अरविंद सिंह।
पिछली दो बार से पटियाला हाउस कोर्ट की रिपोर्टिंग में जो झेल रहे हैं, मैं ईमानदारी से मानता हूँ कि उसने देश में "intolerance " को लेकर हो रही बहस में मेरे पहले के विचार को ,बदला हैं...अपने career में तो याद नही कि कभी कोर्ट रिपोर्टिंग में ऐसे मुशिकल हालात हमने झेले हो... एजेंसी का रिपोर्टर होने के चलते और अपने पत्रकार साथियों के सहयोग के चलते, जिन केवल 5 लोगों को आज पटियाला हाउस कोर्ट रूम में सुनवाई को कवर करने की सुप्रीम कोर्ट से इजाजत मिली, मैँ भी उनमें था... लेकिन हकीकत ये है कि खबर होने के बावजूद हम खबर तुरंत नहीं चला पाये..सुप्रीम कोर्ट का आदेश था...पुलिस सुरक्षा का पूरा तामझाम था. .. लेकिन तब भी कन्हैया को न केवल कोर्ट परिसर में पीटा गया बल्कि कोर्ट रूम के ठीक सामने वाले रूम तक एक हमलावर पहुच गया ..वो भी DCP और जॉइंट रजिस्ट्रार हाई कोर्ट की मौजदूगी में....पुलिस ने पूछा कौन है तो वो -अपना नाम क्यों बताऊ, कहकर भाग निकलने में कामयाब रहा...हालात ये हैं कि हम लोगों के पास कोर्ट रूम में खबर थी..लेकिन खबर नही चलवा सकते थे...मोबाइल बाहर सरेंडर कर दिया था और एक एजेंसी का रिपोर्टर होने के चलते मुझे खबर फ़्लैश करानी थी...मजबूरन एक वकील के चैंबर की शरण ली...उसकी लैंडलाइन से फोन कर ऑफिस को लिखवाता हूँ ..खबर सबसे पहले ब्रेक होने के चलते मुझे ऑफिस की वाहवाही तो थोड़ी देर के मिल गयी पर अगले ही पल मुश्किल थी..बाकी चार रिपोर्टर साथी तो जा चुके थे।
यकीन मानिये...बाहर नारेबाजी हो रही थी...मेरा मोबाइल जिस साथी के पास होगा, वो कहाँ, किस हालात में होगा,मुझे कुछ पता नही था..और ऐसे हालात में, चैंबर से बाहर निकलने की हिम्मत करने में मुझे दस मिनट लग गये ..खैर ये तो एक बानगी थी..बहुत कुछ झेला मेरे दूसरे साथियों ने..मुझसे कहीँ ज्यादा मुश्किल हालात.. मारपीट से लेकर गाली गलौच तक ..कल 800 पत्रकारों ने सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्रार को ज्ञापन दिया था...मार्च किया था..हालांकि मैँ उसमें नही था..पर कुछ नहीं बदला...सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद भी। ...हालात का जायजा लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट की टीम पटियाला कोर्ट पहुँचती हैं...उनसे बदतमीजी होती हैं...सुप्रीम कोर्ट पैनल के सदस्य दुष्यंत दवे सुरक्षा प्रबंधों की खामियों को लेकर इलाके के डीसीपी पर चिल्लाते है वहीँ डीसीपी निरुत्तर, असहाय नजर आते है...
आप आपने घर पर टीवी देखते हुए खुश हो सकते हैं कि "राष्ट्रद्रोही"कनहैया को पीटा गया पर सच ये है कि हालात इस कदर बिगड़ जाए कि देश की न्यायपालिका और पत्रकारिता बेबस और पंगू बनाने को कोशिश हो...वो बेबस नजर आये तो यकीन मानिये कि ये किसी के लिए भी...फिर आपकी कोई भी विचारधारा क्यों न हो, शुभ संकेत कतई नही हैं..
एएनआई पत्रकार अरविंद सिंह के फेसबुक वॉल से
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