड़ाई। उस सरासर अफवाह को सच्ची घटना मानकर अपने सोशल मीडिया खाते (ट्विटर) पर किसी और पत्रकार ने नहीं, श्रीमान सुधीर चौधरी ने चलाया। यह चरित्र-हनन का प्रयास नहीं था तो क्या था? मुझे कोई हैरानी न हुई कि ज़ी-संपादक ने जानने की कोशिश तक नहीं की (क्यों करते!) कि उस वक्त वहां हिंदी के अजीम लेखक अब्दुल बिस्मिल्लाह, विष्णु नागर और पंकज बिष्ट भी मौजूद थे। अफवाह उड़ने पर नागरजी ने फेसबुक पर लिखा कि हमले या मारपीट की बात झूठ है। देर से पता चला कि पंकज बिष्ट ने अपनी पत्रिका समयांतर में 'सोशल मीडिया की असामाजिकता' शीर्षक से टिप्पणी लिखी। बिष्टजी ने लिखा: "पिछले दिनों एक घटना सोशल मीडिया को लेकर ऐसी घटी जिसे इसके दुरुपयोग की संभावनाओं का निजी अनुभव कहा जा सकता है। यह छिपा नहीं है कि इस मीडिया का, विशेष कर पिछले दो वर्षों से, विरोधियों को आतंकित करने, चुप करने, बदनाम करने और आम जनता को भ्रमित करने के लिए अत्यंत आक्रामक तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है। विशेषकर भाजपा-आरएसएस समर्थकों ने इस काम में महारत हासिल कर ली है।" यह किस्सा भी चौधरी के खाते में जमा रहे, इसलिए लिख दिया। सनद भी रहे। ओम थानवी के फेसबुक वॉल से।


इस खबर को शेयर करें


Comments