Breaking News

जिनकी सक्रियता पर होता है रश्क, ऐसी हैं वर्तिका नंदा

मीडिया, वामा            Oct 05, 2015


prakash-hindustani01डॉ.प्रकाश हिंदुस्तानी ‪‎वर्तिका नंदा‬ ने टीवी में ‪क्राइम रिपोर्टिंग‬ को उस वक़्त चुना, जब मीडिया में आनेवाली 99 प्रतिशत युवतियां एंकर बनना चाहती थीं या ग्लैमरस लाइफ़ स्टाइल प्रोग्राम की रिपोर्टर !वे मीडिया की छात्रा रहीं, दिल्ली में टीवी चैनल में क्राइम रिपोर्टर , प्रोड्यूसर और न जाने क्या-क्या रहीं। वे पत्रकार हैं पर वैसी पत्रकारिता नहीं करतीं, जैसी बरखा दत्त करती हैं! वे सोशल वर्कर हैं पर कोई एनजीओ नहीं चलातीं, वे जेण्डर कम्युनिकेटर हैं और महिलाओं के सशक्तिकरण से जुडी हैं, वे कवयित्री हैं और तीन साल से जेल में बंद महिलाओं की आवाज़ बन गई हैं। आजकल दिल्ली के लेडी श्रीराम (LSR) कॉलेज में फैकल्टी और एचओडी हैं। वर्तिका 12 साल की थीं, जब पहली बार उन्होंने टीवी पर एंकरिंग की थी। पढ़ाई के बाद सहारा समय, एनडीटीवी, ज़ी टीवी और लोकसभा टीवी में बरसों काम किया। क्राइम रिपोर्टर से एक्ज़ीक्यूटिव प्रोड्यूसर की भूमिका में। उनकी पीएचडी 'महिलाओं के साथ रेप की वारदातों का प्रिंट मीडिया में कवरेज' जैसे संवेदनशील मुद्दे पर थी। वे प्रिंट मीडिया, फिल्म, इंटरनेट मीडिया से भी जुडी हैं। उनकी सक्रियता से किसी को भी रश्क हो सकता है। वर्तिका नंदा महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा के ख़िलाफ़ आवाज बनकर उभरी हैं। उनकी पत्रकारिता, शिक्षण, लेखन, फिल्म निर्माण सभी कुछ किसी सक्रिय आंदोलनकारी की तरह है। वे भी नौकरी करती हैं, उनका भी घर परिवार है, लेकिन उन्होंने अपने व्यक्तिगत और प्रोफेशनल कार्य को शानदार तरीके से सुविभाजित कर रखा है। उन्होंने कभी भी अपने महिला होने को टीवी की शोरगुल वाली भीड़भरी क्राइम रिपोर्टिंग में बड़ा नहीं बनने दिया। 'टेलीविजन और अपराध पत्रकारिता' किताब पर उन्हें अवार्ड मिला, राधाकृष्णन मेमोरियल नेशनल मीडिया अवार्ड, लाडली पुरस्कार आदि के साथ ही उन्हें राष्ट्रपति के हाथों 'स्त्री शक्ति पुरस्कार' भी मिल चुका है। एक बार इंदौर में मैं कह बैठा कि आप पर मुझे रश्क़ (ईर्ष्या) होता है, तो उनका जवाब था-आप भी खूब सक्रिय रहिए! क्राइम रिपोर्टिंग करते—करते उन्होंने महिलाओं के प्रति संवेदना अनुभूत कीं। क्राइम पत्रकारिता के अलावा उनकी कविताओं की चार किताबे आ चुकी हैं—'मरजानी', 'थी, हूँ और रहूंगी, ( महिलाओं के प्रति हो रहे अपराधों से प्रेरित कविताएं),में उनकी कविताएं हैं और 'तिनका तिनका तिहाड़' जेल में बंद महिला कैदियों की कविताओं का संकलन है जिसे उनके साथ ही एक संवेदनशील डीजी जेल विमल मेहरा ने संपादित किया है। उनकी कविताओं की ताजा किताब 'रानियां सब जानती हैं' अपराधों की शिकार महिलाओं को समर्पित हैं। उनका कहना है कि प्रिंट 'सुख' देता है, टीवी 'शोर' और कविताएँ मानवीय संवेदनाएं !


इस खबर को शेयर करें


Comments