क्यों नहीं चलते हैं अंग्रेजी के अख़बार

मीडिया            Aug 08, 2015


नरेंद्र कुमार सिंह भोपाल से महज 160 किलोमीटर दूर हरदा में चार अगस्त की रात को एक भीषण रेल हादसा हुआ। जैसा कि स्वाभाभिक है, अगली सुबह भोपाल के ज्यादातर बड़े अख़बारों में यह खबर पहले पन्ने पर थी। भोपाल के जिन दो बड़े समाचारपत्रों में हरदा हादसे की खबर उस दिन नहीं छपी, वे हैं हिंदुस्तान टाइम्स और टाइम्स ऑफ़ इंडिया। यह दोनों कोई छोटे-मोटे सीमित साधनों वाले अख़बार नहीं है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया देश के सबसे बड़े मीडिया घराने का अख़बार है. इसे निकालने वाली कंपनी का सालाना टर्नओवर लगभग 9 अरब रूपये है। यह हिंदुस्तान में सबसे ज्यादा मुनाफा कमाने वाली media कंपनी है. एक अंदाज के मुताबिक पिछले साल इसका मुनाफा लगभग एक हज़ार करोड़ रूपये था। 1,555 करोड़ रूपये के टर्नओवर पर 155 करोड़ मुनाफा कमाने वाला बिरला घराने का हिंदुस्तान टाइम्स भी देश के बड़े मीडिया घरानों में से एक है। भोपाल के इन दो बड़े अख़बारों में उस दिन की सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण खबर इस लिए नहीं छपी क्योंकि उनके पास अपना छापाखाना नहीं है। अख़बार की प्रिंटिंग के लिए वे दूसरे छापेखानों पर आश्रित हैं। इन छापेखानों में दूसरे अख़बार भी छपते हैं. एक प्रेस तो रोज आठ दैनिक अख़बार छापता है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया के रिपोर्टर रात दस बजे के बाद कोई खबर नहीं दे सकते। हिंदुस्तान टाइम्स की हालत तो और भी बुरी है. अख़बार छपता तो भोपाल से है, पर इसके संपादक कलकत्ता में बैठते हैं। टाइम्स ऑफ़ इंडिया और हिंदुस्तान टाइम्स का तो मैंने इसलिये नाम लिया, क्योंकि ये बड़े अख़बारों की श्रेणी में शुमार होते हैं। पर हमारे कई पाठकों के लिए भी यह एक चौंकाने वाली सूचना हो सकती है कि हिंदी के हार्टलैंड भोपाल से अंग्रेजी के सात अख़बार निकलते हैं। हम बात कर रहे हैं अंग्रेजी के दो बड़े अख़बारों की। न तो टाइम्स ऑफ़ इंडिया में और न ही हिंदुस्तान टाइम्स में शाम 8-9 बजे के बाद की कवरेज की कूवत है और न ही इक्षा शक्ति। जाहिर है उनका मैनेजमेंट मान कर बैठा है कि उसके पाठक ख़बरें या तो टीवी में देखेंगे या इन्टरनेट पर, या फिर किसी स्थानीय हिंदी अख़बार में। अर्थात वे अख़बारों की दूसरी कतार में खड़े होने की लिए ख़ुशी-ख़ुशी तैयार हैं। इस तरह का दोयम दर्जे का अख़बार परोसने का मतलब है कि वे अपने पाठकों को पहले दर्जे का मूर्ख समझते हैं। उन्हें लगता है कि अख़बार वे कितना भी ख़राब निकालें, पाठक उसे पढने के लिए लालायित रहेगा क्योंकि उसे एक बड़ा ब्रांड चाहिए। लेखक इंडियाटुडे, हिंदुस्तान टाइम्स, इंडियन एक्सप्रेस, दैनिक भास्कर, नईदुनिया से जुड़े रहे हैं।


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