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ऑस्ट्रेलियाई मीडिया मुगल मर्डोक के अखबार ने उड़ाया भारतीय गरीबों का मजाक

मीडिया            Dec 15, 2015


मल्हार मीडिया ऑस्ट्रेलिया के एक प्रमुख अखबार द ऑस्ट्रेलियन में एक कार्टून प्रकाशित कर भारतीयों की गरीबों का मजाक उड़ाया गया है। इस कार्टून में भारतीय गरीबों को भूखा और 'सोलर पैनल' खाते हुए दिखा गया है, जिस पर कई लोगों ने इसकी निंदा करते हुए इसे नस्लवादी बताया है। यह कार्टून पेरिस जलवायु सम्मेलन की प्रतिक्रिया में रूपर्ट मर्डोक के 'द ऑस्ट्रेलियन' में प्रकाशित हुआ है। मशहूर रूपर्ट मर्डोक के इस समाचारपत्र द ऑस्ट्रेलियन के एक कार्टून में भारतीयों को सोलर पैनल खाते हुए दिखाया गया है। मीडिया मुगल के नाम से मशहूर रूपर्ट मर्डोक के इस अखबार में यह कार्टून पेरिस जलवायु परिवर्तन सम्मेलन की प्रतिक्रिया के तौर पर छापा गया है। सोशल मीडिया में कई लोगों ने इस कार्टून पर कड़ा एतराज जताया है। हाल ही में पेरिस में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के मसौदे पर अमेरिका, चीन, भारत समेत 195 देशों ने सहमति दी है। समझौते के तहत ग्लोबल वॉर्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखने और भारत समेत विकासशील देशों को करीब 67 हजार करोड़ (100 बिलियन डॉलर) की मदद देने के लिए कहा गया है। विकासशील राष्ट्रों की ओर से भारत ने सम्मेलन में सख्ती से अपना पक्ष रुख प्रकट किया था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सौर ऊर्जा बनाने वाले राष्ट्रों के अलायंस का भी एलान किया था। द ऑस्ट्रेलियन में छपे इस कार्टून की सोशल मीडिया पर कड़ी आलोचना हो रही है। कार्टून से यह जाहिर होता है कि एक दुर्बल भारतीय परिवार सोलर पैनल तोड़ रहा है और एक व्यक्ति इसे 'आम की चटनी' के साथ खाने की कोशिश कर रहा है। सोशल मीडिया और अकादमिक जगत में इस कार्टून को नस्लवादी बताते हुए इसकी आलोचना की जा रही है। मैकरी विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र की प्राध्यापिका अमंद वाइज ने गार्डियन ऑस्ट्रेलिया से कहा कि उनके विचार में कार्टून स्तब्ध करने वाला है और यह ब्रिटेन, अमेरिका या कनाडा में अस्वीकार्य होगा। उन्होंने कहा कि भारत आज विश्व का प्रौद्योगिकी केंद्र है और धरती पर कुछ सर्वाधिक हाईटेक उद्योग दुनिया के उस हिस्से में हैं। इसका यह संदेश है कि विकासशील देशों में लोगों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए इन प्रौद्योगीकियों की जरूरत नहीं है- उन्हें भोजन की जरूरत है। ट्विटर पर इस कार्टून की व्यापक रूप से निंदा की गई है। कई लोगों ने भारत के तेजी से विकसित होते सतत उर्जा क्षेत्र की ओर ध्यान खींचा है। डीकीन विश्वविद्यालय के प्राध्यापक यीन पारडीज का भी विचार है कि कार्टून का संदेश नस्लवादी है। उनके हवाले से बताया गया है, 'संदेश यह है...भारत अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल करने में विवेकहीन है और उसे कोयले पर निर्भर रहना चाहिए। सोशल मीडिया पर आलोचना कार्टून की सोशल मीडिया समेत एकेडमिक क्षेत्र में जमकर आलोचना हो रही है। मैक्वारी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर अमांडा वाइज के मुताबिक, इस तरह का कार्टून बनना शॉकिंग है। यूके, अमेरिका और कनाडा में कोई भी इसका सहयोग नहीं करेगा। डीकिन यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर यिन पैराडाइज के मुताबिक कार्टून बताता है कि सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की कोशिश बेवकूफी भरी है।


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