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फिर लहूलुहान कलम...!

मीडिया            Dec 25, 2015


चकरघिन्नी खनन माफिया द्वारा बालाघाट के युवा पत्रकार को मौत के घाट उतार दिए जाने का मामला पुराना नहीं है। जबलपुर के आशिस पर भाजपा पार्षद पति द्वारा किया गया जानलेवा हमला भी लोगों की जुबान से नहीं उतरा। राजधानी में सन्तोश मानव (सम्पादक हरिभुमि) को भुमाफियाओ द्वारा धमकाने, मनोज वर्मा (सम्पादक जनजन जागरण) और अमीन खान (रिपोर्टर) पर हुए हमले भी ज्यादा पुराने नहीं हैं। साल के आखिरी दिनों में राजधानी के कलमकार फिर लहूलुहान हुए हैं। मन समाचार और व्हाट्स अप पर सक्रिय पत्रकारिता करने वाले फरहान खान और उबेद कुरेशि असामाजिक तत्वों के शिकार हुए हैं। कानून की बिगड़ी व्यवस्था को हमेशा मन्जर-ए-आम पर लाने वाले कलमकारों के साथ खेली जा रही खुन की होली पर अखबारों ने अपनी कलम चलाई है। पुलिस प्रशासन ने भी त्वरित कार्रवाई कर गुनाहगारो की धरपकड़ की है। ऐसे में पत्रकार सुरक्षा कानून को लेकर उठती आवाजें फिर तेज जरूर हुई हैं। लेकिन सरकार की तरफ से इस मामले में फिलहाल कोई पहल नजर नहीं आ रही। शायद यह पहल कभी हो भी न पाए, क्योंकि तराजू के मेढकों की तरह एक पलड़े में न समा पाने वाले इस पत्रकार समुदाय को एक दूसरे की टान्ग खिचने से फुर्सत नहीं। यह बात सरकार को भी भलीभाँति पता है। चन्द वेबसाइटों (वास्तविक पत्रकारों द्वारा सन्चालित की जाने वाली) को दिए गए मुट्ठीभर विज्ञापनों को लेकर पत्रकार जगत की ही उछलकूद ने इस बात को और साबित कर दिया कि हम आपस में एक दूसरे के कितने खेरख्वाह हैं। हर छोटी-बड़ी बात पर अपनी एकता (?) को जगज़ाहिर करने वाले अब भी एक मन्च न आए तो तलवारें बरसती रहेंगी, खून बहता रहेगा, पत्रकार जख्मी होते रहेंगे। पुलिस खानापुर्ति करती रहेगी। सरकार कानून बनाने से यू ही बचती रहेगी।


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