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दस करोड़ मिलने की अफवाह का वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने ऐसे दिया जवाब

मीडिया            Nov 19, 2015


मल्हार मीडिया अफवाहें जो न कराये कम है। अगर आपका नाम बड़ा है और उसपर सोने पर सुहागा ये कि आप पत्रकार हैं तो ऐसी खबरों ये यदा—कदा आपको दो चार होना ही पड़ेगा इसमें कोई दो राय नहीं। बहरहाल ताजा मामला वरिष्ठ पत्रकार और जनसत्ता के पूर्व संपादक ओम थानची से जुडा है। जिनके बारे में यह कह दिया गया कि 1 नवम्बर को मावलंकर हॉल में प्रतिरोध के आयोजन के लिए उन्हें एक सांसद से दस करोड़ रुपए मिला है। आखिरकार जब पानी सर से उपर जाने लगा तो थानवी जी ने अपने फेसबक टाईमलाईन पर इस बात का खंडन किया कि उन्हें कोई रकम दी गई है। इससे पहले किसी कार्यक्रम थानवीजी की पिटाई की भी अफवाह उड़ा दी गई थी जो बाद में झूठ निकली थी। बहरहाल ओम थानवी ने इस अफवाह के खंडन में अपनी टाईमलाईन पर जो लिखा वह तस का तस पढ़िये आप भी बड़ी आनंददायकखबर खबर है: मुझे दस करोड़ रुपया मिला है। एक सांसद के जरिए, पहली नवम्बर को मावलंकर हॉल में प्रतिरोध के आयोजन के लिए। यानी मेरी तंगहाली तो रातोंरात दूर हो गई। अशोक वाजपेयी और एमके रैना को ज्यादा मिला होगा, क्योंकि वे बड़े नाम हैं। हालाँकि उन्हें मुझ सरीखी जरूरत शायद न हो! बहरहाल, यह अफवाह वीके सिंह ने फैलाई होती तो मैं एक कान से दूसरे कान निकाल देता। अफवाह एक वामपंथी कवि ने फैलाई है। उसने एक कथाकार मित्र को फोन कर यह 'जानकारी' दी। इसी तरह औरों को भी दी होगी। सच्चाई यह है कि उस कार्यक्रम के खर्च (हॉल, पोस्टर और चाय आदि) तक को आयोजन का 'पंगा' लेने वाले हम चंद लोगों ने अपनी जेब से वहन किया है, उसके लिए किसी संस्था या न्यास या पार्टी से न चंदा माँगा न साधन। मगर जानते हैं यह दस करोड़ की विराट अफवाह सरकाने वाला कवि है कौन? वही सूक्तिकार, जिसने पहले यह अफवाह भी फैलाई थी कि मैंने डॉ नामवर सिंह के जन्मदिन समारोह में हल्की बात की और मेरी पिटाई कर दी गई, मैं घायल हो गया, अस्पताल जा पहुंचा आदि। मजा यह था कि जिस जगह का जिक्र किया गया, वहां और लेखक भी मौजूद थे जिन्होंने जानना चाहने वालों को सच्चाई भी बाद में बता दी। तो आप क्या समझे थे कि अफवाहें फैलाने का काम संघ परिवार वाले ही करते हैं? या मुझसे, अशोक वाजपेयी आदि से संघ वालों को ही खुन्नस है? अजी, कुछ वामपंथी 'साथी' भी कम नहीं। हालाँकि मेरे वामपंथी मित्र ऐसे तत्त्वों को (अब) शायद वामपंथी मानने से इनकार करने लगें! लेकिन ऐसा इनकार ही तो संघ वाले करते हैं, जब उनके बन्दे पकड़े जाते हैं!


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