ममता यादव।
मल्हार मीडिया का सदैव यह प्रयास रहा है कि निष्पक्ष चले और चलता रहा है और चलेगा लेकिन आज बतौर महिला मैं पक्षपाती होना चाहती हूं। चूंकि मैं महिला हूं तो इसे आप अतिशंयोक्ति कहते हुये यह भी कह सकते हैं कि मैं अपने मीडिया माध्यम का दुरूपयोग कर रही हूं अपनी व्यक्तिगत भावनाओं को यहां मंच देकर। लेकिन आज जो मैं कहने या लिखने जा रही हूं ये हर उस लड़की या महिला की आवाज है,कसक है,दर्द है,पीढ़ा है इसे आप कुछ भी कह सकते हैं जो अपने दम पर कुछ करना चाहती है। मल्हार मीडिया का एक ही सूत्रवाक्य रहा है न किसी की राह में आना न राह रोकना बस अपनी राह बनाना। बावजूद इसके कुछ तथाकथित स्वघोषित स्वयंभू इस राह में आना चाहते हैं तो उनका स्वागत है और हम तैयार हैं टक्कर लेने के लिए।
बात शुरू होती है मल्हार मीडिया से और मल्हार मीडिया पर अब ये खत्म नहीं होगी जारी ही रहेगी। पहला कदम स्थापना! दूसरा कदम सरकारी विज्ञापन जारी होना! यहां तक सब ठीक था क्योंकि सब ढका मुंदा था उनका जो पीेछे दरवाजे से लाभ लेते हैं। लोगों की परेशानी शुरू हुई तब से जब वह सूची बाहर आई विधानसभा में जिसमें सारे वेब पोर्टल्स के विज्ञापन का ब्यौरा था। ममता यादव और मल्हार मीडिया कई बूढ़ी बुआओं के टारगेट पर आ गये। जबकि मल्हार मीडिया ने सिर्फ एक ही आवाज उठाई कि सिर्फ वेबमीडिया को ही घोटालेबाज क्यों कहा जा रहा है? सिर्फ और सिर्फ वेब मीडिया और पत्रकारों के फेवर में लिखने का नतीजा ये कि कई वेबसंचालक ही ममता यादव के खिलाफ हो गये। आलम यह कि बकायदा व्हाट्सएप ग्रुप्स पर ममता यादव और मल्हार मीडिया के खिलाफ मुहिम छिड़ चुकी है।
इसके अगुवा बने हैं एक तथाकथित पत्रकार संगठन के सदस्य, अध्यक्ष क्या हैं मुझे ठीक से नहीं पता। बुजुर्ग पत्रकारों की श्रेणी में आने वाले इन पत्रकार महोदय को ममता यादव द्वारा सिस्टम को दोगला कहना इतना नागवार गुजरा कि इन्होंने सार्वजनिक रूप से लिख दिया यह शब्दों की मर्यादा पार कर रही हैं। मल्हार मीडिया की खबरें व्यवसायिक हैं। तो मेरा एक सवाल कि व्यवसाय कौन नहीं कर रहा है अपने रास्ते चलती ममता यादव इतनी क्यों खटक रही है? शायद इसलिए कि इन्हें कभी रातों को ममता यादव की याद आती थी और ममता यादव ने इन्हें तरीके से जवाब दिया था? या इसलिए कि हमने किसी भी संगठन का हिस्सा बनने से इन्कार कर दिया? या फिर इसलिए कि वाकई न चाहते हुये सच लिखने के कारण ममता यादव या मल्हार मीडिया कुछ लोगों के रास्ते में आ गये हैं। उन पत्रकार महोदय के जरा विचार पढ़िये:
लगता है,ये ग्रुप अब उद्देश्य से भटक गया है। ममता यादव जी की पोस्ट देखें "दोगलापन" जैसे शब्दों का प्रयोग,और खान आशु की खीझ भरी रिपोर्ट,ग्रुप को महिमा मंडित कर रही है।
दूसरी बात अपनी बेब साइट का प्रचार,"पुछल्ली"खबरों के साथ विग्यापन वाला ग्रुप बन गया है।
एडमिन जी यदि आपका कन्ट्रोल इन ब्यावसायिक गतिविधियों पर रोक लगा पाने में असमर्थ है,तो कृपया कम से कम मुझे तो ग्रुप से निकाल दें,शायद आप सोच रहे होंगे,कि मैं स्वयम् क्यों नहीं exit कर जाता। पर आपको कर्तब्यबोध कराने के बाद,अवश्य यदि सुधार न हुआ तो करूंगा।
जब ससम्मान जवाब दिया गया तो पर्सनल व्हाटसएप पर इन महोदय का ये जवाब आया ये समझाईश है चेतावनी या धमकी ये ही जानें...
