डॉ.प्रकाश हिंदुस्तानी।
पत्रकार डॉ. मुकेश कुमार ने पिछले दिनों एक विदेशी चैनल के टिप्पणीकार को उद्ध्त करते हुए लिखा कि सीएनएन पत्रकारिता के विरुद्ध अपराध है और फॉक्स न्यूज विफल पत्रकारिता। डॉ. मुकेश कुमार ने इसी संदर्भ में भारतीय मीडिया को भी दो भागों में बांटा है। टीवी चैनलों के बारे में उन्होंने लिखा कि अगर भारत में इसकी बात करें, तो ज़ी न्यूज पत्रकारिता के विरुद्ध अपराध है और इंडिया टीवी विफल पत्रकारिता। करीब सौ लोगों ने मुकेश कुमार की इस टिप्पणी से सहमति जताई और अनेक ने उसे सटीक करार दिया। एक पोस्ट में तो लिखा गया था कि भारत में चैनलों का वर्गीकरण इस प्रकार किया जा सकता है- भाट-चारण चैनल, चमचा चैनल, भक्त चैनल, भड़भड़िया चैनल, छू लगाने वाला चैनल, अंग्रेजी का भौ-भौ चैनल, हुआ-हुआ चैनल, मिस इन्फॉर्म चैनल, बेगैरत चैनल।
आमतौर पर हम भारतीय लोग अपने न्यूज चैनलों के बारे में आलोचनात्मक टिप्पणियां करने में संकोच नहीं करते। कई लोगों का तो यह भी मानना है कि इस बारे में बात करना ही फिजूल है। भारतीय न्यूज चैनल की विश्वसनीयता के बारे में अब कोई टिप्पणी करने की जरूरत ही नहीं है। दरअसल भारतीय न्यूज चैनल अमेरिकी चैनलों के दबाव में है और वे उन्हीं की तर्ज पर काम करते हैं। अमेरिका में तो न्यूज चैनलों के साथ ही अखबार भी एक तरफा समाचारों और विचारों के लिए कुख्यात हो चुके हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के पहले पूरे अमेरिकी मीडिया का ट्रम्पीकरण हो चुका है। वहां इसके बारे में अध्ययन भी चल रहा है। अध्ययन के अनुसार पूरे अमेरिकी मीडिया का पक्षपात सबके सामने उजागर है। यह वैसा ही है, जैसा दो साल पहले भारत में देखने को मिला था।
पूरा अमेरिकी मीडिया डोनाल्ड ट्रम्प को प्रमोट करने पर तुला हुआ है। यह प्रमोशन इस तरह हो रहा है कि लोगों को लगे कि अखबार दोनों पक्षों की खबरें छाप रहे है और टीवी चैनलों पर दोनों ही पक्षों का कवरेज दिखाया जा रहा है, लेकिन ऐसा है नहीं। हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रो. थॉमस ई. पेटरसन के किए गए एक अध्ययन के अनुसार अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प के जितने भी कवरेज किए गए, उनमें से लगभग सभी सकारात्मक खबरों से भरे पड़े थे, जबकि हिलेरी क्लिंटन के अधिकांश कवरेज नकारात्मक खबरों से भरे थे। पूरे अमेरिकी मीडिया में हिलेरी क्लिंटन के कवरेज भी भरपूर दिखाए गए, लेकिन उनका रुख अलग था। प्रो. पेटरसन ने लिखा है कि हमारी रिसर्च से पता चलता है कि मीडिया दोनों ही नेताओं के प्रति अलग-अलग रुख रखता है।
अध्ययन से पता चला कि पूरा अमेरिकी मीडिया हिलेरी क्लिंटन और उनके पति पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के बारे में अलग धारणा पर कार्य करता है। अधिकांश समाचारों और लेखों में हिलेरी और उनके पति के अतीत का जिक्र ज्यादा होता है। जबकि डोनाल्ड ट्रम्प के अतीत के बारे में बातें कम की जाती है। हिलेरी क्लिंटन के विदेश मंत्री कार्यकाल की तो तारीफ की जाती है, लेकिन एक सांसद के रूप में उनकी प्रशंसा करने में कंजूसी बरती जाती है। ओबामा के राष्ट्रपति चुनाव के वक्त भी अमेरिकी मीडिया ने इसी तरह का रवैया अपनाया था।
