पत्रकारों पर हमले से चिंति​त PCI चेयरमेन बोले हमला माना जाये संज्ञेय,6 साल की हो सजा

मीडिया            Jul 29, 2015


मल्हार मीडिया डेस्क देश में पत्रकारों पर हमलों की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। ऐसे में उनकी सुरक्षा का मुद्दा जोर-जोर से उठ रहा है। इसी क्रम में टाइम्‍स ऑफ इंडिया की जर्नलिस्‍ट हिमांशी धवन ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) के चेयरमैन न्‍यायमूर्ति सीके प्रसाद से बातचीत की। टाइम्‍स ऑफ इंडिया में प्रकाशित इस बातचीत के अंश आप यहां पढ़ सकते हैं। पीसीआई ने हाल के दिनों में पत्रकारों पर हुए हमलों का उल्‍लेख क्‍या है? क्‍या इस तरह की घटनाओं में काफी वृद्धि हुई है ? यदि आंकड़े देखे जाएं तो आप नहीं कह सकते हैं कि पत्रकारों पर हमलों की घटनाओं में वृद्धि हुई है। लेकिन जब इस तरह की घटनाएं जल्‍दी-जल्‍दी हो रही हों तो यह चिंता का विषय है। हाल ही में दो पत्रकारों की हत्‍या हो चुकी है। पत्रकारों में इस तरह की घटनाओं से काफी डर बैठ गया है। पीसीआई ने इस तरह की धममियों से निपटने के लिए क्‍या किसी अलग कानून की मांग की है ? हां, प्रेस काउंसिल की एक उप समिति ने इस तरह की सिफारिशें दी हैं। पीसीआई ने भी इस रिपोर्ट को स्‍वीकार किया है क्‍योंकि पत्रकार पर उसके काम को लेकर किया गया हमला काफी गंभीर मामला है। परेशानी यह है कि ज्‍यादातर हमलों के मामलों को गंभीरता से नहीं लिया जाता। कानून की भाषा में कहें तो इसे गैर संज्ञेय (non-cognisable) अपराध घोषित किया गया है। इसका मतलब है कि यदि कोई आप पर हमला करता है तो यह संज्ञेय अपराध नहीं है और आप पुलिस स्‍टेशन नहीं जा सकते हैं। वहीं, यदि आपको मोबाइल फोन चोरी हो जाता है तो आप पुलिस स्‍टेशन जाकर शिकायत दर्ज करा सकते हैं। निजी तौर पर मेरा मानना है कि यदि कोई आपके थप्‍पड़ मारे तो आपको वह ज्‍यादा खराब लगेगा बजाय इसके कि वह आपका मोबाइल चुरा ले। मेरे कहने का आशय यह है कि मोबाइल की चोरी तो एक संज्ञेय अपराध है लेकिन किसी व्‍यक्ति पर हमला करना इस श्रेणी में नहीं आता है। इसका नतीजा यह होता है कि यह प्रक्रिया बहुत लंबी हो जाती है। पहले आप अदालत जाते हैं और शिकायत दर्ज कराते हैं। इसके बाद आप अधिवक्‍ता से मिलते हैं। सच कहूं तो यह काफी कठिन काम है। यदि कार्य के दौरान किसी पत्रकार को धमकाया जाता है अथवा उस पर हमला होता है तो इसे भी संज्ञेय अपराध की श्रेणी में लाया जाना चाहिए। हमने इस अपराध के लिए पांच साल की सजा की सिफारिश की है। वर्तमान में स्थिति यह है कि यदि आज कोई किसी पर हमला कर दे तो मुझे नहीं लगता कि कोई जेल जाता है। उस पर 500 रुपये का जुर्माना हो सकता है। लेकिन यदि अपने काम को लेकर किसी पत्रकार पर हमला होता है तो उसे कम से कम छह महीने से लेकर पांच साल तक की सजा होनी चाहिए। यह भी चर्चा का मुद्दा है कि मानहानि को दंडात्‍मक अपराध बनाया जाना चाहिए ? मेरा आकलन है कि इस देश में सिविल मुकदमेबाजी की काफी बोझिल प्रकिया है जबकि आपराधिक मुकदमों की रफ्तार उससे कहीं तेज है। इसलिए लोग उसका सहारा लेते हैं। यदि आप कहते हैं कि आपराधिक मानहानि नहीं होनी चाहिए तो यह काफी बोल्‍ड अर्थात सा‍हसिक बयान होगा। मानहानि के बारे में मेरा मानना है कि इसका दायरा बहुत बड़ा है। कोई व्‍यक्ति एक मुकदमा केरल में दर्ज करता है जबकि दूसरा असम में, इसी से समस्‍या उत्‍पन्‍न होती है। इसके लिए गाइडलाइन होनी चाहिए। यदि मानहानि का कोई एक आर्टिकल प्रकाशित हुआ है तो कोई व्‍यक्ति सिर्फ एक ही स्‍थान पर मुकदमा दर्ज कर सके। कानून को इस बारे में विचार करना चाहिए कि केस वहीं दायर किया जाएगा जहां पर आर्टिकल प्रकाशित हुआ है। मानहानि के किसी एक आर्टिकल को लेकर आप किसी पत्रकार से 30 स्‍थानों पर जाने को नहीं कह सकते हैं। लेकिन आप नागरिकों के अधिकारों में भी कटौती नहीं कर सकते हैं। ऐसे में आपको प्रयास करने होंगे कि ऐसे मामलों को एक साथ रखा जाए। पीसीआई के पूर्व चेयरमैन ने इसका नाम मीडिया काउंसिल रखने की मांग की थी। उनका कहना था कि इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया को भी इसके तहत लाया जाना चाहिए। इस बारे में आपका क्‍या मानना है ? मैं इस बात से सहमत हूं कि इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया को भी पीसीआई के तहत लाया जाना चाहिए। जब प्रेस काउंसिल का गठन हुआ था, तब इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया को यहां कोई नहीं जानता था। जबकि आज इसका जबर्दस्‍त प्रभाव है। हमने यह निर्णय लिया है कि यदि किसी पत्रकार पर हमला होता है या उसे जान से मारने की धमकी दी जाती है तो हम इसका संज्ञान लेंगे फिर चाहे वह इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया से ही क्‍यों न हो। समाचार4मीडिया


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