ममता, मुझे क्या हजम हो रहा है क्या नहीं, ये मेरा विषय है।
रही बात प्रोत्साहित करने की,तो तुम्हारे दिल से पूछो,कि आज जो तुम्गें सरकारी मिल रहा है,वो किसकी बदौलत, लेकिन मैं यह अहसान बताने के लिये नहीं कह रहा। तुम्हारे घमंड और बड़ों के अनादर की वजह से सन्दर्भित कर रहा हूं।
मैं वैसे भी हास्पीटलाइज हूं। आज हाथ का आपरेशन हैं, मैं विवाद में नहीं पड़ना चाहता। तुम्हें जो भी मेरे बारे में लिखना है,पर्सनल नम्बर पर लिखें।सार्वजनिक नहीं। उंगली,अंगूठा सबके पास है। सारवजनिक मंच पर बहस हुई तो परिणाम सुखद नहीं होंगे। ये मेरा विनम्र आग्रह है।
ग्रुप है मीडिया मिर्ची
ये भी खूब रही सार्वजनिक शुरूआत भी आप करें और फिर प्यार भरे शब्दों में चेतावनी भी दें।
वैसे इस ग्रुप के एडमिन को साष्टांग दंडवत जो इतना कुछ होने के बाद खामोश रहे।
एक महाशय की परेशानी मुझे आज तक समझ नहीं आई। उन्हें क्या परेशानी है लेकिन हर छोटी—बड़ी बात पर टारगेट करने वाले इन महाशय को मैं बहुत समझदार समझती थी लेकिन इन्हें एक चीज अखर गई जब विज्ञापन रोक दिये गये और चंद पत्रकार मिलकर सरकारी लोगों के पास पहुंचे तो विज्ञापन चालू हुये उसमें कौन—कौन शामिल हुआ कुछ का मुझे पता है कौन नहीं यह नहीं पता लेकिन हकीकत यह है कि हर बार सारी मीटिंग्स से महिला पत्रकारों को दूर रखा गया। तो साहब इनका यह था कि हम इनको सर झुकाकर प्रणाम करके धन्यवाद कहते कि आपके कारण मल्हार मीडिया चल रहा है। हालांकि हकीकत मैं जानती हूं मगर फिर भी इनको धन्यवाद बोला। इनमें कई लोग ऐसे भी थे जो ये कहते थे आप ये सब मत लिखिये। कुछ ऐसे हैं जिन्हें सच लिखना गाली लगता है और शब्दों की मर्यादा की ताकीद देते रहते हैं। मैं पूछती हूं कोई बताये कि ममता यादव या मल्हार मीडिया ने कभी किसी को व्यक्तिगत रूप से टारगेट करके गरियाया हो? शब्दों की मर्यादा भंग की हो?वैसे इनकी विवादित बातों का जवाब इन लोगों को अपना अपमान लगता है।
इन्हें तब कोई बात गाली नहीं लगी जब महिला पत्रकारों को और पुरूष पत्रकारों की पत्नियों को वेश्या और धंधेबाज कहा गया।
इनमें कुछ ऐसे भी थे जो अपनी खबरें मल्हार मीडिया को भेजते थे पब्लिश भी हुईें लेकिनजब ये खुलासा हुआ कि वेबसाईट्स इन सबकी भी हैं तो मेरा जवाब था कि आप अपनी वेबसाईट पर पब्लिश करें।
इन लिंक्स में देखिये वो खबरें जिससे कई पत्रकार मेरे खिलाफ हैं और जो खुद भी वेब मीडिया का हिस्सा हैं इनके अहम को चोट क्यों पहुंच रही है यह ही जानें...?
