श्रीप्रकाश दीक्षित
चोर की दाढ़ी में तिनका..! हिंदुस्तान के आम आदमी में बहुत मशहूर है यह कहावत।यह कहावत गले-गले तक भ्रष्टाचार में डूबी हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली के पहरुए राजनीतिक दलों पर सौ फीसदी सही उतरती है। आज के हिंदुस्तान टाइम्स और दैनिक भास्कर मे प्रकाशित खबर इस खौफनाक सच को भी उजागर करती है कि क्यों ये पार्टियां सूचना के अधिकार के दायरे से अपने को बाहर रखने के लिए लामबंद हैं।
हिंदुस्तान टाइम्स ने जहां इस खबर को पहले पेज की पहली खबर (फ़र्स्ट लीड) बना कर प्रस्तुत किया है, वहीं भास्कर ने इसे 18वें पेज पर छापा है। दरअसल इन पार्टियों द्वारा चुनाव लड़ने के लिए देश के रईसों से ली जाने वाली करोड़ों की रिश्वत से ही भ्रष्टाचार शुरू होता है जिसे ये चंदा कहते हैं। इसके बावजूद इन पार्टियों ने चुनाव सुधार के लिए जबानी जमा खर्च के अलावा अब तक कुछ नहीं किया है।
आज की खबर बताती है कि हमारे राजनीतिक दल और सांसद दोनों ही देश को किस प्रकार गुमराह कर रहे हैं। उनके द्वारा पेश चुनाव खर्च से पता चलता है कि तकरीबन पार्टियों और उनके सांसदों ने चुनाव आयोग को गलत जानकारी दी है। यह कड़वा सच एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफ़ार्म द्वारा 2014 लोकसभा चुनाव खर्च के विश्लेषण से सामने आया है।पार्टियों और सांसदों के शपथ पत्रों मे जबरदस्त विरोधाभास है। इनमे भाजपा ,काँग्रेस ,माकपा और भाकपा सभी शामिल हैं।
इन पार्टियों के 342 सांसदों ने बताया कि उनको अपनी पार्टी से कुल 75.80 करोड़ मिले जबकि इन पार्टियों के खर्च ब्योरे में कहा गया है कि उन्होने 175 सांसदों को 54.30 करोड़ रुपये दिए हैं । वहीं 38 सांसदों ने बताया कि उन्हे पार्टी से शून्य या अलग-अलग राशि मिली है। जबकि यह रकम पार्टियों द्वारा पेश चुनाव खर्च मे सांसदों को दी गई फंडिंग से अलग है। इससे साफ है कि या तो पार्टी गलत जानकारी दे रही है या फिर सांसद...?
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