हिलेरी क्लिंटन की बातें करते वक्त अमेरिकी मीडिया हमेशा बिल क्लिंटन के राष्ट्रपति पद पर रहते उनके और मोनिका लेविंस्की के बारे में लिखने में कभी कोताही नहीं बरतता। प्रारंभिक चुनाव परिणामों में हिलेरी क्लिंटन को मिल रहे समर्थन के बारे में भी मीडिया कम ही लिखता है। हिलेरी के समर्थकों के उत्साह के बारे में भी वह नहीं लिखता, जबकि ट्रम्प के जन्मदिन जैसी घटनाओं पर भारत में होने वाले छुटभैया कार्यक्रमों को भी अमेरिकी मीडिया तवज्जो देता है। अगर हिलेरी क्लिंटन ज्यादा वोट पाती है, तब वह बात सुर्खियों में नहीं पाती, सुर्खियां कुछ और बनती है।
डॉ. मुकेश कुमार ने सीएनएन के बारे में जो टिप्पणी उद्घृत की है, वह इसलिए सही है, क्योंकि सीएनएन और एमएसएनबीसी एकदम वहीं खबरें दिखा रहे हैं, जो डोनाल्ड ट्रम्प और उनका खेमा चाहता है। डोनाल्ड ट्रम्प खुद मीडिया साम्राज्य के मालिक हैं और भारत के मीडिया साम्राज्यों के मालिकों की तरह पूरी बेशर्मी से मीडिया का उपयोग कर रहे है। दूसरी तरफ सीएनएन के प्रेसीडेंट जेफ जुकर ने दावा किया कि उनका चैनल बहुत ज्यादा लोकतांत्रिक हैं और हर पक्ष की खबर दिखाता है।
चुनाव को भुनाने के लिए सीएनएन ने अपने विज्ञापनों की दरें भी बढ़ा दी हैं। वह भी मामूली नहीं। सीएनएन के प्राइम टाइम विज्ञापन एक साल में लगभग 40 गुना महंगे हो गए। जैसे-जैसे चुनाव की अंतिम तिथि नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे ये दरें बढ़ती जा रही हैं। सीएनएन का दावा है कि चुनाव के पहले उसके प्राइम टाइम के दर्शकों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है। एमएसएनबीसी भी चुनाव को देखते हुए अपनी ही ब्रांडिंग में लगा हुआ है। सीएनएन ने लगभग सौ टीवी पर्सनेलिटीज को इस काम के लिए लगाया है कि वे लोग डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ लगे किसी भी आरोप का जवाब दें। राष्ट्रपति ओबामा के बारे में ट्रम्प की एक टिप्पणी को तो 23 बार अलग-अलग कार्यक्रमों में विश्लेषित किया। एमएसएनबीसी ने भी अपने कार्यक्रमों में रेडियो के जाने-माने दक्षिणपंथी विशेषज्ञ ह्यूज हेविट को काम पर लगाया है।
डोनाल्ड ट्रम्प का प्रचार करने वाले अमेरिकी चैनल बार-बार यह बताते हैं कि डोनाल्ड ट्रम्प में पूरी दुनिया को आकर्षित करने की शक्ति है। वे नए तरह के राजनीतिज्ञ हैं और अमेरिका में नया राजनैतिक कल्चर लेकर आएंगे। दो साल पहले भारत में टीवी चैनलों का हाल भी क्या था, इसकी तुलना अमेरिका न्यूज चैनलों से की जा सकती है। दो साल पहले भारत के समाचार चैनलों में व्यक्ति पूजा की होड़ थी। लगभग सभी चैनल राजनैतिक पार्टी के निजी टीवी कवरेज के आउटपुट से फीड लेते थे। एक दूसरी पार्टी के नेता का मजाक बनाने का कोई मौका भारतीय चैनल नहीं छोड़ते थे। आप अंदाज लगा सकते हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव में भारतीय समाचार चैनलों की स्थिति और कितनी नीचे जाएगी।
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