वेबमीडिया को विज्ञापनों पर हंगामा क्यों…? दूसरा पहलू भी आये सामने
निशाने पर वेब मीडिया ही क्यों
वेबमीडिया के नाम पर बूढ़ी बुआओं का विलाप…! बाला बच्चन दिखायें साहस ये सवाल पूछने का ?
वेबमीडिया के बहाने लक्ष्यसाध्य मुद्दा उठाकर पत्रकारिता को गालियां देने वालों को पत्रकार का जवाब
वसूली-जेल समाधान होता तो पत्रकारों की इतनी भीड़ नहीं दिखाई देती
अगर अगले कुछ दिनों ममता यादव को बदनाम भी किया जाने लगे तो कोई आश्चर्य नहीं लेकिन मैं उम्मीद करती हूं कि जो वास्तव में मेरे अपने हैं वो मेरे साथ हैं मेरे सच के साथ हैं और उस समय भी मेरे साथ होंगे। कई लोगों को मल्हार मीडिया अद्भुत प्रतिभा अवार्ड भी हजम नहीं हुआ क्योंकि वो बिना किसी सरकारी सहायता के सफल आयोजन हुआ लेकिन उसमें भी लोगों का ये मानना है उन्होंने एफर्टस लगाये इसलिये विज्ञापन के पेमेंट हुये इसलिये कार्यक्रम हुआ हकीकत ये है कि नवंबर के बाद से कोई पेमेंट अभी तक नहीं हुआ है और बीमार मां के इलाज के लिए भी कर्जा लिया है,भीख नहीं मांगी किसी से।
यहां मैं सारे पाठको से क्षमा चाहूंगी कि मैं व्यक्तिगत हो रही हूॅं आज महिला दिवस पर ही मुझे कुछ ऐसा दिखाई सुनाई दिया कि इस दोगले समाज की सच्चाई लिखने को बाध्य हो गई। भोपाल ही नहीं पूरे देश मेंऐसे एक नहीं कई पत्रकार हैं जो लगातार मल्हार मीडिया को सराह रहे हैं और ममता यादव को प्रोत्साहित कर रहे हैं। लेकिन ममता यादव उन लोगों को हजम नहीं हो रही जो खबरों के अलावा और सब कुछ करते हैं। जो मल्हार मीडिया के साथ हैं उनके नाम मैं यहां लिखूंगी,डॉ.मंगला अनुजा,श्रीमती अनिता शर्मा, श्रीमती रिचा अनुरागी, सुश्री एकता शर्मा,डॉ.प्रकाश हिंदुस्तानी,श्री के.के.अग्निहोत्री,श्री दीपक तिवारी,श्री ब्रजेश राजपूत,श्री विजयदत्त श्रीधर,श्री गिरजाशंकर,श्री मनोज कुमार,डॉ.पुष्पेंद्र पाल,श्री हेमंत पाल,श्री अवधेश बजाज,श्री सोमदत्त शास्त्री श्री अनुराग उपाध्याय,श्री यशवंत सिंह,श्री जयशंकर गुप्त श्री प्रदीप जायसवाल,श्री सीताराम ठाकुर,श्री महेश दीक्षित,श्री पंकज शुक्ला,श्री दीपक शर्मा,श्री अनिल सौमित्र,डॉ.लक्ष्मीनारायण शर्मा,श्री शैलेष तिवारी,श्री रघुवर दयाल गोहिया संजीव पुरोहित,श्री समीर शाही । जिनके नाम नहीं लिख पा रही उनसे क्षम चाहती हूं क्योंकि मैं भावावेश में यह सब लिख रही हूं।
