Breaking News

कविताई खबरिया अखबारों से गद्यात्मक खबरिया अखबारों के संरक्षक प्रभात

मीडिया            Feb 14, 2016


सीटू तिवारी । माधव लाल सुदत्त की, मृत्यु भई दुखदाय। लघु दीवानी कोर्ट के, प्रसिद्ध वकील कहाय।' एक वकील की मौत का समाचार कोई अख़बार क्या इस तरह छाप सकता है? आप कहेंगें नहीं, लेकिन 1918 में कोलकाता से निकलने वाला अख़बार प्रेमपुष्प हर ख़बर इसी तरह छापता था। गोस्वामी गोवर्धनलाल के संपादन में निकलने वाले इस अख़बार में मूल्य, विज्ञापन, संपादक का नाम-पता से लेकर सभी खबरें कविता की तरह छपती थीं। prem-pushpa-newspaper भ्रष्टाचार पर छपी इस खबर को ही लें- 'युसूफ खां भृत पुलिस कौ दे पैसा इक रोज, गटक्यो गाड़ीवान सो ज्यो गटके वहु सोज। पै प्रशंसित पुलिस ने पकरयों मिया मदार, माह तीन मजिस्ट्रेट ने ठेल्यो जेल जुझार।' तब कलकत्ता से निकलने वाले प्रेमपुष्प में यूरोप से लेकर हिंदी प्रदेशों की ख़बरें छपती थीं। बीते समय के अख़बारों के बारे में जानने का यह मौक़ा हमें प्रभात कुमार धवन से मिला। पटना सिटी के प्रभात कुमार के पास लगभग 1500 पुरानी पत्र-पत्रिकाओं का संग्रह है।पटना सिटी के प्रभात कुमार के पास पुराने अख़बारों का संकलन मौजूद है। हीरानंद शाह गली में उनका दो कमरे का छोटा सा मकान शोध करने वालों के लिए आकर्षण का केंद्र है। वर्ष 1913 का बिहार बंधु का अंक, 1918 का प्रेमपुष्प, 1950 में राजा महेंद्र प्रताप के संपादन में वृंदावन में निकल रहा संसार संघ, 1951 में बच्चों के लिए निकलने वाली पत्रिका बाल गोपाल के कई अंक, जनजीवन, आपकी पसंद, विचित्रा, रंगवाणी सहित कई पत्रिकाओं के अंक प्रभात के पास हैं। bihar-bandhu 1913 में निकलने वाला बिहार बंधु इसमें ख़ास है। अखबार ख़ुद को हिंदी का सबसे पुराना साप्ताहिक पत्र कहता है। 10 मई 1913 के अंक में पहले पन्ने पर तेल, डा एसके बर्मन ताराचंद दंत ट्रीट नाम की दातों की दवाई के अलावा लाहौर से निकलने वाले “अखबार आम” का विज्ञापन छपा है। prabhat-kumar-dhavan 53 साल के प्रभात को पुरानी पत्रिकाओं को जमा करने का शौक 20 साल की उम्र से शुरू हुआ। पिता अखिल भारतीय खत्री सभा के संगठन मंत्री थे, सो परिवार में पत्रिकाएं आती थीं। इनको देखकर ही उन्हें पत्रिकाएं जमा करने और लेखन का भी शौक लग गया। प्रभात बताते हैं, “पत्र पत्रिकाएं हम सबके जीवन से ख़त्म होती जा रही हैं। इसलिए लोग इसे फटाक से कबाड़ में बेच देते है. मैंनें ज्यादातर पत्रिकाएं वहीं से एकत्रित कीं। इसके अलावा अगर मालूम है कि किसी के पास पुराने अंक हैं, तो मांग लाता हूँ ताकि उनको सहेजा जा सके। rangvani-newspaper रंगवाणी के संपादक विश्वनाथ शुक्ल चंचल की उम्र 83 साल हो गई है। प्रभात के पास 1965 में पटना सिटी से निकलने वाले साप्ताहिक अख़बार 'रंगवाणी' की प्रतियां भी हैं।रंगवाणी के संपादक विश्वनाथ शुक्ल चंचल की उम्र अब 83 साल हो चली है। अपने अख़बार के बारे में विश्वनाथ कहते हैं, “खबरें रंग-बिरंगी होती हैं और जब उनको वाणी दे देते हैं तो वो अख़बार में छप जाती हैं। इसलिए हम लोगों ने अपने अख़बार का नाम रंगवाणी रखा। अख़बार में पूरे हिंदुस्तान की ख़बरें छपती थीं। अख़बार 11 साल चला। उसके बाद बंद हो गया। 'रंगवाणी' के अलावा 50 के दशक में विश्वनाथ शुक्ल ने अंग्रेजी साप्ताहिक 'इंडिया डेमोक्रेट' और बाद में 1952 में 'मातृभूमि' नाम का अख़बार भी निकाल। bal-gopal-vichitra वरिष्ठ पत्रकार अरुण श्रीवास्तव कहते है, “प्रभात के संग्रह में दिखता है कि पहले पत्रकारिता कितनी ईमानदार थी। 1972 में 'विचित्रा' के अंक के कवर पेज में तीन नग्न महिलाओं का स्केच बनाया गया है। जो यह बताता है कि पहले लोगों में भी संवाद को लेकर, एक दूसरे के विचार को लेकर स्पेस देने की कितनी समझ थी। प्रभात बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर और स्वतंत्र लेखऩ करके अपना जीवन बेहद मुफ़लिसी में गुज़ार रहे हैं। ऐसे में पत्रिकाओं को सहेजना कितना मुश्किल होता जा रहा है। vishwanath-shukl इस पर प्रभात कहते है, “हमें पैसे मिलेंगें तो हम मंदिर नहीं बनाएंगे, बल्कि इन पत्रिकाओं के लिए एक लाइब्रेरी बनाएंगे। ताकि मेरे बाद भी इनको लोग देख सकें और अपने बीते वक़्त को महसूस कर सकें।” बीबीसी हिंदी से साभार


इस खबर को शेयर करें


Comments