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दो चैनलों के दर्जन भर पत्रकारों को यूपी विधानसभा ने किया तलब

मीडिया            Feb 24, 2016


मल्हार मीडिया ब्यूरो। मुजफ्फरनगर दंगे के दौरान किए गए स्टिंग ऑपरेशन को लेकर उत्तर प्रदेश विधान सभा ने दो टीवी चैनलों के संपादकों और रिपोर्टरों को तलब किया है और 26 फरवरी को अपना अंतिम पक्ष रखने का कहा है। मंगलवार को उत्तर प्रदेश विधानसभा ने करीब पौने तीन घंटे की एक बैठक की, जिसमें यह फैसला लिया गया है। बैठक की अध्यक्षता विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पाण्डेय ने की। चर्चा में भाजपा छोड़ सभी पार्टियों के विधायकों ने एक स्वर में दोषी चैनल कर्मियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग की। भाजपा सदस्यों ने इस मामले में विरोध जताते हुए सदन से वाॉकआउट किया। गौरतलब है कि, इससे पहले विधानसभा जांच कमेटी ने 17 फरवरी को मुजफ्फरनगर दंगे को लेकर हिंदी न्यूज चैनल आजतक और अंग्रेजी न्यूज चैनल हेडलाइंस टुडे के स्टिंग को झूठा करार दिया। कमेटी ने कहा कि 17-18 सितंबर 2013 को न्यूज चैनल का स्टिंग ऑपरेशन गलत था। जांच के दौरान मंत्री आजम खान के दबाव में कई सस्पेक्ट लोगों को छोड़े जाने और एफआईआर को बदले जाने की बातें साबित नहीं हो पाई हैं। इस मामले में कमेटी ने चैनल के स्टाफ मेंबर और अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की सिफारिश की है। कमिटी ने मैनेजिंग एडिटर सुप्रिय प्रसाद, आउटपुट हेड मनीष कुमार, एसआईटी एडिटर दीपक शर्मा, रिपोर्टर अरुण सिंह, रिपोर्टर हरीश शर्मा, हेडलाइन्स टुडे के मैनेजिंग एडिटर राहुल कंवल, न्यूज एंकर पुण्य प्रसून वाजपेयी, गौरव सावंत, पद्मजा जोशी को समाजवादी पार्टी के नेता व यूपी राज्यमंत्री आजम खान की अवमानना का दोषी पाया गया है। सात सदस्यीय कमेटी के सभापति सतीश कुमार निगम ने अपनी जांच रिपोर्ट हाल ही में सदन में पढ़ कर सुनाई। उन्होंने कहा कि सभी के खिलाफ आईपीसी की धारा 153ए, (सौहार्द बिगाड़ने), 295ए (किसी धर्म का अपमान करने), जान-बूझकर झूठ बोलने की धारा 200, इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख की कूट रचना के लिए धारा 463 व 464, 465, 469 और 471 के तहत एफआईआर दर्ज हो। साथ ही आईटी एक्ट के तहत भी कार्यवाही हो। इसके लिए गृह विभाग को आदेश दिए जाएं। उन्होंने यह भी कहा कि सभी के खिलाफ सदन की अवमानना का मामला चले। इस पर फैसला भी सदन करे। निगम ने विधानसभा के समक्ष मांग की कि ‘आजतक’ के खिलाफ केबल टेलिविजन नेटवर्क रेग्यूलेशन एक्ट-1995 की धारा- 5 और धारा- 20 के तहत भी कार्रवाई की जाए। बता दें कि स्टिंग ऑपरेशन में दिखाया गया कि दंगों में संदिग्ध व्यक्तियों को राजनीतिक दबाव के कारण छोड़ दिया गया था, जिसके बाद दंगे भड़के थे। स्टिंग में ये भी दिखाया गया कि तत्कालीन डीएम को संदिग्ध व्यक्तियों की तलाशी के कारण ट्रांसफर कर दिया गया। इतना ही नहीं राजनीतिक दबाव के चलते एफआईआर भी बदली गई। इसमें खासतौर पर आजम खान का नाम लेते हुए दिखाया गया। स्टिंग के मुताबिक, आजम ने अधिकारियों को फोन किया, जिससे रिहाई हुई। बड़े नेता ने कहा जो हो रहा है होने दो। हालाकिं इस स्टिंग के सामने आने के बाद 17 सितंबर 2013 को विधानसभा में बीएसपी नेता स्वामी प्रसाद मौर्या ने दंगे का मामला उठाया और मंत्री के इस्तीफे की मांग की। 18 सितंबर 2013 को तय हुआ कि ये मुद्दा सदन की गरिमा से जुड़ा है। लिहाजा पूरे मामले की जांच कराई जानी चाहिए। 24 सितंबर को नोटिफिकेशन जारी हुआ और सपा एमएलए सतीश कुमार निगम की अध्यक्षता में सात सदस्यों की एक कमिटी बनी। कमिटी को स्टिंग ऑपरेशन की विश्वसनीयता चेक करनी थी, लिहाजा कमिटी ने 350 पेज की रिपोर्ट विधानसभा के समक्ष पेश की। बता दें कि इस रिपोर्ट में 11 एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर, 18 चैनल से जुड़े लोगों और 5 एक्सपर्ट की गवाही हुई। गौरतलब है कि मुजफ्फरनगर में 27 अगस्त 2013 को कवाल गांव में लड़की से छेड़खानी को लेकर हुए संघर्ष में दो ममेरे और फुफेरे भाइयों सचिन और गौरव सहित कुल तीन लोगों की हत्या के बाद पूरा मुजफ्फरनगर हिंसा की आग में जल उठा था। 7 और 8 सितंबर को नंगला मंदौड़ में हुई पंचायत से वापस लौट रहे लोगों पर हुए हमले के बाद हिंसा ने दंगे का रूप ले लिया था, जिसमें थाना फुगाना सर्वाधिक दंगे से प्रभावित हुआ था। इन दंगों में दो समुदाय के बीच टकराव हुआ था, जिसमें करीब 50 लोगों की मौत हुई थी, जबकि लगभग 100 लोग घायल हुए थे। दंगों के कारण मुजफ्फरनगर में 17 सितंबर तक कर्फ्यू लगाना पड़ा था। S4M


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