एक बात और यहां लिखना चाहूंगी कि जो खबरें मल्हार मीडिया ने उठाईं या लिखीं अगर वही कोई पुरूष पत्रकार लिखता तो शायद चारों तरफ से उसकी पीठ ठोकी जाती मगर मुझे फोन आये बहुत से वरिष्ठ पत्रकारों के कि आप भावावेश में खबरें लिख रही हैं और लोग आापके गुस्से का गलत इस्तेमाल कर लेंगे। सब आपके खिलाफ हो जायेंगे। मैं सिर्फ इतना कहना चाहती हूं महिला हूं भावुकता तो स्वभाव में है और जो भावुक होता है वो साहसी भी होता है और इसके अलावा महिला होने के बावजूद दिमाग मेरे पास भी है। वैसे भी जब कोर्इ् युवा पत्रकार कुछ लिखता है तो उसे भावावेश में लिखा ही माना जाता है हालांकि अपने समय में आप लोगों ने भी ऐसे एक नहीं सैकड़ों मुद्दे उठाये होंगें जिनके कारण आप वरिष्ठ लोग हम लोगों के प्रेरणा स्त्रोत बने लेकिन अब हम लोग बहुत निराश हूॅं। पत्रकारिता में 15 साल गुजारने के बावजूद मैं खुद को नया ही मानती हूं क्योंकि मैं हमेशा सीखने को आतुर रहती हॅूं।
कुछ बुजुर्ग पत्रकारों ने सार्वजनिक टीका टिप्पणियां की हैं इनमें से कुछ खुद को समाजसेवी भी कहते हैं।आखिर क्या वजह है कि आप एक महिला को टारगेट करते रहें और वो कुछ सीमाओं में रहकर भी कहे तो शब्दों की मर्यादा भंग होने लगती है। मेरे कई वरिष्ठों ने समझाया इग्नोर करो इग्नोर किया भी लेकिन कब तक हद तो तब हो गई जब मुझसे एक महाशय ने ये पूछ लिया कि आपने सूची में नाम जुड़वाने के लिए आखिर किया क्या ऐसा उनका इशारा बहुत अच्छी बात की तरफ नहीं था। मैं फिर भी चुप रहूं। तमाम व्हाट्सएप ग्रुप्स के मेंबर्स गवाह हैं कि पिछले दो—तीन महीने में क्या माहौल कर दिया गया है। बाद में तो यह तक संदेश भिजवाये गये कि उसे समझा लो शहर में कुछ भी होता रहता है। मैं पूछना चाहती हूं इन सब आदरणीयों से कि मैने क्या गलत किया है और आप लोगों की तकलीफ क्या है सिर्फ मल्हार मीडिया के एक साल में सवा लाख रूपये के विज्ञापन जिसकी राशि भी पूरी नहीं पहुंची। बहती गंगा में कई लोगों ने हाथ धोने की कोशिश की है।लेकिन कामयाब नहीं हो पाये।
लिखने को बहुत कुछ है मगर ये व्यक्तिगत बातें हैं और पाठकों को सरदर्द क्यों दिया जाये। ये सब लिखने का महज एक ही उद्देश्य था महिला दिवस किस तरह मनाया जा रहा है और थोथी,खोखली,दोगली बातें करना बंद करिये पहले महिलाओं को सम्मान देना शुरू करिये सीखना इसलिए नहीं लिखा क्योंकि यह बताने की जरूरत नहीं।बहरहाल,मेर साथ मुठ्ठी भर लोग ही सही लेकिन सच को समझने वाले और सच का साथ देने वाले लोग हैं। इस दोगले सिस्टम और दोगले लोगों की भीड़ में कुछ ही सही मगर मजबूत लोग मल्हार मीडिया के साथ हैं।
जब सीमा पार होने लगे तो खामोश रहना मुश्किल होता है। मल्हार मीडिया के पाठकों से क्षमा। आज यह ऐसा मंच बना।
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